India-US Tariff War: लंबे समय से भारत को जिसका इंतजार था, अब लगता है कि वो समय जल्द ही आना वाला है। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए भारी टैरिफ को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। गुरुवार को भारत के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन ने कोलकाता में मर्चेंट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एमसीसीआई) के एक कार्यक्रम में कहा कि अमेरिका भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर लगे 50 प्रतिशत तक के टैरिफ को अगले कुछ हफ्तों या महीनों में हटा सकता है। यह बयान दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं के सकारात्मक परिणाम का संकेत दे रहा है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत की रूसी तेल खरीद को लेकर उत्पन्न तनाव को कम कर सकता है।
सीईए नागेश्वरन ने कार्यक्रम के दौरान विस्तार से बताया कि अमेरिका ने अप्रैल 2025 में इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करते हुए सभी प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों पर "पारस्परिक टैरिफ" लागू किए थे। भारत पर शुरुआत में 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया था, लेकिन अगस्त 2025 में रूसी तेल आयात को लेकर अतिरिक्त 25 प्रतिशत का दंडात्मक शुल्क जोड़ दिया गया, जिससे कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो गया। यह शुल्क जेम्स एंड ज्वेलरी, गारमेंट्स, फुटवियर, फर्नीचर, इंडस्ट्रियल केमिकल्स, टेक्सटाइल्स, सीफूड और ऑटो पार्ट्स जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।
नागेश्वरन ने आशावादी लहजे में कहा, "मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि अगले कुछ महीनों में, यदि नहीं तो इससे पहले, कम से कम अतिरिक्त 25 प्रतिशत दंडात्मक टैरिफ को हटा दिया जाएगा।" उन्होंने अनुमान लगाया कि यह राहत 30 नवंबर 2025 के बाद मिल सकती है, जब IEEPA के तहत लगाए गए प्रतिबंधों की समीक्षा होगी। इसके अलावा, पारस्परिक टैरिफ को 25 प्रतिशत से घटाकर 10-15 प्रतिशत करने पर भी चर्चा चल रही है। यह कदम न केवल भारतीय निर्यातकों को राहत देगा, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगा।
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर सक्रिय कूटनीति अपनाई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच फोन वार्ता हुई, जिसमें व्यापार समझौते पर जोर दिया गया। वाणिज्य मंत्रालय के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने भी अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच से नई दिल्ली में बैठक की। इन प्रयासों से संकेत मिलता है कि अमेरिका भारत को चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों से अलग रखना चाहता है, खासकर रूस पर दबाव बनाने के लिए। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी घरेलू राजनीति और मुद्रास्फीति के दबाव के कारण यह प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
सीईए ने भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जो पांच तिमाहियों का उच्चतम स्तर है। भारत का वार्षिक निर्यात वर्तमान में लगभग 850 अरब अमेरिकी डॉलर है, और सरकार का लक्ष्य इसे अगले कुछ वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाना है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां 2024 में 87 अरब डॉलर का माल भेजा गया, लेकिन टैरिफ के कारण यह 43 प्रतिशत तक गिर सकता था।
फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को फिलहाल छूट मिली हुई है, जो कुल निर्यात का 30 प्रतिशत (लगभग 27.6 अरब डॉलर) कवर करते हैं। लेकिन श्रम-गहन क्षेत्रों जैसे टेक्सटाइल्स और ज्वेलरी में 70 प्रतिशत तक गिरावट का खतरा है। नागेश्वरन ने कहा कि टैरिफ हटने से निर्यात में तेजी आएगी, और भारत की खुली अर्थव्यवस्था वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मजबूत स्थिति बनाए रखेगी। इसके अलावा, रुपये की हल्की गिरावट (डॉलर के मुकाबले) निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी लाभ दे सकती है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी दूसरी पारी में व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए आक्रामक नीति अपनाई। अप्रैल 2025 में IEEPA के तहत "राष्ट्रीय आपातकाल" घोषित कर 10 प्रतिशत का सामान्य टैरिफ सभी देशों पर लगाया गया, जो बाद में देश-विशेष आधार पर बढ़ाया गया। भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ जुलाई-अगस्त 2025 में लागू हुआ, और रूसी तेल खरीद (जो यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड करता है) को लेकर अतिरिक्त 25 प्रतिशत जोड़ा गया। ट्रंप ने इसे "अमेरिका फर्स्ट" नीति का हिस्सा बताया, लेकिन भारत ने इसे "अनुचित और असंगत" करार दिया, क्योंकि चीन जैसे बड़े रूसी तेल खरीदार पर कम टैरिफ लगे।
यह टैरिफ भारत के 66 प्रतिशत अमेरिकी निर्यात (लगभग 86.5 अरब डॉलर) को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे नौकरियों पर संकट आ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम वैश्विक व्यापार युद्ध को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन भारत की कूटनीतिक मजबूती से जल्द समाधान संभव है।
भारत-अमेरिका संबंध रणनीतिक रूप से मजबूत हैं, और टैरिफ विवाद इसका परीक्षण मात्र है। सीईए नागेश्वरन के बयान से निर्यातकों में उत्साह है, और शेयर बाजार भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहा है—निफ्टी 50 ने एक सप्ताह के उच्च स्तर को छुआ। यदि वार्ताएं सफल रहीं, तो यह न केवल व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास को और गहरा करेगा। भारत को अब वैकल्पिक बाजारों जैसे यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटा जा सके। कुल मिलाकर, आशा की किरण दिख रही है कि यह विवाद जल्द सुलझेगा, और भारत का निर्यात इंजन फिर से रफ्तार पकड़ेगा।