Rajasthan Politics: राजस्थान में अनपढ़ नहीं लड़ पाएंगे पार्षद-सरपंच चुनाव: 10वीं पास की अनिवार्यता का प्रस्ताव

Rajasthan Politics - राजस्थान में अनपढ़ नहीं लड़ पाएंगे पार्षद-सरपंच चुनाव: 10वीं पास की अनिवार्यता का प्रस्ताव
| Updated on: 25-Dec-2025 12:43 PM IST
राजस्थान सरकार अगले साल होने वाले पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों में उम्मीदवारों के लिए शैक्षणिक योग्यता को फिर से लागू करने पर विचार कर रही है और इस संबंध में दो महत्वपूर्ण विभागों ने मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजे हैं, जिस पर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री स्तर पर लिया जाएगा। यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत होता है, तो अनपढ़ व्यक्ति पार्षद, सरपंच, मेयर, सभापति, नगरपालिका अध्यक्ष, प्रमुख, प्रधान, जिला परिषद मेंबर और पंचायत समिति मेंबर जैसे पदों के लिए चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। यह कदम राज्य में स्थानीय स्वशासन के प्रतिनिधियों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि को। बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है।

शैक्षणिक योग्यता लागू करने की तैयारी

राज्य सरकार ने पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू करने की दिशा में अपनी तैयारी तेज कर दी है। शहरी विकास एवं आवासन (यूडीएच) मंत्री ने शहरी निकाय चुनावों के लिए और पंचायतीराज मंत्री ने पंचायतीराज चुनावों के लिए शैक्षणिक योग्यता लागू करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास मंजूरी के लिए भेजा है और इन प्रस्तावों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्थानीय स्तर पर चुने गए प्रतिनिधि न्यूनतम शैक्षिक मानक पूरे करें, जिससे वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन अधिक प्रभावी ढंग से कर सकें। यह पहल राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।

प्रस्तावित योग्यताएं और पद

भेजे गए प्रस्तावों में विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताएं प्रस्तावित की गई हैं। सरपंच के पद के लिए कम से कम 10वीं पास होने की अनिवार्यता लागू करने का प्रस्ताव है। वहीं, पार्षदों के लिए 10वीं और 12वीं में से किसी एक योग्यता को लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है। इसका अर्थ है कि यदि ये प्रस्ताव लागू होते हैं, तो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन के प्रमुख पदों पर चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता अनिवार्य हो जाएगी। यह कदम जनप्रतिनिधियों की कार्यक्षमता और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

कानूनी संशोधन की प्रक्रिया

पंचायतीराज और निकाय चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता लागू करने हेतु मौजूदा कानूनों में संशोधन करना आवश्यक होगा। पंचायतीराज एक्ट और नगरपालिका कानून में बदलाव करने होंगे। पंचायतीराज मंत्री खर्रा ने बताया है कि मुख्यमंत्री स्तर से मंजूरी मिलने के बाद, इस उद्देश्य के लिए दो अलग-अलग बिल लाए जाएंगे और इन बिलों को विधानसभा के आगामी बजट सत्र में पेश किया जा सकता है और पारित कर कानून में संशोधन करवाया जा सकता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि नए नियम कानूनी रूप से मान्य हों और भविष्य के चुनावों में प्रभावी ढंग से लागू किए जा सकें।

2015 में वसुंधरा राजे सरकार का फैसला

यह पहली बार नहीं है जब राजस्थान में स्थानीय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे पहले, 2015 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने भी पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू की थी और उस समय, यह फैसला चुनाव से ठीक पहले लिया गया था और कैबिनेट से भी सर्कुलेशन के माध्यम से मंजूरी ली गई थी ताकि यह मामला गोपनीय रहे। उस वक्त, सरपंच के लिए आठवीं पास और आदिवासी इलाके (टीएसपी एरिया) में सरपंच के लिए पांचवीं पास होना अनिवार्य था। वार्ड पंच के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं थी। पंचायत समिति मेंबर और जिला परिषद मेंबर के लिए 10वीं पास की योग्यता लागू की गई थी, जबकि पार्षद और निकाय प्रमुखों के लिए भी 10वीं पास की योग्यता निर्धारित की गई थी।

गहलोत सरकार द्वारा प्रावधान रद्द करना

2015 में वसुंधरा राजे सरकार द्वारा लागू किए गए शैक्षणिक योग्यता के प्रावधान का कांग्रेस ने भारी विरोध किया था। कांग्रेस ने इसे एक चुनावी मुद्दा भी बनाया था। 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद, 2019 में इस प्रावधान को हटा दिया गया था और उस समय, कांग्रेस का तर्क था कि यह प्रावधान बड़ी संख्या में लोगों को चुनाव लड़ने से वंचित करता है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सीमित करता है। इस प्रकार, गहलोत सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार के इस निर्णय को पलट दिया था, जिससे सभी नागरिकों को, उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, चुनाव लड़ने का अवसर मिल सके।

राजनीतिक निहितार्थ और लाभ

2015 में पंचायतीराज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान लागू करने। से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को गांवों में फायदा हुआ था। उस समय कांग्रेस की तुलना में बीजेपी से ज्यादा संख्या में स्थानीय जनप्रतिनिधि जीतकर आए थे। अब फिर से बीजेपी के एक धड़े ने ही इस प्रावधान को लागू करने की पैरवी की है, जिसके बाद वर्तमान सरकार ने प्रस्ताव तैयार कर मुख्यमंत्री को भेजा है। यह दर्शाता है कि राजनीतिक दल इस प्रावधान के संभावित चुनावी लाभों को समझते हैं और शैक्षणिक योग्यता लागू करने से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जनप्रतिनिधियों की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही है, जिससे स्थानीय प्रशासन और विकास कार्यों में अधिक दक्षता आ सकती है।

मुख्यमंत्री के अंतिम निर्णय का इंतजार

फिलहाल, इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री के अंतिम निर्णय का इंतजार है। यदि मुख्यमंत्री इसे मंजूरी देते हैं, तो राजस्थान के स्थानीय चुनावों के परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव आएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस बार किस तरह से इस। प्रावधान को लागू करती है और इसके क्या दूरगामी परिणाम होते हैं। यह निर्णय न केवल चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करेगा, बल्कि राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नेतृत्व की प्रकृति को भी बदल सकता है, जिससे एक अधिक शिक्षित और सक्षम नेतृत्व उभरने की संभावना है।

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