India-China Tension: हिमालय में भारत का बड़ा निर्माण कार्य: अमेरिकी मीडिया का दावा, चीन से झड़प के बाद तेज हुई गति
India-China Tension - हिमालय में भारत का बड़ा निर्माण कार्य: अमेरिकी मीडिया का दावा, चीन से झड़प के बाद तेज हुई गति
भारत हिमालयी क्षेत्र में चीन से होने वाली किसी भी संभावित झड़प से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है। यह जानकारी अमेरिकी मीडिया वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक विस्तृत रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सड़कें, सुरंगें और हवाई पट्टियां बना रहा है, जिसका उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी सैन्य क्षमताओं और पहुंच को मजबूत करना है। यह व्यापक निर्माण अभियान 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद शुरू हुआ, जिसने 2200 मील लंबी सीमा पर भारत की सामान पहुंचाने की व्यवस्था (लॉजिस्टिक्स) की बड़ी कमियों को उजागर किया था।
गलवान संघर्ष: लॉजिस्टिक्स की कमियों का खुलासा
2020 की गलवान घाटी की झड़प एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने भारत। की सीमावर्ती बुनियादी ढांचे की कमजोरियों को स्पष्ट रूप से सामने ला दिया। 14,000 फीट की ऊंचाई पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच डंडों और कांटेदार तारों से लिपटे क्लबों से हाथापाई हुई थी। इस घटना ने दिखाया कि चीन, अपने मजबूत कनेक्टिविटी नेटवर्क के कारण, कुछ ही घंटों में सहायता पहुंचा सकता था, जबकि भारत को उस इलाके की खराब या नहीं के बराबर सड़कों से अतिरिक्त सैनिकों को पहुंचाने में एक सप्ताह का समय लगता था। लद्दाख के उत्तरी क्षेत्र में पूर्व ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स प्रमुख मेजर जनरल अमृत पाल सिंह ने वॉल। स्ट्रीट जर्नल से कहा, "इस घटना के बाद हमें अपनी पूरी रणनीति बदलने की जरूरत महसूस हुई। " यह बयान भारत की रक्षा योजना में एक मौलिक बदलाव को रेखांकित करता है, जिसमें अब सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने की क्षमता को प्राथमिकता दी जा रही है। इस घटना ने न केवल सैन्य तैयारियों की आवश्यकता को उजागर किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि कैसे भौगोलिक बाधाएं और अपर्याप्त बुनियादी ढांचा एक राष्ट्र की रक्षा क्षमताओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।दशकों का अंतर: चीन का मजबूत सीमावर्ती नेटवर्क
दशकों से, चीन ने अपनी सीमा पर रेल और सड़कों का एक विशाल और आधुनिक नेटवर्क बनाया है, जिससे उसे अपनी सेना और आपूर्ति को तेजी से और कुशलता से स्थानांतरित करने की क्षमता मिली है। इसके विपरीत, भारत अपने पहाड़ी सीमावर्ती इलाकों में सैनिकों को तेजी से पहुंचाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण में पीछे रह गया था। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, दशकों से भारत ने अपनी सीमा के ज्यादातर हिस्से पर बड़े निर्माण से परहेज किया था और भारत का मानना था कि ऊंचे हिमालय और सड़कों की कमी चीनी घुसपैठ को आने से रोकेंगे, और ये उसके लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करेंगे। वाशिंगटन थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर के सीनियर फेलो डैनियल मार्की ने इस पुरानी सोच पर टिप्पणी करते हुए कहा, "यह चीनी आक्रमण के लिए लाल कालीन बिछाने जैसा था। भारतीय सोचते थे कि सड़कें बनाना उनके लिए खतरनाक हो सकता था। " यह दृष्टिकोण, हालांकि ऐतिहासिक रूप से समझा जा सकता है, आधुनिक सैन्य रणनीति और चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों के सामने अपर्याप्त साबित हुआ और चीन ने अपनी सीमाओं को मजबूत करने और शिनजियांग और तिब्बत के आसपास हजारों मील सड़कें और रेलवे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिससे भारत पर अपनी रणनीति बदलने का दबाव पड़ा।कनेक्टिविटी का नया युग: रणनीतिक बुनियादी ढांचा परियोजनाएं
