NDA Meeting: NDA नेताओं की पटना में बैठक, नीतीश का क्या रहा साथी दलों को पैगाम?

NDA Meeting - NDA नेताओं की पटना में बैठक, नीतीश का क्या रहा साथी दलों को पैगाम?
| Updated on: 29-Oct-2024 08:50 AM IST
NDA Meeting: बिहार के राजनीतिक गलियारे में इस समय चुनावी हलचल तेज है। एनडीए के साथ एक बार फिर से जुड़ने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन में एकता की बुनियाद मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं। पिछले चुनावों के अनुभवों से सबक लेते हुए नीतीश ने इस बार एनडीए की मीटिंगों को बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक आयोजित करने की जरूरत बताई है। उनका मानना है कि जनता के सामने एक स्पष्ट और एकजुट गठबंधन की तस्वीर होनी चाहिए जिससे यह संदेश जाए कि एनडीए में किसी प्रकार का मतभेद नहीं है।

2020 के चुनाव का सबक

साल 2020 के विधानसभा चुनावों में जदयू की सीटें 43 पर सिमट गई थीं। इस हार का दर्द आज भी जदयू के नेताओं के लिए एक सबक के रूप में है। नीतीश कुमार मानते हैं कि इस गिरावट में चिराग पासवान की भूमिका अहम थी, जिनकी पार्टी ने जदयू के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया और भाजपा ने इसे रोकने का ठोस प्रयास नहीं किया। नीतीश को अब संदेह है कि भाजपा उस समय ड्राइविंग सीट पर आना चाहती थी, जोकि उनके पार्टी के भीतर एक अस्थिरता का कारण बना।

जदयू का एनडीए से नया रिश्ता और पुरानी चिंताएं

जदयू ने 2022 में एनडीए छोड़कर राजद के साथ गठबंधन किया, लेकिन यह रिश्ता ज्यादा लंबा नहीं चला। महज डेढ़ साल बाद नीतीश वापस एनडीए में लौटे, जिससे उनकी छवि में अनिश्चितता आई। इस बार नीतीश एनडीए के सभी घटक दलों के साथ मजबूत तालमेल बनाने की कोशिश में हैं। बिहार में भाजपा के साथ मिलकर 2025 के चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने का लक्ष्य रखते हैं।

हालांकि भाजपा भी नीतीश कुमार के प्रति पहले जितनी सहनशीलता नहीं दिखा रही है। भाजपा ने लोकसभा चुनावों के बाद स्पष्ट किया कि 2025 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा नीतीश होंगे। साथ ही एलजेपी (रामविलास) ने भी नीतीश के प्रति सुलह का रुख अपनाया है, परन्तु भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक इस नए समीकरण को कितना स्वीकार कर पाएंगे, यह देखना बाकी है।

गठबंधन के भीतर के अंतर्विरोध

इस समय एनडीए में भाजपा, जदयू, एलजेपी (रामविलास), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल हैं। नीतीश कुमार के लिए 2025 की रणनीति को लेकर एक प्रमुख चिंता यह भी है कि महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, लेफ्ट और अन्य छोटे दलों का प्रभाव बढ़ा है, जिससे विधानसभा में मुकाबला कठिन हो सकता है। महागठबंधन युवाओं को नौकरियों के मुद्दे पर अपनी ओर खींच रहा है, जिसका जिक्र तेजस्वी यादव कर रहे हैं।

एंटी-इनकंबेंसी और युवा नेतृत्व का उभार

19 वर्षों से मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नीतीश कुमार अब एंटी-इनकंबेंसी का भी सामना कर रहे हैं। यह देखा गया है कि मुकेश साहनी जैसे नेता और लेफ्ट पार्टियां तेजस्वी यादव के साथ मजबूती से खड़ी हैं। पिछले चुनावों में तेजस्वी के प्रति युवाओं का झुकाव भी नजर आया था।

इस बार नीतीश अपनी टीम के साथ हर जिले में एनडीए के घटक दलों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ताकि गठबंधन को मजबूती मिल सके।

एनडीए में बढ़ते अंतर्विरोध और चुनावी चुनौती

एनडीए के भीतर यूसीसी और शराबबंदी जैसे मुद्दों पर भी मतभेद बने हुए हैं। वक्फ संशोधन बिल पर जेपीसी को भेजे जाने को लेकर भी अंदरूनी विरोध देखा गया। इस बीच, कई मुद्दों पर नीतीश कुमार और भाजपा के विचार नहीं मिलते, जो गठबंधन के लिए चिंता का विषय है।

नीतीश कुमार के पास अभी भी एक महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि वे एनडीए के हर घटक दल के हितों को एकजुट कर सकें।

निचले स्तर पर एकजुटता का प्रयास

नीतीश ने इस बार सभी सांसदों, विधायकों, एमएलसी और जिलाध्यक्षों को एक साथ बुलाकर एनडीए की एकजुटता पर जोर दिया। नीतीश का मानना है कि 2020 के चुनाव परिणामों से सबक लेते हुए गठबंधन को किसी भी प्रकार के विभाजन से बचाना आवश्यक है।

जदयू का गिरता ग्राफ और नए विकल्पों का उदय

जदयू की सीटों का गिरता ग्राफ भी नीतीश के लिए चिंता का विषय है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी नीतीश के खिलाफ नई चुनौती बन सकती है। कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर, चिराग पासवान की भूमिका में सामने आ सकते हैं, जो भाजपा के मतदाताओं को जदयू से दूर कर सकते हैं। यही कारण है कि नीतीश इस बार एनडीए के हर घटक दल को एकजुट रखने का प्रयास कर रहे हैं ताकि किसी भी तरह का असंतोष उनके खिलाफ ना जाए।

चुनावी अभियान का फोकस

नीतीश कुमार ने आगामी चुनावों में "नीतीश सरकार" की बजाय "एनडीए सरकार" के नाम पर प्रचार करने का फैसला लिया है। नीतीश का मानना है कि यह रणनीति मतदाताओं को एनडीए की एकजुटता का संदेश देगी और आंतरिक विरोध को दरकिनार करने में मदद करेगी।

निष्कर्ष

नीतीश कुमार को इस बार चुनावी हार का डर ज्यादा सता रहा है। उन्होंने एनडीए के घटक दलों के साथ मिलकर एकजुटता बनाए रखने का फैसला किया है ताकि जनता के बीच गठबंधन की मजबूती का संदेश जाए। नीतीश कुमार जानते हैं कि इस बार का चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य का फैसला करेगा, इसलिए वे अपने सभी घटक दलों के साथ एकता बनाए रखने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

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