India-China Trade: बजट 2026 में भारत का बड़ा फैसला: चीन पर निर्भरता घटाने की तैयारी, बढ़ेंगे आयात शुल्क

India-China Trade - बजट 2026 में भारत का बड़ा फैसला: चीन पर निर्भरता घटाने की तैयारी, बढ़ेंगे आयात शुल्क
| Updated on: 29-Dec-2025 08:40 AM IST
भारत सरकार आगामी बजट 2026 में एक महत्वपूर्ण आर्थिक नीतिगत बदलाव की तैयारी कर रही है, जिसका उद्देश्य देश के व्यापार घाटे को कम करना और आयात पर अत्यधिक निर्भरता को समाप्त करना है। इस पहल के तहत, सरकार उन उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाने पर विचार कर रही है जिनका आयात स्थानीय उत्पादन के बावजूद अधिक बना हुआ है। साथ ही, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कुछ उत्पादों को लक्षित प्रोत्साहन भी दिए जा सकते हैं। यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों से बचाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

आयात पर निर्भरता कम करने की रणनीति

वर्तमान में, भारत कई उत्पादों का आयात कर रहा है, भले ही उनका उत्पादन देश के भीतर भी हो रहा हो और इस स्थिति को बदलने के लिए, सरकार ने लगभग 100 उत्पादों की एक सूची की समीक्षा की है। इस सूची में इंजीनियरिंग कंपोनेंट्स, इस्पात उत्पाद, मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुएं जैसे सूटकेस और फर्श सामग्री शामिल हैं। इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने या स्थानीय उत्पादकों को वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया जा सकता है और इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य व्यापार घाटे को कम करना और आपूर्ति श्रृंखला पर किसी एक देश की निर्भरता को घटाना है, जिससे देश की आर्थिक सुरक्षा मजबूत हो सके।

भारत के सामने दोहरी व्यापार चुनौती

भारत वर्तमान में दो प्रमुख व्यापारिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। पहली चुनौती अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से संबंधित है। भारत के कई उत्पादों पर अमेरिका द्वारा 50 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया है, जिससे भारतीय निर्यातकों को काफी नुकसान हो रहा है और भले ही अमेरिका के साथ भारत का कुल निर्यात बढ़ा हो और भारत के समग्र निर्यात में भी वृद्धि देखी गई हो, लेकिन टैरिफ और व्यापार समझौते पर कोई सहमति न बन पाने के कारण भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशकों की बेरुखी साफ दिखाई देती है। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते और टैरिफ हटाने पर बातचीत अभी भी जारी है, और जब तक। दोनों देश सभी मुद्दों पर एकमत नहीं हो जाते, तब तक भारत को इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा: एक बड़ी चिंता

दूसरी और अधिक गंभीर चुनौती चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा है। यह समस्या अमेरिकी टैरिफ से भी बड़ी मानी जा रही है, क्योंकि इसे हल करने के लिए भारत को किसी बाहरी देश से बातचीत करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि देश की सरकार को स्वयं ही कदम उठाने होंगे और चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा मौजूदा समय में 100 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है, जो भारत की अर्थव्यवस्था और कमाई पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। भारत की चीन के सामान पर अत्यधिक निर्भरता एक दीमक की तरह है, जो लगातार भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को खोखला कर रही है और देश की समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।

बजट 2026 में संभावित बड़े ऐलान

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए, भारत सरकार बजट 2026 में कई बड़े ऐलान कर सकती है। इन ऐलानों का सीधा असर चीन पर पड़ेगा और उसकी नींद हराम हो सकती है। जानकारी के अनुसार, भारत आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए ऐसे कई उपाय कर सकता है, जिनसे भारत का व्यापार घाटा काफी हद तक कम हो सकता है और इन उपायों से उन देशों को विशेष रूप से परेशानी हो सकती है जिनके साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत बड़ा है, खासकर वे देश जिनके साथ भारत का गैर-तेल व्यापार अधिक है। सरकार का लक्ष्य उन भौगोलिक क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना है जहां से कुछ वस्तुएं बड़ी मात्रा में आयात की जाती हैं, जिससे आयात से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सके।