2000 के दशक के मध्य तक, नई दिल्ली ने चीन को अपनी सीमाओं को मजबूत करते और शिनजियांग और तिब्बत के आसपास हजारों मील सड़कें और रेलवे बनाते देखा। इस अवलोकन ने भारत को अपनी निर्माण गतिविधियों में तेजी लाने के लिए प्रेरित किया और भारत के नॉर्दर्न कमांड के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि इन परियोजनाओं का मुख्य मकसद ऊंचाई वाले सैन्य चौकियों को अलग-थलग पड़ी नागरिक बस्तियों से जोड़ना है। यह विशेष रूप से उन जगहों के लिए महत्वपूर्ण है जो कड़ाके की सर्दी में बाकी दुनिया से कट जाती हैं। इन परियोजनाओं का दोहरा लाभ है: वे न केवल सैन्य रसद और सैनिकों की आवाजाही को सुगम बनाती हैं, बल्कि वे सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के जीवन को भी बेहतर बनाती हैं, उन्हें आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति तक पहुंच प्रदान करती हैं और यह रणनीतिक बदलाव भारत की रक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण विकास को दर्शाता है, जहां अब बुनियादी ढांचे को केवल सैन्य आवश्यकता के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय विकास के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा जा रहा है।जोजिला सुरंग: ऊंचाई पर एक महत्वपूर्ण परियोजना
भारत के सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक जोजिला सुरंग है, जिसे उत्तरी भारत के पहाड़ों में लगभग 11,500 फीट की ऊंचाई पर बनाया जा रहा है और यह परियोजना 2020 के संघर्ष के कुछ महीनों बाद शुरू हुई, जो सीमा पर कनेक्टिविटी की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 750 मिलियन डॉलर (लगभग 6,734 करोड़ रुपये) से अधिक की लागत आने का अनुमान है, और इसे 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। लगभग 9 मील (15 किमी) लंबी यह सुरंग लद्दाख में सीमा चौकियों तक सामान पहुंचाने के मुश्किल काम को आसान बना देगी। लद्दाख में भारी बर्फबारी के कारण ये चौकियां साल में छह महीने तक आपूर्ति लाइन से कटी रहती हैं, जिससे वहां तैनात सैनिकों के लिए जीवन और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है और जोजिला सुरंग का निर्माण न केवल सैन्य आपूर्ति को सुगम बनाएगा, बल्कि यह क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देगा, जिससे स्थानीय समुदायों को लाभ होगा। यह सुरंग इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है, जो अत्यधिक ऊंचाई और कठोर मौसम की स्थिति। में बनाई जा रही है, जो भारत के दृढ़ संकल्प और तकनीकी कौशल का प्रमाण है।लॉजिस्टिक्स बाधाओं पर विजय: जोजिला का प्रभाव
वर्तमान में, लद्दाख की दूरस्थ सीमा चौकियों तक सामान पहुंचाना एक अत्यंत कठिन और समय लेने वाला कार्य है। सामान पहले ट्रकों या ट्रेनों से जम्मू और कश्मीर के पड़ोसी डिपो तक पहुंचाया जाता है। वहां से, सेना के काफिले उन्हें लद्दाख की राजधानी लेह तक ले जाते हैं और लेह से, छोटी गाड़ियां खराब और खतरनाक रास्तों से गुजरती हैं, और अंत में, पोर्टर (सामान ढोने वाले लोग) और खच्चर समुद्र तल से 20,000 फीट ऊपर तक आवश्यक सामान पहुंचाते हैं। यह प्रक्रिया न केवल धीमी है, बल्कि इसमें भारी जनशक्ति और संसाधनों की भी आवश्यकता होती है। हर सैनिक को हर महीने लगभग 220 पाउंड आपूर्ति की जरूरत होती है, जिसमें भोजन, कपड़े और टूथपेस्ट जैसी जरूरी चीजें शामिल हैं। इसके अलावा, 30 सैनिकों वाली एक चौकी में हर दिन लगभग 13 गैलन ईंधन की खपत होती है, जिसे किसी के कंधे पर चढ़ाकर ऊपर पहुंचाया जाता है। जोजिला सुरंग के बनने से श्रीनगर और लद्दाख के बीच यात्रा का समय कुछ इलाकों में 3 घंटे से घटकर मात्र 20 मिनट हो जाएगा, जिससे सामान की आवाजाही में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। यह सुरंग न केवल आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित करेगी, बल्कि यह सैनिकों के लिए प्रतिक्रिया समय को भी काफी कम कर देगी, जिससे सीमा सुरक्षा मजबूत होगी और इस परियोजना में एक बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती श्रमिकों और बाद में डीजल से चलने वाली सेना की ट्रकों के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन (हवा का आना-जाना) बनाए रखना है। इस विशाल परियोजना में 1,000 से अधिक वर्कर्स काम कर रहे हैं,। जो इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक निवेश की गंभीरता को दर्शाता है।
