Aravalli Mountain Mining: अरावली पर SC का फैसला: राजस्थान के रेगिस्तान बनने का खतरा बढ़ा, जानें क्यों है ये पर्वतमाला इतनी जरूरी

Aravalli Mountain Mining - अरावली पर SC का फैसला: राजस्थान के रेगिस्तान बनने का खतरा बढ़ा, जानें क्यों है ये पर्वतमाला इतनी जरूरी
| Updated on: 18-Dec-2025 08:52 AM IST
सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने देश के पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच अरावली पर्वतमाला के भविष्य को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है और यह निर्णय, जो 20 नवंबर 2025 को आया, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में खनन गतिविधियों को हरी झंडी देता है। इस फैसले का सबसे गहरा असर राजस्थान पर पड़ने की आशंका है, जहां अरावली पर्वतमाला को 'जीवनरेखा' और 'कवच' माना जाता है। सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं,। जिनमें पर्यावरण पर इसके संभावित विनाशकारी प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। पिछले कुछ सालों से देश में खनन के जरिए पहाड़ों को खत्म करने का सिलसिला तेजी से चल रहा है, और अब यह नया फैसला इस प्रक्रिया को और गति दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला और अरावली पर असर

अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बेहद महत्वपूर्ण है। इस फैसले में 100 मीटर तक की ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति दी गई है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट के बाद यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अरावली पर्वत का लगभग 90% हिस्सा अब 100 मीटर से भी कम की ऊंचाई का रह गया है। सुप्रीम कोर्ट ने नीलगिरी पर्वत को लेकर दिए अपने निर्णय में भी इस बात। को स्वीकार किया है कि अरावली पर्वत का क्षेत्र लगातार सिकुड़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में, 100 मीटर से नीचे के भूभाग को अब अरावली को। पहाड़ी नहीं माना जाएगा, जिससे इन क्षेत्रों में खनन के रास्ते खुल जाएंगे। यह निर्णय सीधे तौर पर राजस्थान की भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करेगा।

मरुस्थल के विस्तार का खतरा

अरावली पर्वतमाला को राजस्थान की पहचान और जीवनरेखा कहा जाता है। यह विश्व की सबसे पुरानी वलित पर्वतमालाओं में से एक है, जिसका लगभग 80% हिस्सा राजस्थान से होकर गुजरता है। अरावली की कुल लंबाई 692 किलोमीटर है, जिसमें से 550 किलोमीटर का हिस्सा राजस्थान में है। इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर (1727 मीटर) राजस्थान के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल माउंट आबू में स्थित है। यह पर्वतमाला दिल्ली एनसीआर से शुरू होकर राजस्थान और गुजरात के पालनपुर तक फैली हुई है। राजस्थान में अधिकांश नदियां अरावली पर्वतमाला से ही निकलती हैं, जो इसे प्रदेश के लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनाती हैं। यह पर्वतमाला मरुस्थल के विस्तार को रोकने में एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती है और प्रदेश के मानसून सिस्टम को भी प्रभावित करती है। यदि

अरावली के उन क्षेत्रों में खनन शुरू होता है जिनकी ऊंचाई 100 मीटर। से कम है, तो राजस्थान में रेगिस्तान का क्षेत्र बढ़ने का खतरा काफी बढ़ जाएगा। अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल के पूर्वी विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी ऊंचाई घटने से मरुस्थल की रेत और गर्म हवाएं पूर्वी राजस्थान की ओर आसानी से बढ़ सकेंगी। इसके अलावा, अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई घटने से प्रदेश में मानसून सिस्टम भी बुरी तरह प्रभावित होगा। यह पर्वतमाला बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाओं को रोककर राजस्थान के पूर्वी हिस्सों में बारिश कराती है। यदि इसकी ऊंचाई कम होती है, तो मानसूनी हवाएं बिना टकराए आगे बढ़ जाएंगी, जिससे प्रदेश में होने वाली बारिश में भारी कमी आएगी और ऐसी स्थिति में, राजस्थान का एक बड़ा भूभाग रेगिस्तान में तब्दील हो सकता है।

अरावली के क्षरण से होने वाले संभावित नुकसान

अरावली पर्वतमाला के लगातार क्षरण से राजस्थान को कई गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

  • 1. प्रदेश में मरुस्थल का व्यापक विस्तार होगा, जिससे कृषि योग्य भूमि कम हो जाएगी।
  • 2. प्रदेश में गर्म हवाओं का व्यापक असर बढ़ता जाएगा, जिससे तापमान में वृद्धि होगी और लू की घटनाएं बढ़ेंगी।
  • 3. बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून से होने वाली बारिश में भारी कमी आएगी, जिससे जल संकट गहराएगा।
  • 4. प्रदेश में भूकंप के झटके आने की संभावना और उनका असर बढ़ सकता है, क्योंकि पहाड़ों की स्थिरता कम होगी।
  • 5. अरावली से निकलने वाली कई नदियां सूख जाएंगी, जिससे पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता पर गंभीर संकट आएगा।
  • 6. प्रदेश के कृषि क्षेत्र में फसलों पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी।
  • 7. प्रदेश की भौगोलिक दशाओं और जलवायु पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाएगा।

वर्षा प्रणाली पर बढ़ता प्रभाव

राजस्थान विश्वविद्यालय के ज्योग्राफी डिपार्टमेंट की सीनियर प्रोफेसर ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है। कि अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई कम होने से राजस्थान की वर्षा प्रणाली प्रभावित हो रही है। उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसूनी हवाओं में तेजी से परिवर्तन हो रहा है और पहले जो हवाएं अरावली से टकराकर राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में बारिश करती थीं, अब अरावली की कम ऊंचाई के कारण वे टकरा नहीं पा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, ये हवाएं अब पश्चिमी राजस्थान की तरफ जा रही हैं और पश्चिमी क्षेत्र में अधिक बारिश देखने को मिल रही है। यह बदलाव पूरे वर्षा सिस्टम को प्रभावित कर रहा है, जो कि एक गंभीर चिंता का विषय है। अरावली की घटती ऊंचाई से राजस्थान में कई विपरीत पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव देखने को मिलेंगे।

अरावली के क्षरण की शुरुआत

अरावली पर्वतमाला के क्षरण का सिलसिला 1990 के दशक में शुरू हुआ और उसके बाद यह तेजी से बढ़ने लगा। इस क्षरण का मुख्य कारण शहरी क्षेत्रों का तेजी से विकास माना जाता है। दिल्ली और राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में बढ़ते निर्माण कार्यों के लिए पत्थरों और खनिजों की अंधाधुंध मांग ने अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन को बढ़ावा दिया। इसके अलावा, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और वनों की कमी ने भी अरावली को कमजोर कर दिया, जिससे यह ढहने लगी। इन गंभीर चिंताओं को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। हालांकि, हालिया फैसला एक बार फिर से इस प्राचीन पर्वतमाला के भविष्य पर सवालिया निशान लगा रहा है।

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