Indian Population: भारत अमीर बनने से पहले ही क्या बूढ़ा हो जाएगा? क्यों बढ़ा रही हैं चिंता

Indian Population - भारत अमीर बनने से पहले ही क्या बूढ़ा हो जाएगा? क्यों बढ़ा रही हैं चिंता
| Updated on: 11-Jul-2025 08:40 PM IST

Indian Population: कभी भारत की सबसे बड़ी ताकत माने जाने वाली उसकी युवा आबादी अब धीरे-धीरे एक नई चुनौती बनती दिख रही है। जिस देश को “युवा राष्ट्र” कहकर गर्व किया जाता था, वह अब इस सवाल का सामना कर रहा है: क्या भारत अमीर बनने से पहले बूढ़ा हो जाएगा? घटती फर्टिलिटी रेट, बढ़ती औसत उम्र और तेजी से बढ़ रही बुजुर्ग आबादी के आंकड़े इस बदलाव की कहानी बयां करते हैं। यह बदलाव न केवल सामाजिक, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी खतरे की घंटी बजा रहा है। सवाल यह है कि क्या भारत समय रहते इस बदलाव के लिए तैयार हो पाएगा, या बढ़ती उम्र उसकी आर्थिक रफ्तार पर ब्रेक लगा देगी?

भारत की बदलती जनसांख्यिकी: आंकड़ों की जुबानी

लंबे समय तक भारत ने अपनी युवा आबादी को अपनी ताकत के रूप में पेश किया। 65% आबादी के 35 साल से कम होने के कारण देश को “डेमोग्राफिक डिविडेंड” यानी अधिक कार्यशील जनसंख्या, उच्च उत्पादन और तेज आर्थिक विकास का लाभ मिलने की उम्मीद थी। लेकिन हाल के आंकड़े एक नई और चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं:

  • बर्थ रेट (प्रति 1,000 जनसंख्या पर जन्म) 2013 में 21.4 थी, जो 2022 में घटकर 19.1 हो गई।

  • शहरी भारत में जन्म दर 17.3 से गिरकर 15.5 हो गई है।

  • औसत उम्र अब 69.9 साल है, जो 1970-75 के मुकाबले 20 साल अधिक है।

  • 2050 तक भारत में 60 साल से अधिक उम्र की आबादी लगभग 35 करोड़ हो सकती है, जो अमेरिका की मौजूदा कुल आबादी के बराबर है।

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत तेजी से एक बुजुर्ग देश बनता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी हो रही है, जबकि लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ रही है। यह बदलाव भारत की आर्थिक और सामाजिक नीतियों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

आर्थिक प्रभाव: चुनौतियां और खतरे

बुजुर्ग आबादी में वृद्धि और घटती जन्म दर का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर कई तरह से पड़ सकता है:

1. वर्कफोर्स में कमी, खर्च में वृद्धि

कम जन्म दर का मतलब है कि भविष्य में कार्यशील आबादी (वर्किंग पॉपुलेशन) घटेगी, जबकि आश्रित आबादी (डिपेंडेंट पॉपुलेशन) बढ़ेगी। इसका सीधा असर उत्पादकता (प्रोडक्टिविटी) और जीडीपी ग्रोथ पर पड़ेगा। कम लोग काम करेंगे, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।

2. हेल्थकेयर पर बढ़ता दबाव

NITI Aayog की एक रिपोर्ट के अनुसार, 75% बुजुर्ग किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, और 70% अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। जैसे-जैसे बुजुर्ग आबादी बढ़ेगी, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ेगा। अस्पतालों, डॉक्टरों और मेडिकल सुविधाओं की मांग बढ़ने से सरकारी और निजी क्षेत्र को भारी निवेश करना होगा।

3. पेंशन और सोशल सिक्योरिटी सिस्टम पर बोझ

वर्तमान में भारत में केवल 18% बुजुर्गों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है, और 78% को कोई पेंशन नहीं मिलती। अगर भविष्य में सरकार पेंशन और सामाजिक कल्याण योजनाओं को बढ़ाती है, तो राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) बढ़ने का खतरा है। यह आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ा जोखिम हो सकता है।

4. इन्फ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग में बदलाव

बुजुर्गों की जरूरतों को ध्यान में रखकर सीनियर-फ्रेंडली होम्स, बेहतर मेडिकल सुविधाएं, और बुजुर्गों के लिए अनुकूलित पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम जैसे क्षेत्रों में निवेश जरूरी होगा। ये नए खर्च सरकार की आर्थिक नीतियों का हिस्सा बन जाएंगे।

भारत को क्या करना होगा?

न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने भारत की जनसांख्यिकी को आर्थिक प्रगति का आधार बनाने के लिए कुछ अहम सुझाव दिए हैं। इनमें शामिल हैं:

  • शहरीकरण (Urbanisation): तेजी से शहरीकरण को बढ़ावा देना, ताकि शहरों में बेहतर रोजगार और सुविधाएं उपलब्ध हों।

  • बुनियादी ढांचा (Infrastructure): सड़क, बिजली, और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी सुविधाओं में निवेश।

  • कौशल विकास (Up-skilling): युवाओं को भविष्य के लिए जरूरी स्किल्स से लैस करना।

  • कार्यबल का विस्तार (Broadening Labour Force): महिलाओं और ग्रामीण आबादी को कार्यबल में शामिल करना।

  • विनिर्माण में तेजी (Boosting Manufacturing): मेक इन इंडिया जैसे अभियानों को और मजबूत करना।

ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के सीनियर इंडिया इकॉनमिस्ट अभिषेक गुप्ता का कहना है, “भारत युवा है, अंग्रेजी बोलने वाला है, और इसका बढ़ता लेबर फोर्स मेक इन इंडिया जैसे अभियानों को गति दे रहा है। वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक परिस्थितियां भी भारत के पक्ष में हैं।” अगर भारत इन क्षेत्रों में अपेक्षित प्रगति कर ले, तो वह अपनी आबादी के लाभ को भुना सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार दे सकता है।

चुनौती में अवसर: सिल्वर इकॉनमी का उदय

इस जनसांख्यिकीय संकट में भी एक नया बाजार उभर रहा है, जिसे सिल्वर इकॉनमी कहा जा रहा है। NITI Aayog के अनुसार, भारत का होम हेल्थकेयर मार्केट 2027 तक 21.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। सीनियर केयर टेक्नोलॉजी, मेडिकल डिवाइसेज, पेंशन फंड मैनेजमेंट, और रिटायरमेंट होम्स जैसे क्षेत्रों में तेजी से वृद्धि की संभावना है। हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के लिए भी बुजुर्ग आबादी एक नया टारगेट मार्केट बन सकती है।

समय रहते कदम उठाने की जरूरत

भारत के सामने एक अनोखी चुनौती है। एक ओर, उसकी युवा आबादी अभी भी आर्थिक विकास का इंजन है, लेकिन दूसरी ओर, तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी भविष्य की योजनाओं को प्रभावित कर रही है। अगर भारत समय रहते हेल्थकेयर, पेंशन सिस्टम, और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करता है, साथ ही शहरीकरण, कौशल विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देता है, तो वह इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है। लेकिन अगर इन मुद्दों को नजरअंदाज किया गया, तो बढ़ती उम्र भारत की आर्थिक रफ्तार को धीमा कर सकती है। सवाल यह है कि क्या भारत इस बदलाव के लिए तैयार है? इसका जवाब आने वाले दशकों में देश की नीतियों और कार्ययोजनाओं पर निर्भर करेगा।

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