Isro And Elon Musk News: कितना खास है मस्क के फाल्कन 9 रॉकेट, जानें इसरो की पहली पसंद क्यों बना

Isro And Elon Musk News - कितना खास है मस्क के फाल्कन 9 रॉकेट, जानें इसरो की पहली पसंद क्यों बना
| Updated on: 18-Nov-2024 06:00 AM IST
Isro And Elon Musk News: भारत का प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), और एलन मस्क की अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी, स्पेसएक्स, मिलकर एक सैटेलाइट लॉन्च की योजना बना रहे हैं। यह दोनों संगठनों की पहली कमर्शियल पार्टनरशिप है और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है। इस साझेदारी के तहत भारत का कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-20 19 नवंबर 2024 को फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

जीसैट-20: भारतीय संचार क्षेत्र के लिए एक नई दिशा

जीसैट-20, जिसे जीसैट-एन2 (GSAT-N2) भी कहा जाता है, भारत की कम्युनिकेशन सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सैटेलाइट 4,700 किलोग्राम वजन का है और इसमें के-बैंड हाई-थ्रूपुट संचार पेलोड है, जो 14 साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और संचार सेवाओं को बढ़ाना है।

इस सैटेलाइट का वजन इसरो के LVM-3 रॉकेट की क्षमता से अधिक है, जो अधिकतम 4,000 किलोग्राम पेलोड को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में भेज सकता है। यही वजह है कि इस सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए इसरो को स्पेसएक्स के साथ साझेदारी करनी पड़ी।

फाल्कन 9 रॉकेट: तकनीकी और किफायती दोनों

स्पेसएक्स का फाल्कन 9 रॉकेट अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक प्रमुख विकल्प बन चुका है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसकी पुनः उपयोगिता (reusability)। यह रॉकेट अपने पहले चरण (फर्स्ट स्टेज) को फिर से धरती पर लाकर दोबारा इस्तेमाल कर सकता है, जिससे मिशन की लागत में भारी कमी आती है। इसके अलावा, फाल्कन 9 रॉकेट की पेलोड क्षमता भी बहुत बड़ी है, जो इसे इस मिशन के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है। यह रॉकेट 22,800 किलोग्राम तक पेलोड लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और 8,300 किलोग्राम पेलोड जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में ले जाने में सक्षम है।

क्यों चुना गया स्पेसएक्स?

इसरो ने पहले अपने भारी सैटेलाइट्स के लिए यूरोपीय एरियनस्पेस से सेवाएं ली थीं, लेकिन वर्तमान में एरियनस्पेस के पास ऑपरेशनल रॉकेट्स की कमी है। इसके अलावा, वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों और रूस-चीन के साथ तनाव के कारण, स्पेसएक्स को सबसे उपयुक्त विकल्प के रूप में देखा गया। यह साझेदारी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और संचार सेवाओं में नए आयाम जोड़ने का कार्य करेगी।

सैटेलाइट से जुड़ी नई सेवाएं

जीसैट-20 सैटेलाइट की मदद से भारत में दूरस्थ क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और इन-फ्लाइट इंटरनेट सेवाएं प्रदान की जाएंगी। इस सैटेलाइट में 32 यूजर बीम होंगे, जिनमें आठ नैरो बीम और 24 कॉम्प्रीहेंसिव बीम शामिल हैं। ये बीम भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हब स्टेशनों द्वारा सपोर्ट किए जाएंगे, जिससे संचार सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा।

2025 में एक और ऐतिहासिक मिशन

इसरो और स्पेसएक्स के बीच सहयोग केवल इस सैटेलाइट लॉन्च तक सीमित नहीं है। 2025 में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) भेजने की योजना है। हालांकि यह मिशन स्पेसएक्स के जरिए नहीं होगा, लेकिन उन्हें भेजने के लिए स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाएगा। यह एक और उदाहरण है कि कैसे भारत और स्पेसएक्स मिलकर अंतरिक्ष अन्वेषण में नई उपलब्धियां हासिल करने के लिए सहयोग कर रहे हैं।

निष्कर्ष

इसरो और स्पेसएक्स की यह साझेदारी न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। फाल्कन 9 रॉकेट का इस्तेमाल और जीसैट-20 सैटेलाइट की लॉन्चिंग, भारतीय संचार क्षेत्र में नई क्रांति की शुरुआत कर सकती है। इस सहयोग से भारत को नई तकनीकी क्षमताएं प्राप्त होंगी, जो देश की अंतरिक्ष शक्ति को और मजबूत करेंगी।

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