Sharda Sinha Death: छठी मईया से शुरू छठ पर ही खत्म, ऐसा रहा बिहार की बेटी शारदा सिन्हा का सफर

Sharda Sinha Death - छठी मईया से शुरू छठ पर ही खत्म, ऐसा रहा बिहार की बेटी शारदा सिन्हा का सफर
| Updated on: 06-Nov-2024 09:26 AM IST
Sharda Sinha Death: "शारदा सिन्हा… ये नाम सुनते ही छठ के गीतों की मधुर ध्वनियाँ मन में गूंजने लगती हैं। छठ के पर्व का जो अहसास है, वो शारदा सिन्हा के गानों के बिना अधूरा सा लगता है। ए करेलु छठ बरतिया से झांके झुके हो या केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झुके—इन गीतों ने छठ के पर्व को एक नई पहचान दी। शारदा सिन्हा की आवाज ने छठ को एक स्वर, एक राग दिया, जिससे यह पर्व और भी खास बन गया।"

पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित

स्वर कोकिला, पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित, शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रही। दिल्ली के एम्स अस्पताल में मंगलवार की रात उन्होंने अंतिम सांस ली। छठ पूजा के दौरान ही छठी मईया ने उन्हें अपने पास बुला लिया। शारदा सिन्हा ने न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में मैथिली और भोजपुरी संगीत को नया मुकाम दिलाया। उनकी आवाज ने लोक संगीत को एक नई दिशा दी, और उनके गाए हुए छठ गीत अजर-अमर हो गए।

उनके गाने, जैसे "ए करेलु छठ बरतिया" और "केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल", आज भी हर छठ घाट पर गूंजते हैं। इन गीतों की अनूठी ध्वनि ने छठ पर्व को एक गहरी आस्था और श्रद्धा से जोड़ा। शारदा सिन्हा का जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

50 साल पहले गाया पहला गाना

शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत 1974 में की थी जब उन्होंने पहला भोजपुरी गाना गाया था। लेकिन उनका असली पहचान 1978 में गाए गए छठ गीत "उग हो सुरुज देव" से मिली। इस गाने ने न केवल रिकॉर्ड बनाया बल्कि छठ पूजा की परंपरा को और मजबूती दी। शारदा का यह गाना आज भी छठ घाटों पर गाया जाता है। शारदा सिन्हा और छठ पर्व का संबंध एक अटूट कड़ी बन गया था।

इसके बाद उन्होंने 1989 में बॉलीवुड में भी कदम रखा। फिल्म मैने प्यार किया में गाए "कहे तोसे सजना" गीत ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने गैंग्स ऑफ वासेपुर में "तार बिजली से पतले हमारे पिया" जैसे गानों में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा।

बिहार के सुपौल से रिश्ता

शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के सुपौल जिले के छोटे से गांव हुलास में 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था। उनके पिता सुखदेव ठाकुर हाई स्कूल के प्रिंसिपल थे। शारदा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हुलास गांव से ही पूरी की। इसके बाद, उन्होंने संगीत में करियर बनाने के लिए दिल्ली और पटना में कई वर्षों तक संघर्ष किया। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उनके अथक प्रयासों ने उन्हें संगीत की दुनिया में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।

छठ के गीतों में जो आस्था और भावनाएँ समाहित होती हैं, उन्हें शारदा सिन्हा ने अपनी आवाज में ढाला और पूरी दुनिया में छठ की महिमा का प्रचार किया।

संगीत जगत की अपूरणीय क्षति

शारदा सिन्हा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे दिग्गज नेताओं ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की। पीएम मोदी ने कहा कि शारदा सिन्हा के गाए मैथिली और भोजपुरी लोकगीतों ने दशकों तक लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनका जाना संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।

72 साल की आयु में, शारदा सिन्हा ने न केवल भोजपुरी और मैथिली गीतों में, बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपनी आवाज दी। उनका योगदान भारतीय संगीत जगत के लिए सदैव याद रखा जाएगा। उनके बिना छठ का पर्व अधूरा सा लगेगा, और जब भी हम छठ के गीतों को गुनगुनाएंगे, शारदा सिन्हा की याद ताजा हो जाएगी।

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