चेतावनी: धुआंरहित तंबाकू से भारत में होती है विश्व की 70 फीसदी मौत

चेतावनी - धुआंरहित तंबाकू से भारत में होती है विश्व की 70 फीसदी मौत
| Updated on: 15-Aug-2020 09:14 AM IST
तंबाकू: धुआं रहित तंबाकू यानी गुटखा, पान मसाला, खैनी आदि के जरिए भारतीय लगातार मौत का ‘स्वाद’ ले रहे हैं। यह बात हाल ही में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क की तरफ से किए गए अध्ययन में सामने आई है। शुष्क तंबाकू पदार्थों से होने वाली खतरनाक बीमारियों के वैश्विक आंकड़े में अकेले भारत की 70 फीसदी हिस्सेदारी है, जो हमारे देश को इन बीमारियों का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट साबित कर रही हैं।

अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले सात साल के दौरान वैश्विक स्तर पर धुआं रहित तंबाकू के सेवन से होने वाली मौत के आंकडे़ में करीब एक तिहाई बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस दौरान वैश्विक स्तर पर करीब 3.5 लाख लोग काल के गाल में समा चुके हैं। अध्ययन के सह लेखक कामरान सिद्दीकी का का कहना है कि बीएमसी मेडिसिन जर्नल में यह अध्ययन ऐसे समय में पेश किया गया है, जब थूकने से कोरोना संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ने को लेकर समाज में चिंतन पैदा हुआ है।

बता दें कि तंबाकू पदार्थ चबाने वालों में जरूरत से ज्यादा थूकना एक सामान्य आदत होती है। खासतौर पर भारत जैसे देश में तंबाकू खाने वालों की ‘थूक चित्रकारी’ का नजारा कहीं भी दीवारों पर देखने को मिल जाता है। उन्होंने कहा, तंबाकू पदार्थों का उपयोग करने वालों में से करीब एक चौथाई हिस्सा धुआं रहित पदार्थों के उपयोग का ही है। तंबाकू खाने वाले अधिकतर लोग भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही मौजूद हैं, जबकि ब्रिटेन और दक्षिण एशियाई देशों में भी इनका चलन बढ़ा है।

इसके चलते इन पदार्थों से होने वाली खतरनाक बीमारियों में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी 70 फीसदी है, जबकि पाकिस्तान की 7 फीसदी और बांग्लादेश की 5 फीसदी हिस्सेदारी है। सिद्दीकी ने बताया कि इस अध्ययन के लिए 127 देशों का डाटा जुटाया गया था। साथ ही 2017 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी और ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे जैसे अध्ययनों का भी डाटा उपयोग किया गया है।

शोधकर्ताओं ने विभिन्न देशों की सरकारों से धुआं रहित तंबाकू पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के नियमन की अपील की है। उनका मानना है कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर प्रतिबंध से भी इन पदार्थों के उपयोग पर अंकुश लगेगा। हो सकता है कि इससे कोविड-19 (कोरोना वायरस) के ट्रांसमिशन को रोकने में भी मदद मिल जाए।

शोध में सामने आए तथ्य

2017 में 2.58 लाख से ज्यादा लोग दिल की बीमारी से मरे

90 हजार लोगों की मौत मुंह, आंत और घेंघे के कैंसर से हुई

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