Lok Sabha: राशिद और अमृतपाल ने अपने सांसद पद की ली शपथ, परिवार से मिलकर आज वापस जाएंगे जेल

Lok Sabha - राशिद और अमृतपाल ने अपने सांसद पद की ली शपथ, परिवार से मिलकर आज वापस जाएंगे जेल
| Updated on: 05-Jul-2024 01:02 PM IST
Lok Sabha: दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कश्मीरी नेता शेख अब्दुल राशिद और असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने शुक्रवार (5 जुलाई) को सांसद पद की शपथ ली। दोनों आज पैरोल पर बाहर आए और संसद भवन में शपथ ली। इंजीनियर राशिद को शपथ लेने के लिए तिहाड़ जेल से दो घंटे की पैरोल मिली थी। वहीं, अमृतपाल सिंह को 4 दिन की पैरोल मिली है। हालांकि, परिवार से मुलाकात के बाद दोनों को आज ही वापस तिहाड़ और डिब्रूगढ़ जेल ले जाया जाएगा।

राशिद ने जेल में रहते हुए जम्मू-कश्मीर के बारामूला सीट से 2024 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत टेरर फंडिंग का केस दर्ज है। अमृतपाल पंजाब के खडूर साहिब से लोकसभा चुनाव जीता है।

अमृतपाल के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत केस दर्ज है। जेल में रहने के कारण दोनों 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में 24 और 25 जून को अन्य सांसदों के साथ शपथ नहीं ले सके थे। नए सांसद के लिए 60 दिन के अंदर शपथ लेना जरूरी होता है। ऐसा न होने पर उसकी सदस्यता जा सकती है।

लोकसभा के लिए आर्टिकल-99 और राज्यसभा के लिए आर्टिकल-188 ये तय करते हैं कि हर सांसद को पदभार संभालने से पहले शपथ लेना जरूरी है। सांसद जब तक शपथ नहीं लेता, तब तक सदन की किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकता। शपथ लेने तक वो संसद सदस्य होने के अधिकारों का फायदा भी नहीं ले सकता।

संविधान के तहत सांसद को 60 दिनों के अंदर शपथ लेनी अनिवार्य है। अगर कोई सांसद इस अवधि में शपथ नहीं ले पाता है, तो उसकी सीट खाली मानी जा सकती है। हालांकि, कुछ खास परिस्थितियों में ये अवधि बढ़ाने का भी प्रावधान है। बिना विस्तार के शपथ न लेने पर सांसद की सीट खाली घोषित की जा सकती है।

60 दिन के अंदर ही सांसद अवधि बढ़ाने की मांग कर सकता है। इसके लिए उसे एक आवेदन करना होगा, जिसमें उसे अपनी अनुपस्थिति की वजह का जिक्र करना होगा।

लोकसभा में सदस्यों की हाजिरी की निगरानी के लिए कमेटी बनाई जाती है। स्पीकर इस कमेटी में सदस्यों को नियुक्ति करते हैं। इसमें आम तौर पर वरिष्ठ और अनुभवी सदस्य शामिल किए जाते हैं। कमेटी की जिम्मेदारी मामलों की निष्पक्ष समीक्षा और फैसला करना है।

सभी गैरमौजूद सांसदों को कमेटी को अपनी गैरमौजूदगी की वजह बतानी होती है। फिर समिति की सिफारिशें सदन में पेश की जाती हैं, जिस पर वोटिंग के बाद अंतिम फैसला होता है।

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