नई दिल्ली: कॉफी डे का कर्ज एक साल में दोगुना होकर 5251 करोड़ पहुंचा, सिद्धार्थ समेत प्रमोटर के 75% शेयर गिरवी

नई दिल्ली - कॉफी डे का कर्ज एक साल में दोगुना होकर 5251 करोड़ पहुंचा, सिद्धार्थ समेत प्रमोटर के 75% शेयर गिरवी
| Updated on: 02-Aug-2019 04:15 PM IST
नई दिल्ली. कॉफी डे एंटरप्राइजेज पर मार्च के आखिर तक 5,251 करोड़ रुपए का कर्ज था। एक साल पहले यह 2,457.3 करोड़ रुपए था। प्रमोटरों (वीजी सिद्धार्थ और परिवार के सदस्य) के 75% शेयर गिरवी रखे हैं। वीजी सिद्धार्थ की अनलिस्टेड कंपनियों की देनदारियां भी कॉफी डे के बराबर हो सकती हैं। कंपनी द्वारा शेयर बाजार और कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री को दी गई फाइलिंग के आधार पर न्यूज एजेंसी ने गुरुवार को यह जानकारी दी।

जून के आखिर तक कॉफी डे के 32.7% शेयर सिद्धार्थ के नाम थे

मिनिस्ट्री फाइलिंग के मुताबिक, सिद्धार्थ कॉफी डे एंटरप्राइजेज और चार अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर गिरवी रख फंड जुटाने की कोशिश कर रहे थे। ताकि, व्यक्तिगत और व्यावसायिक कर्ज चुका सकें। कर्ज का कुछ भुगतान जुलाई में भी करना था। सिद्धार्थ ने नॉन कॉफी बिजनेस के लिए भी कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों से कर्ज लिया था।

जून के आखिर तक कॉफी डे एंटरप्राइजेज (सीडीईएल) के 32.7% शेयर सिद्धार्थ के नाम थे। पत्नी मालविका के पास 4.05% शेयर थे। सिद्धार्थ की 4 अन्य कंपनियों देवदर्शिनी इन्फो टेक्नोलॉजीज, कॉफी डे कंसोलिडेशंस, गोनिबेदु कॉफी एस्टेट और सिवान सिक्योरिटीज के पास करीब 17% हिस्सेदारी थी।

सिद्धार्थ की पत्नी मालविका कॉफी डे की चेयरपर्सन बन सकती हैं

कॉफी डे एंटरप्राइजेज ने जून तिमाही के नतीजे घोषित नहीं किए हैं। 8 अगस्त को कंपनी की बोर्ड बैठक होगी। उसके बाद नतीजों का ऐलान किया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वीजी सिद्धार्थ की मौत के बाद अब पत्नी मालविका कंपनी की कमान संभाल सकती हैं। वे पहले से ही कंपनी के बोर्ड में शामिल हैं। मालविका ने बेंगलुरू यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। वे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की बेटी हैं। एसवी रंगनाथ फिलहाल कॉफी डे के अंतरिम चैयरमैन हैं।

कारोबारी विफलता को बुरी नजर से नहीं देखा जाना चाहिए: वित्त मंत्री

वीजी सिद्धार्थ की मौत के मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को ऐसा कहा। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसा माहौल बनाना चाहती है जिससे कारोबारी विफलता अभिशाप न बने। इसमें इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) की अहम भूमिका हो सकती है। ताकि, कारोबारी सम्मानजनक तरीके से कर्ज से बाहर निकल सकें और कंपनी बंद भी न हो। सीतारमण लोकसभा में आईबीसी संशोधन विधेयक पर बहस का जवाब दे रही थीं।

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