Viral News: साइंटिस्ट का दावा- भविष्य में आएगा खाने का संकट, कीड़ों का लार्वा खाने को मजबूर होंगे इंसान
Viral News - साइंटिस्ट का दावा- भविष्य में आएगा खाने का संकट, कीड़ों का लार्वा खाने को मजबूर होंगे इंसान
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Updated on: 18-May-2021 06:34 AM IST
Delhi: अभी आप नाश्ते में क्या खाते हैं? टोस्ट, पोहा, अंडे, दूध या फल।।। लेकिन भविष्य में आपको नाश्ते और स्नैक्स में खाने के लिए कीड़ों के लार्वा, प्रोटीनयुक्त सफेद कीड़े, फंगस से निकला हुआ प्रोटीन और एल्गी खाने को मिल सकता है। क्योंकि ये तेजी से दुनियाभर में फैल रहे हैं। दिक्कत ये है कि जिस तरह से क्लाइमेट चेंज हो रहा है। महामारियां आ रही है। जंगलों में आग लग रही है। बाढ़ आ रही है। ऐसे में उन चीजों की कमी होगी जिन्हें आमतौर पर खाते हैं। फिर आपको कीड़ों का लार्वा और एल्गी यानी काई खाकर ऊर्जा प्राप्त करनी होगी। यह स्टडी की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) के साइंटिस्ट्स ने। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एक्सिसटेंशियल रिस्क के रिसर्च एसोसिएट असफ जाचोर (Asaf Tzachor) ने कहा कि जब ऐसी महामारियां और प्राकृतिक आपदाएं आएंगी तब खाने की किल्लत होगी। गरीब देशों को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में इंसानों को जीवित रहने के लिए ऐसे खाने की जरूरत पड़ेगी जो कम खाने पर भी पूरी ताकत दे और इंसान सेहतमंद भी रहे। असफ जाचोर ने बताया कि ऐसी खाद्य सामग्रियों को हम 'भविष्य का खाना' (Future Foods) कहते हैं। इंसानों के सामने मजबूरी ये होगी कि उन्हें मछलियों की तरह खाना होगा। वो काई यानी एल्गी खाएंगे। फंगस से निकलने वाला प्रोटीन खाएंगे। यहां तक कि उन्हें कीड़ों के सफेद लार्वा तक को खाना पड़ सकता है। वर्तमान स्थिति देखते हुए इंसानों को चाहिए कि वो कुछ ऐसा काम करें कि भविष्य में सिर्फ यह कीड़े और एल्गी खाने को न मिले।असफ जाचोर ने बताया कि हमारा खाने का सिस्टम पूरी तरह से पौधों और जानवरों पर आधारित है। हमने कभी एल्गी और कीड़े नहीं खाए। लेकिन भविष्य में आपके सामने तालाब में जमी काई आपके सरसों के साग की जगह ले सकती है। या फिर पालक-पनीर की जगह एल्गी-पनीर खा रहे हों। अगर इन्हें खाने से बचना है तो हमें कुछ पारंपरिक खाद्य सामग्रियों को भविष्य में जिंदा रखना होगा। जिसमें फल, सब्जियां आदि आते हैं। फिर कीड़े और एल्गी सिर्फ सप्लीमेंट्री फूड्स का काम करेंगेअसफ ने कहा कि कीड़ों के लार्वा में काफी ज्यादा प्रोटीन होता है। वहीं एल्गी में काफी ज्यादा मात्रा में न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं। लेकिन उन्हें किस तरह से खाना है, इसका तरीका अभी तक उनकी जानकारी में नहीं है। हालांकि असफ ने ये कहा कि इनसे भविष्य में हमारे पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाएगी। WHO के मुताबिक दुनिया में पांच साल से कम उम्र के 2 करोड़ से ज्यादा बच्चों को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते। हमारी प्राथमिकता है कि वैश्विक स्तर पर मैक्रो और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी किसी में न हो। असफ ने कहा कि वैसे भी कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में कीड़े, लार्वा, फंगस आदि भोजन में शामिल है। लोग इसे खाते हैं। ताकि वो अपने पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सकें। हालांकि दुनिया के कई इलाकों में अभी आर्थोपोड्स (Arthropods) यानी संधिपाद जीवों को खाने का प्रचलन नहीं है लेकिन कुछ जगहों पर इन्हें भी खाया जाता है। कई देशों में कीड़े, मकौड़े, एल्गी, बीटल्स आदि को खाने को लेकर मानसिक और पारंपरिक बाध्यताएं या अस्वीकार्यता है।असफ ने कहा कि भविष्य में ये बाध्यताएं कम हो सकती है। लोग इन्हें पूरी तरह से खाएंगे या फिर इनके हिस्सों या अंगों को। क्योंकि आजकल सीवीड्स (Seaweed) यानी समुद्री सिवार की खेती तेजी से बढ़ रही है। यह एक्वाकल्चर का नया आयाम है जो तेजी से पनप रहा है। इसके अलावा लोग फंगल प्रोटीन खाने के लिए काफी उत्सुक दिखते हैं। फंगल प्रोटीन में आपके मशरूम्स भी आते हैं। अच्छी बात ये है कि हम इन चीजों की उत्पादन या फसल घर के बाहर आंगन या अहाते में ही कर सकते हैं। इनके लिए वर्टिकल फार्मिंग या इससे मिलते जुलते तरीके अपना सकते हैं। ऐसी खेती अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भी होती है। असफ ने कहा कि उन्होंने 500 से ज्यादा साइंटिफिक पेपर्स का एनालिसिस किया है। इसके बाद फील्ड स्टडीज भी की। इसमें ये बात निकल कर आई कि इन चीजों को खाने से कार्बन फुटप्रिंट्स कम छोड़ते हैं।असफ ने बताया कि घर में वर्टिकल या मॉड्यूलर डिजाइन वाली खेती करके इन चीजों को पनपा सकते हैं। यानी आप घर में ही कीड़े, एल्गी, फंगस और बीटल्स जैसे जीव का उत्पादन कर सकते हैं। अगर उत्पादन बड़े पैमाने पर नहीं कर सकते तो किचन गार्डन जैसा बना सकते हैं। इस तरह की खेती और उत्पादन से आर्थिक व्यवस्था सर्कुलेट होगी। इससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा और पोषक तत्वों की कमी नहीं होगी। असफ जाचोर ने कहा कि हमारे पास अब यह सोचकर समय नहीं खर्च करना है कि क्या खाएं? हमें समकालीन समाज को समझाना होगा कि इन चीजों की दुनिया में कमी नहीं है। जो भी आपके शरीर को नुकसान न पहुंचाए उसे खाया जा सकता है। हमें अपने पारंपरिक सोच को बदलना होगा। इससे भविष्य में करोड़ों लोगों को खाना मिल सकेगा।
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