India-Russia Relation: पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदकर वैश्विक तेल बाजार में अपनी स्थिति मजबूत की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण रूस ने अपने तेल पर भारी छूट देना शुरू किया, जिसका भारत ने जमकर फायदा उठाया। हालांकि, ब्रोकरेज फर्म CLSA की एक हालिया रिसर्च रिपोर्ट ने इस धारणा को चुनौती दी है कि इस सौदे से भारत को अरबों डॉलर की बचत हो रही है। आइए, इस विषय पर गहराई से नजर डालें।
फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए। इन प्रतिबंधों ने रूस को अपने कच्चे तेल के लिए नए खरीदार तलाशने पर मजबूर किया। रूस ने वैश्विक बाजार में अपने तेल की कीमतों में भारी छूट दी, जिसका लाभ उठाते हुए भारत उसका सबसे बड़ा खरीदार बनकर उभरा। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने अपने कुल तेल आयात का 36%, यानी लगभग 18 लाख बैरल प्रतिदिन, रूस से आयात किया। यह आंकड़ा युद्ध से पहले 1% से भी कम था। इस बदलाव ने भारत को किफायती तेल आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद की, लेकिन क्या यह वास्तव में उतना फायदेमंद है जितना बताया गया?
CLSA ने अपनी गुरुवार को जारी रिपोर्ट में दावा किया है कि रूस से सस्ते तेल के आयात से भारत को होने वाला लाभ मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि भारत को इस सौदे से सालाना 10 से 25 अरब डॉलर की बचत हो रही है, लेकिन CLSA का कहना है कि वास्तविक शुद्ध मुनाफा केवल 2.5 अरब डॉलर सालाना है। यह भारत की जीडीपी का महज 0.06% है, जो कि अपेक्षाकृत बहुत कम है।
रिपोर्ट में बताया गया कि रूसी तेल की कीमत भले ही 60 डॉलर प्रति बैरल तक कम हो, लेकिन इंश्योरेंस, शिपिंग, और रिस्क प्रीमियम जैसे अतिरिक्त खर्चों के कारण भारत को मिलने वाला वास्तविक लाभ काफी कम हो जाता है। CLSA के अनुसार, 2023-24 में रूसी तेल पर औसत छूट 8.5 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अब घटकर 3 से 5 डॉलर प्रति बैरल रह गई है। हाल के महीनों में यह छूट और कम होकर 1.5 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है।
CLSA की रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि रूसी तेल की खरीद से जुड़े जोखिम और लागत को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। रूस से तेल आयात करने में शिपिंग लागत अधिक होती है, क्योंकि कई पश्चिमी शिपिंग कंपनियां रूस के साथ व्यापार से बच रही हैं। इसके अलावा, रूसी तेल के लिए इंश्योरेंस और रिस्क प्रीमियम भी लागत को बढ़ाते हैं। ये सभी कारक मिलकर भारत को मिलने वाली छूट के लाभ को काफी हद तक कम कर देते हैं।
CLSA ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर भारत रूसी तेल की खरीद बंद कर देता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। रूस विश्व का एक प्रमुख तेल निर्यातक है, और भारत जैसे बड़े खरीदार के हटने से वैश्विक तेल की कीमतें 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। इससे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में ऊर्जा लागत बढ़ सकती है, जिसका असर महंगाई और आर्थिक स्थिरता पर पड़ सकता है।