India-Russia Relation: भारत-रूस सैन्य सहयोग को मिली नई उड़ान: पुतिन ने RELOS समझौते को दी मंजूरी
India-Russia Relation - भारत-रूस सैन्य सहयोग को मिली नई उड़ान: पुतिन ने RELOS समझौते को दी मंजूरी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के साथ एक ऐतिहासिक सैन्य. समझौते, रिसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट (RELOS) को आधिकारिक मंजूरी दे दी है. यह कदम भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग को एक नए स्तर पर ले जाएगा, जिससे दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के क्षेत्र में कानूनी रूप से काम कर सकेंगी. इस समझौते का मुख्य उद्देश्य संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण और आपदा राहत कार्यों के दौरान. लॉजिस्टिक सहायता को सुव्यवस्थित करना है, जिससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी.
समझौते का महत्व और उद्देश्य
RELOS समझौता भारत और रूस के बीच सैन्य सहयोग को गहरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और यह दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे की जमीन, एयरबेस, समुद्री बंदरगाहों और अन्य सैन्य सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है. इसका मतलब है कि भारतीय सेना रूसी क्षेत्र में और रूसी सेना भारतीय क्षेत्र में ईंधन, मरम्मत, भोजन, उपकरण और अन्य आवश्यक लॉजिस्टिक सहायता प्राप्त कर सकेगी. यह प्रावधान सैन्य अभियानों को अधिक कुशल और प्रभावी बनाएगा, विशेष रूप से जब सेनाएं अपने घरेलू ठिकानों से दूर काम कर रही हों. इस समझौते का मकसद दोनों देशों की सेनाओं को आपसी सहमति से एक-दूसरे की जमीन पर काम करने की स्पष्ट कानूनी व्यवस्था देना है, जिससे भविष्य में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता या बाधाओं से बचा जा सके.कानूनी प्रक्रिया और अनुमोदन
इस समझौते को कानूनी रूप देने की प्रक्रिया कई चरणों से गुजरी है. क्रेमलिन ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति पुतिन ने सोमवार को इस समझौते को मंजूरी देने वाले कानून पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता मूल रूप से 18 फरवरी 2025 को भारत और रूस के बीच हस्ताक्षरित हुआ था और इसके बाद, इसे नवंबर में रूसी संसद की मंजूरी के लिए भेजा गया था. रूसी संसद के निचले सदन, स्टेट ड्यूमा ने 2 दिसंबर को इस समझौते को मंजूरी दी, जिसके बाद इसे ऊपरी सदन, यानी काउंसिल ऑफ फेडरेशन में भेजा गया. काउंसिल ऑफ फेडरेशन ने 8 दिसंबर को इसे पारित किया, और अंततः इसे राष्ट्रपति की अंतिम मंजूरी के लिए भेजा गया और अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ, यह समझौता दोनों देशों के बीच मंजूरी के दस्तावेजों के आदान-प्रदान के बाद औपचारिक रूप से लागू हो जाएगा.RELOS समझौते के तहत सुविधाएं
RELOS समझौते के तहत, दोनों देशों की सेनाओं को कई महत्वपूर्ण सुविधाएं मिलेंगी और इसमें एक-दूसरे के एयरस्पेस का उपयोग करने की अनुमति शामिल है, जिससे विमानों की आवाजाही आसान हो जाएगी. इसके अलावा, युद्धपोत एक-दूसरे के बंदरगाहों में रुक सकेंगे, जिससे उन्हें ईंधन भरने, मरम्मत करने और चालक दल के लिए आराम करने का अवसर मिलेगा. यह प्रावधान विशेष रूप से लंबी दूरी के समुद्री अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है. जरूरत पड़ने पर सैन्य उपकरणों और सैनिकों को तेजी से लॉजिस्टिक सपोर्ट मिल सकेगा, जिससे किसी भी आपात स्थिति या संयुक्त अभियान के दौरान प्रतिक्रिया समय में सुधार होगा. यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को और गहरा करेगा और उनकी रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाएगा.विभिन्न स्थितियों में उपयोग
यह समझौता विभिन्न स्थितियों में अत्यधिक उपयोगी साबित होगा. संयुक्त सैन्य अभ्यास के दौरान, दोनों सेनाएं एक-दूसरे की सुविधाओं का उपयोग करके अधिक जटिल और यथार्थवादी प्रशिक्षण परिदृश्य चला सकेंगी. प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी इसका लाभ मिलेगा, जिससे सैनिकों को विभिन्न भौगोलिक और परिचालन वातावरण में अनुभव प्राप्त होगा. मानवीय सहायता और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों के दौरान, यह समझौता त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगा, क्योंकि सेनाएं बिना किसी कानूनी बाधा के एक-दूसरे के क्षेत्र में सहायता प्रदान कर सकेंगी. इसके अतिरिक्त, अन्य विशेष परिस्थितियों में भी यह समझौता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जहां त्वरित लॉजिस्टिक समर्थन की आवश्यकता होगी.रणनीतिक निहितार्थ और हिंद-प्रशांत क्षेत्र
रूसी कैबिनेट के अनुसार, इस समझौते से रूस हिंद-प्रशांत महासागर में अपनी समुद्री उपस्थिति भी बढ़ा सकेगा. यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक निहितार्थ है, क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है और रूस की बढ़ी हुई उपस्थिति क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है और भारत के साथ उसके संबंधों को और मजबूत कर सकती है. यह समझौता न केवल द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को बढ़ावा देगा, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता में भी योगदान देगा. भारत और रूस के बीच यह गहरा होता रक्षा सहयोग वैश्विक मंच पर उनकी बढ़ती रणनीतिक साझेदारी. को दर्शाता है, जो दोनों देशों के साझा हितों और सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करने में सहायक होगा.