Donald Trump: सऊदी प्रिंस को अमेरिका का 'धोखा': F-35 जेट डील में ट्रंप का नया दांव

Donald Trump - सऊदी प्रिंस को अमेरिका का 'धोखा': F-35 जेट डील में ट्रंप का नया दांव
| Updated on: 27-Nov-2025 12:32 PM IST
हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच व्हाइट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच कई रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें एक प्रमुख मुद्दा अमेरिका द्वारा सऊदी अरब को F-35 लड़ाकू जेट की संभावित बिक्री भी शामिल थी और इस बैठक के बाद यह संकेत मिला था कि सऊदी अरब को ये अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिल सकते हैं, जिससे उसकी सैन्य क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। हालांकि, अब इस डील को लेकर एक नया मोड़ सामने आया है,। जो सऊदी अरब के लिए एक तरह का 'धोखा' साबित हो सकता है।

F-35 डील और उसकी बारीकियां

शुरुआती चर्चाओं और व्हाइट हाउस में हुई बैठक के दौरान, ऐसा प्रतीत हुआ कि अमेरिका सऊदी अरब को F-35 लड़ाकू विमानों की बिक्री के लिए सहमत हो गया है और यह डील सऊदी अरब के लिए अपनी वायु सेना को आधुनिक बनाने और क्षेत्र में अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होता। लेकिन, Axios की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी और इजराइली अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी सामने आई है कि सऊदी अरब को जो F-35 जेट मिलेंगे, वे इजराइल के पास मौजूद विमानों की तुलना में कम उन्नत क्षमता वाले होंगे। अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने स्वयं इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को इस बात की पुष्टि की है। यह खुलासा इस पूरे सौदे की जटिलताओं और अमेरिका की मध्य पूर्व नीति में इजराइल की सुरक्षा को दी जाने वाली प्राथमिकता को दर्शाता है।

इजराइल की क्षेत्रीय सैन्य बढ़त (QME)

अमेरिका का यह कदम इजराइल की क्षेत्रीय सैन्य बढ़त (Qualitative Military। Edge - QME) को बनाए रखने के लिए उठाया गया है। QME एक अमेरिकी कानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि इजराइल के पास मध्य पूर्व में किसी भी संभावित विरोधी की तुलना में सैन्य तकनीकी श्रेष्ठता बनी रहे। यह नीति इजराइल की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है और अमेरिकी विदेश नीति का एक आधारभूत स्तंभ है। अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सऊदी अरब को F-35 जैसे उन्नत विमानों की बिक्री से इजराइल की यह सैन्य बढ़त किसी भी तरह से प्रभावित न हो। इजराइल वर्तमान में दो स्क्वाड्रन F-35 लड़ाकू विमानों का संचालन कर रहा है और उसने तीसरे स्क्वाड्रन का ऑर्डर भी दिया हुआ है, जो उसकी वायु सेना की रीढ़ हैं। इसके विपरीत, सऊदी अरब को दो स्क्वाड्रन दिए जाएंगे, और उनकी डिलीवरी भी कई सालों में। की जाएगी, जिससे इजराइल को अपनी सैन्य श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।

सऊदी F-35 में कम की गई क्षमताएं

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की ओर से सऊदी अरब को दिए। जाने वाले F-35s में इजराइल के विमानों वाली अत्याधुनिक क्षमताएँ नहीं होंगी। इन क्षमताओं में अत्याधुनिक हथियार प्रणालियाँ, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण और रडार-जैमिंग तकनीक शामिल हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ F-35 को एक अत्यंत प्रभावी और घातक लड़ाकू विमान बनाती हैं, जो दुश्मन के रडार से बचते हुए सटीक हमले करने और हवाई युद्ध में श्रेष्ठता हासिल करने में सक्षम है। इन उन्नत प्रणालियों के अभाव में, सऊदी अरब के F-35 विमानों की मारक क्षमता और युद्धक प्रभावशीलता इजराइल के विमानों की तुलना में कम होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी वाशिंगटन में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ अपनी बैठक में इस बात का जिक्र किया था कि इजराइल चाहता है कि सऊदी अरब को मिलने वाले F-35 कम क्षमता वाले हों। इस बैठक में ट्रंप ने यह भी बताया था कि सऊदी अरब लगभग 300 अमेरिकी टैंकों की खरीद करेगा, जो दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का एक और पहलू है।

अमेरिका-इजराइल परामर्श और सुरक्षा चिंताएं

अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो इजराइल के अधिकारियों के साथ लगातार चर्चा कर रहे हैं ताकि। यह सुनिश्चित किया जा सके कि अमेरिका-सऊदी सौदा इजराइल की QME नीति को प्रभावित न करे। पेंटागन को यह डर है कि अगर सऊदी अरब को ये विमान पूरी उन्नत क्षमताओं के। साथ मिल गए, तो मध्य पूर्व में इजराइल की सैन्य बढ़त खतरे में पड़ सकती है। यह चिंता अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान में गहराई से निहित है। इसके अलावा, Axios की 15 नवंबर की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल अमेरिका से सुरक्षा गारंटी की मांग कर। सकता है कि F-35 की बिक्री केवल तभी होगी जब सऊदी अरब और इजराइल के बीच संबंध सामान्य हों। यह मांग इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरणों को और जटिल बनाती है, क्योंकि यह रक्षा सौदे को राजनीतिक सामान्यीकरण से जोड़ती है। Bloomberg ने 14 नवंबर को रिपोर्ट किया था कि ट्रंप और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान वाशिंगटन दौरे। के दौरान F-35 बिक्री पर समझौता कर सकते हैं, लेकिन तब तक इन बारीकियों का खुलासा नहीं हुआ था।

व्यापक निहितार्थ और भविष्य की संभावनाएं

इस निर्णय के मध्य पूर्व की सुरक्षा गतिशीलता पर व्यापक निहितार्थ होंगे। एक ओर, यह अमेरिका की इजराइल के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, वहीं दूसरी ओर, यह सऊदी अरब जैसे प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगी के साथ संबंधों में एक जटिलता भी पैदा करता है। सऊदी अरब, जो अपनी रक्षा क्षमताओं को आधुनिक बनाने और ईरान जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, उसे उम्मीद थी कि उसे सबसे उन्नत F-35 मिलेंगे। हालांकि, कम क्षमता वाले जेट मिलने से उसकी रणनीतिक योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं और यह स्थिति अमेरिका की 'पहले इजराइल' की नीति को स्पष्ट रूप से दर्शाती है, भले ही इसके लिए अपने अन्य सहयोगियों के साथ कुछ समझौतों को संशोधित करना पड़े। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सऊदी अरब इस फैसले पर। कैसी प्रतिक्रिया देता है और यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को कैसे प्रभावित करता है।

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