Bangladesh Elections: खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की 17 साल बाद बांग्लादेश वापसी, पीएम पद के प्रबल दावेदार

Bangladesh Elections - खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की 17 साल बाद बांग्लादेश वापसी, पीएम पद के प्रबल दावेदार
| Updated on: 25-Dec-2025 11:53 AM IST
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के प्रमुख नेता तारिक रहमान ने 17 साल के लंबे अंतराल के बाद अपनी मातृभूमि बांग्लादेश में वापसी की है। उनकी यह वापसी बांग्लादेश की राजनीतिक गलियारों में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखी जा रही है, खासकर आगामी आम चुनावों के मद्देनजर। ढाका एयरपोर्ट के पास उनके स्वागत के लिए बीएनपी के लगभग 1 लाख कार्यकर्ता जुटे, जो उनकी लोकप्रियता और पार्टी के भीतर उनके प्रभाव को दर्शाता है। इस भव्य स्वागत ने पार्टी समर्थकों में एक नया उत्साह भर दिया। है और उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।

17 साल बाद वतन वापसी और भव्य स्वागत

तारिक रहमान 2008 में बांग्लादेश से लंदन चले गए थे, जहां उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए निर्वासित जीवन बिताया और उस समय, शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज किए थे। इन मामलों के कारण उन्हें देश छोड़ना पड़ा था, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में भी वे बीएनपी के भीतर एक प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे। अब, 17 साल बाद उनकी वापसी, एक ऐसे समय में हुई है जब बांग्लादेश राजनीतिक उथल-पुथल और आगामी चुनावों की तैयारी कर रहा है और ढाका एयरपोर्ट पर उमड़ी भीड़ ने स्पष्ट कर दिया कि बीएनपी कार्यकर्ता और समर्थक अपने नेता की वापसी को लेकर कितने उत्साहित हैं। यह स्वागत सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पार्टी की उम्मीदों और भविष्य की संभावनाओं का प्रतीक था।

आगामी आम चुनाव और बीएनपी की दावेदारी

बांग्लादेश में अगले साल 12 फरवरी को आम चुनाव होने हैं। इन चुनावों से पहले राजनीतिक परिदृश्य में कई बड़े बदलाव आए हैं। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिससे बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी दावेदार बनकर उभरी है। बीएनपी की अध्यक्ष खालिदा जिया, जिनकी उम्र 80 साल हो चुकी है और जो गंभीर रूप से बीमार चल रही हैं, उनकी स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए तारिक रहमान को पार्टी के भीतर और बाहर अगले प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। उनकी वापसी ने बीएनपी को एक मजबूत नेतृत्व प्रदान किया है, जो। पार्टी को एकजुट करने और चुनावी अभियान को गति देने में सहायक होगा।

भारत के लिए तारिक रहमान की वापसी का महत्व

तारिक रहमान की 17 साल बाद बांग्लादेश वापसी ने बीएनपी कार्यकर्ताओं में एक नया जोश और उत्साह भर दिया है। ढाका शहर को बीएनपी समर्थकों ने पोस्टरों और बैनरों से पाट दिया है, जो उनकी वापसी और आगामी चुनावों को लेकर उनके चरम उत्साह को दर्शाता है। पिछले साल शेख हसीना की सरकार के पतन और मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के दौरान देश में व्याप्त अराजक स्थिति को देखते हुए, बीएनपी सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि तारिक रहमान के नेतृत्व में पार्टी एक। बार फिर देश की बागडोर संभाल सकती है और स्थिरता ला सकती है। फरवरी में होने वाले चुनाव भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली के लिए तारिक रहमान की वापसी बहुत मायने रखती है, खासकर जब भारत समर्थक अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है और खालिदा जिया अस्पताल में भर्ती हैं। यह ऐसे समय में हुआ है, जब बांग्लादेश एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां अंतरिम प्रमुख मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी इस्लामवादी बेलगाम हो रहे हैं और भारत के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं। भारत को उम्मीद है कि बीएनपी की वापसी से इस स्थिति में सुधार होगा और क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहेगी।

जमात-ए-इस्लामी और भारत की चिंताएं

भारत के लिए खास चिंता जमात-ए-इस्लामी है, जिसे पाकिस्तान की आईएसआई का समर्थक माना जाता है। यूनुस सरकार में जमात-ए-इस्लामी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया है और उसने राजनीति में वापसी कर ली है, जिससे उसकी ताकत बढ़ी है। बांग्लादेश में यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी ताकतें बढ़ रही हैं और ऐसे में भारत जमात और यूनुस की तुलना में बीएनपी को ज्यादा उदार और लोकतांत्रिक विकल्प के तौर पर देख रहा है, हालांकि पिछले दिनों भारत और बीएनपी के रिश्ते अच्छे नहीं थे। भारत को उम्मीद है कि बीएनपी सत्ता में आने पर कट्टरपंथी ताकतों पर लगाम लगाएगी।

