Bihar Politics: नीतीश ने कुरेदे भागलपुर दंगे के जख्म, महागठबंधन का फॉर्मूला बिहार में बिगड़ न जाए

Bihar Politics - नीतीश ने कुरेदे भागलपुर दंगे के जख्म, महागठबंधन का फॉर्मूला बिहार में बिगड़ न जाए
| Updated on: 25-Feb-2025 11:40 AM IST

Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव भले ही आठ महीने दूर हों, लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां अभी से तेज हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बिहार को विकास की सौगातें देते हुए हिंदुत्व और सुशासन पर जोर दिया, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भागलपुर दंगे का मुद्दा उठाकर आरजेडी-कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया। नीतीश कुमार ने यह आरोप लगाया कि उनके सत्ता में आने से पहले की सरकारें मुस्लिम वोटों की राजनीति करती थीं, लेकिन सांप्रदायिक झगड़े रोकने में नाकाम रहीं।

भागलपुर दंगे की पृष्ठभूमि

अक्टूबर 1989 में बिहार के भागलपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों में करीब एक हजार लोगों की जान गई थी। इस घटना का राज्य की राजनीति पर गहरा असर पड़ा, जिससे कांग्रेस से मुस्लिम वोट बैंक छिटककर जनता दल की ओर चला गया। बाद में लालू प्रसाद यादव ने सत्ता संभाली और मुस्लिम समुदाय को अपने कोर वोटर के रूप में बनाए रखा। हालांकि, भागलपुर दंगे के पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस मुद्दे पर नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के कार्यों को प्रमुखता से रखा और बार-बार इसे अपनी रैलियों में उठाते रहे।

नीतीश का सियासी वार

नीतीश कुमार ने हाल ही में पीएम मोदी की मौजूदगी में भागलपुर दंगे का मुद्दा उठाया और आरजेडी-कांग्रेस पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद ही पीड़ितों को न्याय मिला और दोषियों को सजा दिलाई गई। उन्होंने आरोप लगाया कि लालू-राबड़ी सरकार के कार्यकाल में इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि आरोपी सत्ताधारी दल के समर्थक थे। नीतीश ने खुद को मुस्लिम समुदाय का हितैषी बताते हुए कहा कि उन्होंने भागलपुर दंगे के पीड़ितों के लिए आयोग गठित किया और उनकी सहायता सुनिश्चित की।

मुस्लिम वोटों पर दांव

बिहार में 17% मुस्लिम मतदाता हैं, जो 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम वोट कभी कांग्रेस का आधार था, लेकिन लालू यादव के उदय के बाद आरजेडी की ओर चला गया। 2005 के बाद, जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो मुस्लिमों का एक बड़ा तबका जेडीयू के साथ भी जुड़ा। हालांकि, 2017 में जब नीतीश ने आरजेडी से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन किया, तब मुस्लिम मतदाता उनसे दूर होते गए। 2020 के चुनाव में यह साफ दिखा जब जेडीयू को महज 43 सीटें मिलीं।

मुस्लिम वोटों की नई रणनीति

नीतीश कुमार को अंदेशा है कि बीजेपी के साथ उनकी निकटता मुस्लिम वोटों को उनसे और दूर कर सकती है। यही कारण है कि वे बार-बार भागलपुर दंगे का मुद्दा उठाकर यह संदेश देना चाहते हैं कि वे मुस्लिम समुदाय के सच्चे हितैषी हैं। वे दिखाना चाहते हैं कि कांग्रेस और आरजेडी ने मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया, बल्कि सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया।

महागठबंधन की चुनौतियां

आरजेडी और कांग्रेस के लिए भागलपुर दंगा एक कमजोर कड़ी साबित हो सकता है। लालू यादव और राबड़ी देवी के 15 साल के शासन के दौरान इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश इस मुद्दे को उठाकर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि आरजेडी-कांग्रेस इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।

क्या बदलेगा बिहार का सियासी समीकरण?

बिहार में मुस्लिम वोट अभी भी महागठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार की कोशिश इन्हें अपनी ओर मोड़ने की है। भागलपुर दंगे के बहाने वे खुद को न्यायप्रिय और मुस्लिमों का सच्चा हितैषी साबित करने में जुटे हैं। ऐसे में देखना होगा कि उनकी यह रणनीति आगामी चुनावों में कितना असर डालती है।

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