Save Aravali Campaign: अरावली बचाओ: उदयपुर में वकीलों का प्रदर्शन, नई परिभाषा पर फूटा गुस्सा, मेवाड़ के रेगिस्तान बनने का डर
Save Aravali Campaign - अरावली बचाओ: उदयपुर में वकीलों का प्रदर्शन, नई परिभाषा पर फूटा गुस्सा, मेवाड़ के रेगिस्तान बनने का डर
राजस्थान के उदयपुर शहर में 'अरावली बचाओ' मुहिम को लेकर वकीलों ने जोरदार प्रदर्शन किया. शनिवार, 20 दिसंबर को उदयपुर बार एसोसिएशन के बैनर तले बड़ी संख्या में अधिवक्ता कलेक्ट्रेट कार्यालय के बाहर इकट्ठा हुए और अरावली पर्वतमाला की नई प्रस्तावित परिभाषा का कड़ा विरोध किया और इस प्रदर्शन के दौरान वकीलों का गुस्सा साफ दिखाई दिया, जिसके चलते कलेक्ट्रेट के बाहर भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा और एहतियातन बैरिकेडिंग भी की गई थी. वकीलों ने अपनी मांगों को लेकर जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सरकार से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की अपील की गई है.
अरावली की नई परिभाषा पर गहरा विरोध
वकीलों का यह विरोध सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा दिए जाने के खिलाफ है. इस नई परिभाषा के तहत, केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला का हिस्सा माना जाएगा. अधिवक्ताओं का तर्क है कि यदि यह मानदंड लागू होता है, तो अरावली का एक बड़ा हिस्सा, लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ियां, कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी. इससे इन क्षेत्रों में अनियंत्रित खनन और निर्माण गतिविधियों का रास्ता खुल जाएगा, जिससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी.मेवाड़ पर मंडराता रेगिस्तान का खतरा
उदयपुर के वकीलों ने चेतावनी दी है कि अरावली की. नई परिभाषा के गंभीर परिणाम होंगे, खासकर मेवाड़ क्षेत्र के लिए. उनका मानना है कि यदि अरावली का संरक्षण कमजोर पड़ता है और खनन गतिविधियां बढ़ती हैं, तो मेवाड़ भी धीरे-धीरे रेगिस्तान की चपेट में आ जाएगा और अरावली पर्वतमाला राजस्थान के लिए एक जीवन रेखा है, जो मरुस्थलीकरण को रोकने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसके दोहन से न केवल स्थानीय जलवायु प्रभावित होगी, बल्कि जल स्रोतों और जैव विविधता पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.उदयपुर बार एसोसिएशन की भूमिका और मांगें
उदयपुर बार एसोसिएशन ने इस मुहिम का नेतृत्व करते हुए अरावली के संरक्षण के लिए मजबूत नीतियां बनाने पर जोर दिया है. एसोसिएशन ने सरकार से स्पष्ट रूप से मांग की है कि वह सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) दायर करे, ताकि अरावली की नई परिभाषा पर फिर से विचार किया जा सके. वकीलों का मानना है कि यह केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण विरासत को बचाने का सवाल है. उन्होंने यह भी कहा कि अरावली का लगातार दोहन हो रहा. है, और नई परिभाषा इस प्रक्रिया को और तेज कर देगी.वरिष्ठ अधिवक्ता की चेतावनी और चिंताएं
वरिष्ठ अधिवक्ता राव रतन सिंह ने इस मुद्दे पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने 100 मीटर तक की. पहाड़ियों को ही अरावली माना है, जो एक खतरनाक प्रस्ताव है. उनके अनुसार, यदि यह परिभाषा प्रभावी होती है, तो अरावली की 90 प्रतिशत पहाड़ियां कानूनी सुरक्षा से वंचित हो जाएंगी, जिससे बड़े पैमाने पर खनन शुरू हो जाएगा. राव रतन सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि अरावली का पहले से ही लगातार दोहन किया. जा रहा है, और नई परिभाषा इस विनाशकारी प्रक्रिया को और बढ़ावा देगी, जिससे क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाएगा.अरावली संरक्षण की राष्ट्रीय मुहिम
दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा अरावली पर्वतमाला की एक नई वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तावित की गई है. इस प्रस्ताव के तहत, केवल वे पहाड़ियां ही अरावली मानी जाएंगी जिनकी ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक है. इस मानदंड का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यदि यह लागू होता है, तो अरावली का एक बहुत बड़ा हिस्सा, जो वर्तमान में संरक्षित है, संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा और इससे खनन और निर्माण गतिविधियों के लिए एक खुला रास्ता मिल जाएगा, जिससे अरावली की हरियाली और प्राकृतिक स्वरूप को गंभीर खतरा होगा. यह न केवल पर्यावरण बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन पर भी गहरा असर डालेगा.
'अरावली बचाओ' मुहिम को केवल उदयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान और देशभर में व्यापक समर्थन मिल रहा है. पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अरावली पर्वतमाला का संरक्षण राष्ट्रीय महत्व का विषय है. यह पर्वतमाला न केवल जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि यह दिल्ली-एनसीआर. सहित कई क्षेत्रों के लिए भूजल पुनर्भरण और वायु प्रदूषण नियंत्रण में भी सहायक है. इसलिए, इसकी सुरक्षा के लिए एक व्यापक और दूरदर्शी नीति की आवश्यकता है, जो किसी भी कीमत पर इसके दोहन की अनुमति न दे. वकीलों का यह प्रदर्शन इसी व्यापक जन आंदोलन का एक हिस्सा है, जो सरकार से इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की मांग कर रहा है.