बीएनपी के भारत विरोधी तेवर में नरमी

राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय के अनुसार, हाल के दिनों में तारिक रहमान या बांग्लादेश में बीएनपी के नेता मीर जफर या सलाउद्दीन अहमद जैसे किसी भी प्रमुख नेता ने भारत विरोधी बयान नहीं दिए हैं। बीएनपी का पूरा ध्यान बांग्लादेश के आंतरिक मुद्दों पर है और वह यूनुस सरकार की नीतियों, विशेषकर उसकी विदेश नीति की आलोचना कर रही है और यह बदलाव भारत के लिए सकारात्मक संकेत है, क्योंकि यह दर्शाता है कि बीएनपी अब क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता के महत्व को समझ रही है।

जमात-ए-इस्लामी से दूरी और चुनावी रणनीति

बीएनपी ने जमात-ए-इस्लामी से दूरी बना ली है और बांग्लादेश चुनाव को लेकर जमात के एक दूसरे फैक्शन के साथ समझौता किया है, जिसमें उसे चार सीटें दी गई हैं। यह कदम बीएनपी की उदारवादी छवि को मजबूत करता है और कट्टरपंथी ताकतों से उसकी दूरी को दर्शाता है। पार्थ मुखोपाध्याय का कहना है कि बीएनपी तारिक रहमान की वापसी को हिंसा से जूझ रहे बांग्लादेश में 'मसीहा की वापसी' के रूप में पेश कर रही है। बीएनपी का यह तर्क है कि तारिक रहमान ही बांग्लादेश को बचा सकते हैं और ऐसे में बीएनपी को भी यह अहसास है कि भारत विरोधी रुख अपनाकर वह बांग्लादेश की सत्ता हासिल नहीं कर सकती है, इसलिए उसने भारत के प्रति अपना रुख नरम रखा है। बीएनपी यह संदेश दे रही है कि वह भारत और पाकिस्तान दोनों से समान दूरी बनाए रखेगी।

भारत-बांग्लादेश संबंधों पर संभावित प्रभाव

नई दिल्ली को उम्मीद है कि तारिक रहमान की वापसी से बीएनपी के कार्यकर्ताओं में जोश भरेगा और पार्टी अगली सरकार बनाएगी। शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश ने भारत के साथ करीबी रिश्ते बनाए थे और पाकिस्तान से सुरक्षित दूरी बनाए रखी थी। हालांकि, यूनुस के शासनकाल में हालात ने यू-टर्न ले लिया है, जिन्होंने बांग्लादेश को भारत। से दूर करने की कीमत पर पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्ते बनाने पर जोर दिया है। अगर बीएनपी सत्ता में वापस आती है तो भारत बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव की उम्मीद करेगा और हाल ही में ऐसे संकेत मिले हैं कि भारत और बीएनपी रिश्ते फिर से ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबके सामने चिंता जताई और गंभीर रूप से बीमार खालिदा जिया के लिए भारत का समर्थन देने की पेशकश की थी, जिसका बीएनपी ने दिल से शुक्रिया अदा किया। इससे साफ है कि भारत और बीएनपी के रिश्ते सुधर रहे हैं।

कट्टरपंथी ताकतों पर लगाम की उम्मीद

भारत के लिए अच्छी बात यह है कि तारिक रहमान के यूनुस सरकार के साथ मतभेद रहे हैं और उन्होंने यूनुस के लंबे समय के विदेश नीति के फैसले लेने के अधिकार पर भी सवाल उठाया है। वह जमात-ए-इस्लामी की भी आलोचना करते रहे हैं और उन्होंने चुनावों में साथ देने से मना कर दिया है और बीएनपी ने जमात-ए-इस्लामी के साथ कोई समझौता नहीं किया है। इस बीच, तारिक रहमान की वापसी से बांग्लादेश में बीएनपी समर्थकों में काफी उत्साह है, लेकिन बांग्लादेश में कट्टरपंथी बीएनपी की “ताकत दिखाने” से खुश नहीं हैं। यह बीएनपी के लिए बहुत ही खुशी की बात है कि पहले शेख हसीना के शासनकाल में और अब यूनुस के शासनकाल में वह अपने समर्थकों को एकजुट रखने में सफल रही है। भारत को उम्मीद है कि बीएनपी की वापसी के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों पर लगाम लगेगी और देश में स्थिरता आएगी।

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