India-US Tariff War: ट्रंप के टैरिफ को BRICS की चुनौती, जानें कैसे खतरे में पड़ी अमेरिकी डॉलर की साख?

India-US Tariff War - ट्रंप के टैरिफ को BRICS की चुनौती, जानें कैसे खतरे में पड़ी अमेरिकी डॉलर की साख?
| Updated on: 09-Aug-2025 05:59 PM IST

India-US Tariff War: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और नए सदस्य मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया) पर 10% से 50% तक के टैरिफ लगाए हैं। यह कदम BRICS देशों की डॉलर के अवमूल्यन (De-dollarization) की पहल और अमेरिकी डॉलर की वैश्विक साख को चुनौती देने की कोशिशों के जवाब में उठाया गया है। ट्रंप का यह निर्णय वैश्विक व्यापार में एक नए टैरिफ युद्ध की शुरुआत कर सकता है, जिसका असर न केवल BRICS देशों बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।

भारत और ब्राजील पर भारी टैरिफ

ट्रंप ने BRICS देशों में सबसे अधिक 50% टैरिफ भारत और ब्राजील पर लगाया है। भारत पर यह कार्रवाई खास तौर पर रूस से तेल खरीदने की वजह से की गई है, जिसे ट्रंप ने बौखलाहट में लिया गया कदम बताया है। इसके जरिए ट्रंप ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अगर BRICS देश अपनी मुद्रा में व्यापार की ओर बढ़ते हैं, तो उन्हें अमेरिकी बाजार में व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा। भारत, जो फार्मास्युटिकल्स, आईटी, और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में अमेरिका का प्रमुख निर्यातक है, को इस नीति से बड़ा नुकसान हो सकता है।

पुतिन का प्रस्ताव और BRICS की मुद्रा

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने सबसे पहले BRICS देशों को डॉलर की जगह अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं (जैसे रुपये, युआन, रूबल) में व्यापार करने का प्रस्ताव दिया था। 2022 में पुतिन ने एक नई अंतरराष्ट्रीय रिजर्व मुद्रा की वकालत की थी, जिसका उद्देश्य डॉलर की वैश्विक निर्भरता को कम करना था। हालांकि, BRICS ने अभी तक अपनी साझा मुद्रा को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं लिया है, लेकिन ट्रंप ने इस संभावना को खतरा मानते हुए टैरिफ की रणनीति अपनाई है। इससे वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ गया है, और BRICS देश एकजुट होकर इस चुनौती का जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं।

ट्रंप का डर: BRICS का बढ़ता प्रभाव

ट्रंप का मानना है कि BRICS का गठन अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने और डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को कम करने के लिए हुआ है। अमेरिकी डॉलर दशकों से वैश्विक व्यापार, तेल खरीद-बिक्री, और अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का आधार रहा है। विश्व व्यापार का लगभग 80% हिस्सा डॉलर में होता है, जो अमेरिका को आर्थिक स्थिरता और वैश्विक बाजारों पर नियंत्रण प्रदान करता है। BRICS देश, विशेष रूप से रूस और चीन, डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में तेजी से कदम उठा रहे हैं। ट्रंप के टैरिफ के बाद भारत भी इस दिशा में सक्रिय हो सकता है, जो अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका होगा।

BRICS का एकजुट होना

ट्रंप की कार्रवाई के बाद BRICS देश एकजुट हो रहे हैं। अगस्त 2025 के अंत में होने वाले चीन के SCO शिखर सम्मेलन में इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष एक मंच पर आ सकते हैं। इस दौरान वे अमेरिकी टैरिफ के जवाब में रणनीति बना सकते हैं। हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी-सिल्वा से अहम वार्ताएं की हैं। इसके अलावा, पुतिन और जिनपिंग, लूला और पुतिन, साथ ही दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने भी कई नेताओं से बातचीत की है। यह दर्शाता है कि BRICS देश अब डॉलर को चुनौती देने के लिए एकजुट हो रहे हैं।

अमेरिका के लिए संभावित झटका

अगर BRICS देश अपनी मुद्राओं में व्यापार शुरू करते हैं, तो यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा। डॉलर की मांग में कमी से अमेरिका की कम ब्याज पर कर्ज लेने की क्षमता और वैश्विक बाजारों पर उसका नियंत्रण कमजोर हो सकता है। BRICS देशों का बढ़ता प्रभाव और उनकी राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार की ओर कदम अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है।

ट्रंप की टैरिफ नीति

ट्रंप ने BRICS देशों को चेतावनी दी है कि अगर वे नई साझा मुद्रा बनाते हैं या डॉलर को चुनौती देते हैं, तो उन पर 100% तक टैरिफ लगाया जा सकता है। यह नीति उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देना और व्यापार घाटे को कम करना है। हालांकि, यह कदम वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुंचा सकता है और भारत जैसे देशों के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है। भारतीय निर्यात, विशेष रूप से फार्मास्युटिकल्स, आईटी, और कपड़ा क्षेत्र, अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकते हैं।

भारत की कूटनीतिक चुनौती

भारत BRICS का संस्थापक सदस्य होने के साथ-साथ अमेरिका का महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार भी है। ट्रंप के 50% टैरिफ से भारतीय निर्यातकों को नुकसान होगा, क्योंकि इससे उत्पादों की लागत बढ़ेगी। भारत ने डी-डॉलरीकरण को लेकर सतर्क रुख अपनाया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट किया है कि भारत का उद्देश्य डॉलर को कमजोर करना नहीं है। भारत के सामने अमेरिका, चीन, और रूस के बीच कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की चुनौती है।

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