Swami Vivekanand Jayanti: स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर पढ़ें उनसे जुड़े रोचक प्रसंग
Swami Vivekanand Jayanti - स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर पढ़ें उनसे जुड़े रोचक प्रसंग
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Updated on: 12-Jan-2022 09:35 AM IST
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को भारत में पूरे उत्साह और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस “युवा दिवस” या “स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस” के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म पौष माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि में वर्ष 1863 में 12 जनवरी को हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. इसे आधुनिक भारत के निर्माता स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को याद करने के लिये मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को मनाने के लिये वर्ष 1984 में भारतीय सरकार द्वारा इसे पहली बार घोषित किया गया था। तब से स्वामी विवेकानन्द की जयंती 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाती है। आइए पढ़ते हैं स्वामी विवेकानंद जी से जुड़े कुछ ऐसे रोचक और अनसुने प्रसंग जो आपने कहीं पहले नहीं पढ़े होंगे। मूर्तिपूजा का औचित्य अलवर के दीवान राजा मंगल सिंह ने विवेकानंद को मुलाकात के लिए 1891 में बुलावा भेजा। मंगल सिंह ने विवेकानंद से कहा कि “स्वामीजी ये सभी लोग मूर्तिपूजा करते हैं। मैं मूर्तिपूजा में यकीन नहीं करता। मेरा क्या होगा?” पहले तो स्वामीजी ने कहा कि “हर किसी को उसका विश्वास मुबारक।” फिर कुछ सोचते हुए स्वामीजी ने राजा का चित्र लाने के लिए कहा। जब दीवार से उतारकर राजा का तैल चित्र लाया गया तो स्वामीजी ने दीवान से तस्वीर पर थूकने के लिए कहा। दीवान उनकी बात से अजीब निगाहों से उन्हें देखने लगे। तब स्वामी जी ने कहा कि यह तो मात्र एक कागज का टुकड़ा है फिर भी आपको इसमें हिचक महसूस हो रही है क्योंकि आप सबको पता है कि ये आप के राजा का प्रतीक है? स्वामीजी ने राजा से कहा, “आप जानते हैं कि ये केवल चित्र है फिर भी इस पर थूकने पर आप अपमानित महसू करेंगे। यही बात उन सभी लोगों पर लागू होती है जो लकड़ी, मिट्टी और पत्थर से बनी मूर्ति की पूजा करते हैं। वो इन धातुओं की नहीं बल्कि अपने ईश्वर के प्रतीक की पूजा करते हैं।मठ में औरतों के प्रवेश पर रोक स्वामी विवेकानंद नियम और कायदे के पक्के थे। जो नियम उन्होंने बनाए थे, वे सबके ऊपर लागू होते थे। स्वामी विवेकानंद के मठ में किसी भी औरत का प्रवेश निषिद्ध था। एक बार स्वामी जी बीमार हो गए ऐसे में उनके शिष्यों ने उनकी माता को उन्हें देखने के लिए मठ में प्रवेश दे दिया लेकिन स्वामी जी इस बात पर बहुत क्रोधित हुए। विवेकानंद ने अपने शिष्यों को डांटते हुए कहा, “तुम लोगों ने एक महिला को अंदर क्यों आने दिया? मैंने ही नियम बनाया और मेरे लिए ही नियमों को तोड़ा जा रहा है!” विवेकानंद ने शिष्यों से साफ कह दिया कि मठ के किसी नियम को उनके लिए भी न तोड़ा जाए।
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