विदेश: कौन हैं अफगानिस्तान के संभावित नए राष्ट्रपति अब्दुल बरादर?

विदेश - कौन हैं अफगानिस्तान के संभावित नए राष्ट्रपति अब्दुल बरादर?
| Updated on: 17-Aug-2021 06:25 PM IST
काबुल: अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद एक व्यक्ति जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह मुल्ला अब्दुल गनी बरादर है। बरादर वर्तमान में दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है। ऐसा कहा जा रहा है कि बरादर ही अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनने जा रहा है। तालिबान का सह-संस्थापक और मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2010 में पाकिस्तान के कराची में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश और तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तान ने इसे 2018 में रिहा कर दिया था।

अफगान युद्ध का निर्विवाद नेता बना बरादर

तीन साल पहले जेल से रिहा होने के बाद तालिबान नेता अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध का निर्विवाद विजेता बनकर उभरा। बरादर का कद तालिबान के प्रमुख हैबतुल्लाह अखुंदजादा से नीचे है। इसके बावजूद उसे तालिबान का हीरो माना जा रहा है, वहीं अखुंदजादा अब भी पर्दे के पीछे से छिपकर ही अपने आतंकी संगठन को चला रहा है। बताया जा रहा है कि बरादर रविवार शाम कतर की राजधानी दोहा से काबुल के लिए निकल चुका है।

जीत के बाद टीवी पर दिया अफगानों को संदेश

द गार्जियन अखबार ने रविवार को बताया कि काबुल के पतन के बाद बरादर ने एक टीवी संदेश में कहा कि एक हफ्ते के भीतर देश के सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया गया। यह बेहद तेज और अद्भुत था।' बरादर ने स्वीकार किया, 'हमें इस तरह सफल होने की उम्मीद नहीं थी लेकिन ईश्वर हमारे साथ था।' बरादर ने कहा कि असली परीक्षा अब शुरू होगी क्योंकि तालिबान लोगों की उम्मीदों को पूरा करने और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए काम करेगा।

बरादर का बहनोई था मुल्ला उमर

अब्दुल गनी बरादर की जवानी अफगानिस्तान के निरंतर और निर्मम संघर्ष की कहानी है। 1968 में उरुजगान प्रांत में जन्मा बरादर शुरू से ही धार्मिक रूप से काफी कट्टर था। बरादर ने 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन में लड़ाई लड़ी। 1992 में रूसियों को खदेड़ने के बाद अफगानिस्तान प्रतिद्वंद्वी सरदारों के बीच गृहयुद्ध में घिर गया। जिसके बाद बरादर ने अपने पूर्व कमांडर और बहनोई, मुल्ला उमर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित किया।

मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की

जिसके बाद मुल्ला उमर और मुल्ला बरादर ने एक साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की। तालिबान शुरूआत में देश के धार्मिक शुद्धिकरण और एक अमीरात के निर्माण के लिए समर्पित युवा इस्लामी विद्वानों के नेतृत्व में एक आंदोलन था। शुरूआत में तो सबकुछ शांतिपूर्वक चला, लेकिन बाद में इस गुट ने हथियार उठा लिया और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के शह पर यह हिंसक आंदोलन में बदल गया। 1996 के आते-आते तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर इस्लामिक अमीरात की स्थापना कर दी।

1996 में भी तालिबान का रणनीतिकार था बरादर

मुल्ला उमर के बाद तालिबान के दूसरे नेता अब्दुल गनी बरादर को तब भी जीत का हीरो माना गया। कहा जाता है कि तालिबान के लिए बरादर ने ही तब रणनीति बनाई थी। बरादर ने पांच साल के तालिबान शासन में सैन्य और प्रशासनिक भूमिकाएं निभाईं। 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब बरादर देश का उप रक्षा मंत्री था। तालिबान के 20 साल के निर्वासन के दौरान, बरादर को एक शक्तिशाली सैन्य नेता और एक सूक्ष्म राजनीतिक संचालक होने की प्रतिष्ठा मिली।

सीआईए ने 2010 में ट्रैक किया, पाक ने किया गिरफ्तार

रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईए ने 2010 में उसे कराची में ट्रैक किया और उसी साल फरवरी में आईएसआई को उसे गिरफ्तार करने के लिए राजी किया। एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि बरादार को पकड़ने के लिए मुख्य रूप से युद्ध में उसकी भूमिका के कारण उकसाया गया था, न कि इस संभावना के कारण कि वह अचानक शांति स्थापित करने जा रहा था। पाकिस्तान ने बरादर को इसलिए पकड़ा क्योंकि अमेरिका ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था।

अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने बरादर को छोड़ा

गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में अफगानिस्तान के विशेष दूत ज़ल्मय खलीलज़ाद ने पाकिस्तानियों से बरादर को रिहा करने के लिए कहा, ताकि वह कतर में वार्ता का नेतृत्व कर सकें। अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने बरादर को जेल से रिहा कर दिया, जिसके बाद वह सीधे कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय पहुंच गया। हालांकि, अमेरिका इस बात से हमेशा से इनकार करता रहा है।

2020 में बरादर को मिली पहली सफलता

बरादर ने फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए। ट्रंप प्रशासन ने इसे अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की दिशा में मिली बड़ी सफलता बताया था। जबकि, यह तालिबान की पहली जीत थी। उसके बाद अफगान सरकार के साथ शांति पर बात नहीं बनी और तालिबान ने अमेरिकी सेना के जाते ही पूरे देश पर कब्जा कर लिया।

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