2020 की झड़प के बाद से, पैंगोंग त्सो झील पर तनाव बना हुआ है, जो लद्दाख से चीन के तिब्बत तक फैली हुई 80 मील लंबी झील है और इस क्षेत्र में, दोनों देशों ने सड़कों और इमारतों का निर्माण तेज कर दिया है, जो सीमा पर चल रहे सैन्यीकरण का एक स्पष्ट संकेत है। ऑस्ट्रेलियाई स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट की सीनियर फेलो राजेश्वरी पिल्लई राजगोपालन के अनुसार, चीन ने पिछले साल झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ने वाले एक पुल का निर्माण पूरा किया है। यह पुल चीनी सैनिकों को झील के चारों ओर लंबे रास्ते तय करने के बजाय सीधे पार करने की सुविधा देता है, जिससे उनकी गतिशीलता और प्रतिक्रिया क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। इसके जवाब में, भारत ने भी तट के साथ अपनी चौकियों का विस्तार किया है और पास के ठिकानों में सड़कों को अपग्रेड किया है। 2021 में झील पर सैनिकों को पीछे हटाने के समझौते के बावजूद, दोनों पक्ष वहां सैन्य मौजूदगी बनाए। हुए हैं, जो इस क्षेत्र की रणनीतिक संवेदनशीलता और भविष्य के संभावित टकरावों की निरंतर संभावना को दर्शाता है। यह निरंतर निर्माण और सैन्य उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि दोनों देश इस महत्वपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।बजट में वृद्धि और वायु शक्ति का संवर्धन
भारत सरकार ने सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अपने वित्तीय आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की है। रक्षा मंत्रालय ने कंस्ट्रक्शन एजेंसी बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) का बजट इस साल 810 मिलियन डॉलर (लगभग 7,274 करोड़ रुपये) तक बढ़ाया है, जो 2020 में 280 मिलियन डॉलर (लगभग 2,514 करोड़ रुपये) था। इसी अवधि में, भारत का कुल सैन्य खर्च लगभग 60% बढ़कर 80 बिलियन डॉलर (लगभग 7. 18 लाख करोड़ रुपये) हो गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। BRO ने पहले ही सीमा पर हजारों मील नई सड़कें बना ली हैं, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच में सुधार हुआ है। सड़क नेटवर्क के अलावा, भारत ने अपनी वायु शक्ति को मजबूत करने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। सीमा पर 30 से अधिक हेलीपैड बनाए गए हैं, और। कई हवाई पट्टियों को अपग्रेड और नया बनाया गया है। इनमें से एक महत्वपूर्ण विकास लद्दाख में लगभग 14,000 फीट की ऊंचाई पर नया। मुध-न्योमा वायु सेना बेस है, जो चीन की सीमा से महज 19 मील दूर है। यह बेस भारत के भारी सैन्य परिवहन विमानों जैसे अमेरिकी C-130J के लिए बनाया गया है, और यह सीमा क्षेत्रों की ओर जाने वाले सैनिकों और उपकरणों के लिए एक स्टेजिंग ग्राउंड के रूप में काम करेगा, जिससे त्वरित तैनाती और आपूर्ति संभव होगी।भारत की सीमा रणनीति का ऐतिहासिक संदर्भ
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, दशकों से भारत ने अपनी सीमा के ज्यादातर हिस्से पर बड़े कंस्ट्रक्शन से परहेज किया था। भारत का मानना था कि ऊंचे हिमालय और सड़कों की कमी चीनी घुसपैठ को। आने से रोकेंगे, और यह उसके लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करेंगे। इस रणनीति का आधार यह विश्वास था कि दुर्गम भूभाग स्वयं एक प्रभावी रक्षा। प्रदान करेगा, और सड़कों का निर्माण संभावित आक्रमणकारियों के लिए मार्ग खोल सकता है। हालांकि, 2000 के दशक के मध्य तक, नई दिल्ली ने देखा कि चीन अपनी सीमाओं को मजबूत करने और झिंजियांग और तिब्बत के आसपास हजारों मील सड़कें और रेलवे बना रहा है। चीन की इस आक्रामक बुनियादी ढांचा विकास नीति ने भारत को अपनी पुरानी सोच पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया और इसके बाद, भारत भी निर्माण कार्य में तेजी लेकर आया, यह महसूस करते हुए कि केवल प्राकृतिक बाधाओं पर निर्भर रहना अब पर्याप्त नहीं था। यह रणनीतिक बदलाव भारत की रक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उसे चीन की बढ़ती सैन्य। क्षमताओं और सीमावर्ती क्षेत्रों में उसकी उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।गलवान घाटी संघर्ष: एक विस्तृत विवरण
