Rajendra Rathore News: पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने हाल ही में बीकानेर के श्रीडूंगरगढ़ में रघुकुल समाज द्वारा आयोजित राजपूत समाज के प्रतिभा सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार साझा किए। उनके भाषण में आत्मचिंतन, सामाजिक एकता, और आधुनिक युग में बदलाव की आवश्यकता जैसे गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डाला गया। यह लेख उनके भाषण के प्रमुख बिंदुओं का विश्लेषण करता है और उनके संदेश के सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है।
राठौड़ ने अपने भाषण की शुरुआत अपने व्यक्तिगत अनुभव से की, जिसमें उन्होंने बताया कि लोग उनके बारे में कहते हैं कि वे कभी ऊंचाइयों पर थे—नेता प्रतिपक्ष के रूप में, मुख्यमंत्री पद की चर्चाओं में, लेकिन अब "धरती पर लौट आए हैं।" इस कथन के माध्यम से उन्होंने जीवन की नश्वरता और उतार-चढ़ाव को रेखांकित किया। उनकी यह बात दर्शाती है कि सफलता और विफलता जीवन का हिस्सा हैं, और हमें दूसरों की कमियां ढूंढने के बजाय उनकी यात्रा को समझने की जरूरत है।
उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों लोग ऊंचाइयों पर पहुंचकर अचानक ढह जाते हैं, और समाज उनकी असफलता पर सहानुभूति दिखाने के बजाय उपहास करता है। यह एक गहरी सामाजिक टिप्पणी है, जो हमारे समाज में दूसरों की कमजोरियों को उजागर करने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाती है। राठौड़ का यह कथन हमें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है कि हम अपने ही लोगों को प्रोत्साहित करने के बजाय उनकी आलोचना क्यों करने लगते हैं।
राठौड़ ने एकता के महत्व पर जोर देते हुए एक सुंदर उदाहरण दिया। उन्होंने पुराने समय के बैंड और पंचमेल सब्जी की तुलना दी, जहां विभिन्न वाद्य यंत्रों या सब्जियों का मेल ही उसे अनूठा और कर्णप्रिय बनाता है। इस उपमा के जरिए उन्होंने संदेश दिया कि लोकतंत्र की सफलता सभी की भागीदारी और विविधता के सम्मान में निहित है। उनका कहना था कि हमें सभी को साथ लेकर चलना होगा, तभी लोकतंत्र मजबूत होगा। यह संदेश आज के विभाजनकारी माहौल में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण आम बात हो गई है।
राठौड़ ने पैतृक भूमि और संयुक्त परिवारों के टूटने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हम उस धरती से दूर हो रहे हैं, जिसके लिए हमारे पूर्वजों, जैसे महाराणा प्रताप और राणा सांगा, ने युद्ध लड़े और बलिदान दिए। उन्होंने आधुनिकता और सोशल मीडिया के दौर में रिश्तों के टूटने और पैतृक गांवों से दूरी बढ़ने पर अफसोस जताया। उनका यह कथन हमें अपनी जड़ों के प्रति सम्मान और उनकी रक्षा के महत्व को याद दिलाता है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम अपनी पैतृक भूमि को बेच देंगे, तो भविष्य में हमारी पहचान खो जाएगी। यह एक गंभीर चिंतन है, जो युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के प्रति जागरूक होने का आह्वान करता है।
कार्यक्रम में राजपूत समाज की प्रतिभाओं का सम्मान किया गया, और राठौड़ को एक तलवार भेंट की गई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि तलवार भले ही शौर्य का प्रतीक हो, लेकिन अब समय बदल गया है। आज का युग तलवार या भाले का नहीं, बल्कि कलम का है। उन्होंने जोर दिया कि अब हमें "सर कटवाने" की नहीं, बल्कि "सर गिनवाने" की हिम्मत दिखानी होगी। यह एक शक्तिशाली संदेश है, जो शिक्षा, बौद्धिकता और लोकतांत्रिक भागीदारी के महत्व को रेखांकित करता है।