Trump Tariff: क्या ट्रंप का टैरिफ ही बनेगा अमेरिका के लिए आफत, जानें कैसे 2026 में लग सकता है करारा झटका

Trump Tariff - क्या ट्रंप का टैरिफ ही बनेगा अमेरिका के लिए आफत, जानें कैसे 2026 में लग सकता है करारा झटका
| Updated on: 27-Dec-2025 07:50 PM IST
भारत 1 जनवरी 2026 से ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण करेगा। यह एक ऐसा समय है जब अमेरिकी टैरिफ नीति ने विश्व के शक्तिशाली देशों जैसे भारत, चीन और रूस को और भी करीब ला दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल की शुरुआत में ब्रिक्स सदस्य देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, जिससे ब्रिक्स देशों से अमेरिका को अब और भी ज्यादा खतरा महसूस हो रहा है। यह नीति ब्रिक्स समूह को एकजुट होने और अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए प्रेरित कर रही है।

ब्रिक्स की बढ़ती कृषि शक्ति

एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिक्स सहयोगी कृषि क्षेत्र में अपना योगदान लगातार बढ़ा रहे हैं। यह केवल वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि खाद्यान्न की भविष्य की सुरक्षा के लिए भी ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। ब्रिक्स देश एक मजबूत नीति तैयार कर रहे हैं जो उन्हें खाद्य आपूर्ति में आत्मनिर्भर बनाएगी और वैश्विक खाद्य बाजारों में उनकी सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाएगी। यह पहल वैश्विक खाद्य सुरक्षा में ब्रिक्स की भूमिका को और मजबूत करेगी।

विभिन्न क्षेत्रों में साझेदारी का विस्तार

ब्रिक्स देश केवल कृषि तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे व्यापार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और वैश्विक जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी साझेदारी बढ़ा रहे हैं। इस व्यापक सहयोग का उद्देश्य एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाना है जहां अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व कम हो और विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि 2026 के अंत तक अमेरिका को एक बड़ा झटका लगेगा और उसका वैश्विक प्रभुत्व काफी हद तक खत्म हो जाएगा, क्योंकि ब्रिक्स देश अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं।

डॉलर की बादशाहत पर मंडरा रहा खतरा

एक रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे तेल का उत्पादन, सोने के भंडार, मजबूत आर्थिक स्थिति और खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता वैश्विक स्तर पर सौदेबाजी की शक्ति निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। ब्रिक्स समूह में वर्तमान में ग्यारह देश शामिल हैं, जो इन सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों से, ये देश अमेरिकी डॉलर को वैश्विक व्यापार और वित्त में उसकी केंद्रीय भूमिका से हटाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, जिससे डॉलर की बादशाहत पर खतरा मंडरा रहा है।

कच्चे तेल उत्पादन में ब्रिक्स की मजबूत पकड़

रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के कुल कच्चे तेल उत्पादन का लगभग 42 प्रतिशत ब्रिक्स सदस्य देशों में होता है। यह आंकड़ा ब्रिक्स समूह को वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है। ब्रिक्स में वर्तमान में कुल 11 देश शामिल हैं, जिनमें भारत, चीन, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया शामिल हैं और यह समूह वैश्विक जीडीपी में 29 प्रतिशत का योगदान करता है, जो इसकी बढ़ती आर्थिक शक्ति को दर्शाता है।

रूस, चीन और भारत के मजबूत होते संबंध

चीन, भारत, ब्राजील और रूस सहित ये चारों ब्रिक्स देश विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं और अब, अमेरिका की टैरिफ नीति के चलते रूस, चीन और भारत के बीच संबंध और भी मजबूत हो रहे हैं। इन देशों के बीच बढ़ते सहयोग से अमेरिका के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।

स्थानीय मुद्राओं में व्यापार: अमेरिका के लिए बड़ा झटका

ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने का एक बड़ा फैसला लिया है, जिसके तहत ब्रिक्स देशों के बीच रुपये में व्यापार करने की आधिकारिक अनुमति दे दी गई है और यह कदम अमेरिका के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह डॉलर की वैश्विक आरक्षित मुद्रा की स्थिति को कमजोर करेगा और ब्रिक्स देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को अमेरिकी नीतियों के प्रभाव से बचाने में मदद करेगा। यह निर्णय वैश्विक व्यापार में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।

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