15 जून 2020 को, चीन ने ईस्टर्न लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में एक्सरसाइज के बहाने सैनिकों को जमा किया था, जिसके बाद कई जगह पर घुसपैठ की घटनाएं हुई थीं। भारत सरकार ने भी इस इलाके में चीन के बराबर संख्या। में सैनिक तैनात कर दिए थे, जिससे तनाव और बढ़ गया। हालात इतने खराब हो गए कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गोलियां चलीं, जो दशकों में पहली बार था। इसी दौरान 15 जून को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। बाद में भारत ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया था, जिसमें 40 चीनी सैनिक मारे गए थे। इस घटना ने दोनों देशों के रिश्तों में बड़ा तनाव पैदा कर दिया था, और सीमा विवाद एक नए और अधिक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था। अक्टूबर 2024 में, भारत और चीन ने LAC पर बचे हुए टकराव वाले इलाकों से पीछे हटने पर सहमति जताई थी, हालांकि सीमा पर तनाव अभी भी बना हुआ है। यह संघर्ष दोनों देशों के बीच संबंधों में एक काला अध्याय था, जिसने भारत को अपनी सीमा सुरक्षा रणनीति पर गंभीरता से पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।चीन की वैश्विक सैन्य महत्वाकांक्षाएं: एक व्यापक खतरा
भारत की सीमा पर अपनी गतिविधियों के अलावा, चीन अपनी वैश्विक सैन्य उपस्थिति का भी विस्तार कर रहा है। अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट 'पेंटागन' की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत दुनिया के 21 देशों में नए मिलिट्री बेस बनाने की योजना पर काम कर रही है। इन ठिकानों का मुख्य मकसद चीन की नेवी और एयरफोर्स को दूर देशों तक ऑपरेशन करने में मदद देना और वहां आर्मी तैनात करना है। PLA की सबसे ज्यादा दिलचस्पी उन इलाकों में है, जहां से दुनिया का अहम समुद्री व्यापार गुजरता है, जैसे मलक्का स्ट्रेट, होरमुज स्ट्रेट और अफ्रीका व मिडिल ईस्ट के कुछ स्ट्रैटेजिक पाइंट्स। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन के ये विदेशी सैन्य ठिकाने सिर्फ सैन्य मदद के लिए नहीं, बल्कि खुफिया जानकारी जुटाने के लिए भी इस्तेमाल हो सकते हैं और ऐसा लॉजिस्टिक नेटवर्क अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सेनाओं की एक्टिविटी पर नजर रखने में मदद कर सकता है, जिससे चीन को वैश्विक स्तर पर अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने का अवसर मिलेगा। यह विस्तारवादी नीति न केवल क्षेत्रीय शक्तियों के लिए, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।एक नई भू-राजनीतिक वास्तविकता
भारत का हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का यह व्यापक और त्वरित विकास चीन के साथ चल रहे सीमा तनावों की सीधी प्रतिक्रिया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट भारत के रणनीतिक बदलाव को उजागर करती है, जहां अब प्राकृतिक बाधाओं पर निर्भर रहने के बजाय सक्रिय रूप से अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया जा रहा है और जोजिला सुरंग जैसी परियोजनाएं, बढ़ी हुई सैन्य बजट और नए हवाई अड्डों का निर्माण, सभी भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं कि वह अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखेगा और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहेगा। यह न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा और चीन की बढ़ती वैश्विक सैन्य महत्वाकांक्षाओं के साथ, भारत का यह कदम एक नई भू-राजनीतिक वास्तविकता को दर्शाता है, जहां क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए निरंतर सतर्कता और रणनीतिक निवेश आवश्यक है।