नीतिगत बदलावों का विस्तृत खाका

इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने मीडिया रिपोर्ट में बताया कि कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिनके लिए भारत कुछ विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर है। सरकार इस निर्भरता को कम करना चाहती है। अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि कुछ वस्तुओं को वित्तीय सहायता दी जा सकती है ताकि उनके स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिले, जबकि अन्य पर आयात शुल्क बढ़ाया जा सकता है ताकि आयात को हतोत्साहित किया जा सके और सरकार ने लगभग 100 वस्तुओं की एक विस्तृत सूची तैयार की है, जिसमें इंजीनियरिंग सामान, इस्पात उत्पाद और मशीनरी के अलावा सूटकेस और फर्श सामग्री जैसी उपभोक्ता वस्तुएं शामिल हैं, जिन पर प्रोत्साहन देने या शुल्क बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। वर्तमान में, इनमें से कई उत्पादों पर आयात शुल्क 7. 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के बीच है, जिसे बढ़ाया जा सकता है।

व्यापार घाटे की बढ़ती चिंता

यह कदम देश के व्यापार घाटे में लगातार हो रही वृद्धि के मद्देनजर उठाया गया है और वित्त वर्ष 2026 के अप्रैल-नवंबर की अवधि में, भारत ने 292 अरब डॉलर मूल्य का सामान निर्यात किया, जबकि इसी अवधि में 515. 2 अरब डॉलर मूल्य का सामान आयात किया और इसके परिणामस्वरूप लगभग 223. 2 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ, जो नीति निर्माताओं के लिए बाहरी कमजोरियों को लेकर चिंता का एक बड़ा कारण बना हुआ है और विचार-विमर्श से परिचित एक व्यक्ति ने बताया कि उद्योग को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में एक ही स्रोत पर निर्भरता कम करने और स्थानीय स्रोतों को विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है। इस्पात उद्योग के एक प्रतिनिधि ने इस संदर्भ में कहा कि समस्या कुछ स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं की निम्न गुणवत्ता और आयात के मुकाबले अधिक कीमतों की है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है।

चीन: भारत के लिए सबसे बड़ा आयात स्रोत

चीन कई श्रेणियों में भारत के लिए प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जिससे व्यापार असंतुलन और बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2025 में भारत ने 20. 85 मिलियन डॉलर मूल्य की छतरियां आयात कीं, जिनमें से 17. 7 मिलियन डॉलर अकेले चीन से मंगाई गईं और इसी तरह, 2024-25 में चश्मे और गॉगल्स का आयात लगभग 114 मिलियन डॉलर का था, जिनमें से लगभग आधा चीन से आया और एक महत्वपूर्ण हिस्सा हांगकांग के रास्ते भेजा गया, जबकि इटली तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा।

कुछ कृषि मशीनरी के भारत के आयात में भी चीन की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक है। यह असंतुलन द्विपक्षीय व्यापार में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है और वित्त वर्ष 2026 के अप्रैल-नवंबर में भारत का चीन को माल निर्यात 12. 2 बिलियन डॉलर था, जबकि आयात 84. 2 बिलियन डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 72 बिलियन डॉलर का भारी व्यापार घाटा हुआ। इन आंकड़ों को देखते हुए, सरकार का यह कदम चीन पर निर्भरता कम। करने और घरेलू उद्योगों को मजबूत करने की दिशा में एक रणनीतिक पहल है।

आगे की राह और आर्थिक आत्मनिर्भरता

सरकार का यह प्रस्तावित कदम न केवल व्यापार घाटे को कम करने में मदद करेगा, बल्कि यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अधिक लचीला और आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायक होगा। स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन देने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और देश की विनिर्माण क्षमता में वृद्धि होगी। यह नीतिगत बदलाव भारत की आर्थिक संप्रभुता को मजबूत करने और भविष्य की वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के खिलाफ एक मजबूत ढाल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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