India Water Strike: भारत करेगा जिन्ना के देश पर वाटर स्ट्राइक, ये प्लान बदल देगा सारा गेम!

India Water Strike - भारत करेगा जिन्ना के देश पर वाटर स्ट्राइक, ये प्लान बदल देगा सारा गेम!
| Updated on: 01-Jul-2025 07:20 PM IST

India Water Strike: पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर करारा जवाब दिया था। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को निलंबित कर पाकिस्तान को पहले ही झटका दे दिया। अब खबर है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में रुके हुए तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने की तैयारी कर ली है। यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है, क्योंकि इससे भारत को जल संसाधनों पर अधिक नियंत्रण मिलेगा।

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट क्या है?

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर के सोपोर के पास झेलम नदी पर बनने वाला एक जल भंडारण और नौवहन प्रोजेक्ट है। इसे 1984 में शुरू किया गया था, जिसमें वुलर झील के मुहाने पर 439 फीट लंबा और 40 फीट चौड़ा नेविगेशन लॉक बनाया जाना था। वुलर झील, जो एशिया की सबसे बड़ी ताजे पानी की झीलों में से एक है, इस प्रोजेक्ट का केंद्रबिंदु है।

इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य झेलम नदी में पानी की कमी के दौरान भी नौवहन सुनिश्चित करना है। इसके लिए वुलर झील में करीब 3 लाख एकड़-फीट पानी जमा करके नदी की गहराई को कम से कम 4.5 फीट बनाए रखा जाएगा। इससे श्रीनगर और बारामूला के बीच नावों की आवाजाही बढ़ेगी, जो व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा। साथ ही, यह प्रोजेक्ट सिंचाई और बिजली उत्पादन में भी सहायक होगा।

हालांकि, पाकिस्तान के विरोध के कारण यह प्रोजेक्ट 1985 में रोक दिया गया। 1986 में पाकिस्तान ने इस मुद्दे को सिंधु जल आयोग के सामने उठाया, और 1987 में यह पूरी तरह ठप हो गया। 2010 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने इसे पुनर्जनन की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2012 में आतंकवादियों ने प्रोजेक्ट के बांध पर ग्रेनेड हमला किया, और 2016 में तत्कालीन मंत्री ताज मोहिद्दीन ने दावा किया कि 2008-2014 के बीच 80% काम पूरा हो चुका था, लेकिन बाद की सरकारों ने इसे छोड़ दिया।

भारत को कैसे होगा फायदा?

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद है। सिंधु जल संधि के तहत भारत को रावी, ब्यास और सतलुज जैसी पूर्वी नदियों पर पूर्ण अधिकार है, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का अधिकांश पानी पाकिस्तान को जाता है। हालांकि, भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का गैर-उपभोगी उपयोग, जैसे नौवहन, बिजली उत्पादन और सीमित जल भंडारण की छूट है। तुलबुल प्रोजेक्ट इसी छूट के दायरे में आता है।

  • नौवहन में वृद्धि: झेलम नदी में नौवहन बढ़ने से कश्मीर में व्यापार और कनेक्टिविटी मजबूत होगी, जो ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

  • आर्थिक विकास: स्थानीय बाजारों को बढ़ावा, रोजगार सृजन और बेहतर कनेक्टिविटी से कश्मीर और भारत की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।

  • जल प्रबंधन: पानी की बर्बादी कम होगी और सूखे मौसम में स्थानीय जरूरतें पूरी हो सकेंगी।

  • राष्ट्रीय जलमार्ग योजना: यह प्रोजेक्ट केंद्र सरकार की जलमार्ग विकास योजना को बढ़ावा देगा, जिससे सड़क परिवहन पर निर्भरता कम होगी और माल ढुलाई अधिक प्रभावी होगी।

पाकिस्तान को क्यों है आपत्ति?

पाकिस्तान का मानना है कि तुलबुल प्रोजेक्ट से भारत को 3 लाख एकड़-फीट पानी जमा करने की क्षमता मिलेगी, जिससे वह झेलम नदी के पानी को नियंत्रित कर सकता है। इससे पाकिस्तान में खेती के लिए पानी की कमी हो सकती है, खासकर पंजाब क्षेत्र में, जो इन नदियों पर बहुत निर्भर है। पाकिस्तान इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन मानता है, जबकि भारत का कहना है कि यह प्रोजेक्ट संधि के नियमों के अनुरूप है।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषि, इन नदियों के पानी पर निर्भर है। यदि भारत पानी की आपूर्ति को नियंत्रित करता है, तो पाकिस्तान को आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। यही कारण है कि पाकिस्तान इस प्रोजेक्ट को ‘जल युद्ध’ की तरह देखता है।

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