सतारा: लोकसभा उपचुनाव : बिहार में 'प्रिंस' जीते, महाराष्ट्र में 'छत्रपति' हारे

सतारा - लोकसभा उपचुनाव : बिहार में 'प्रिंस' जीते, महाराष्ट्र में 'छत्रपति' हारे
| Updated on: 24-Oct-2019 07:10 PM IST
पॉलिटिकल डेस्क . नई दिल्ली | देश में दो जगह हुए लोकसभा के उप चुनावों में बीजेपी की उम्मीद महाराष्ट्र में टूट गई, जबकि बिहार में उसे सहानुभूति लहर का फायदा मिला है। जी हां! महाराष्ट्र की सतारा सीट पर एनसीपी ने कब्जा कायम रखा है और बीजेपी के पहली बार उतरे प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि इन दोनों ही सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दल नहीं जीते हैं।
बिहार की समस्तीपुर सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी के प्रिंस पासवान विजयी हुए हैं। अपने पिता रामचन्द्र पासवान के निधन के बाद उन्हें सहानुभूति लहर में एनडीए गठबंधन के तहत इस सीट पर उतारा गया था, जिसका उन्हें लाभ मिला है। परन्तु महाराष्ट्र से कहानी चौंकाने वाली आई है। महाराष्ट्र की सतारा सीट पर लोकसभा का चुनाव सिर्फ इसलिए हुआ कि छत्रपति शिवाजी के वंशज और तीन बार से लगातार सांसद शाह उदयनराजे भोंसले दस बजकर दस मिनट वाली घड़ी वाले निशान से उकता गए और उन्होंने कमल का दामन थामा। 5 माह पहले ही तो जीते थे छत्रपति उदयनराजे! परन्तु राजाओं के राजनीतिक अंदाज और सिद्धांत जुदा होते हैं। उन्हें बीजेपी से प्रेम हो गया और राजाओं का प्रेम भी इतिहास में खासा प्रसिद्ध है। कई साम्राज्यों के खो जाने की कहानी इस कमबख्त प्रेम में निहीत हैं।
भाजपा से जुड़ने के बाद उदयन राजे ने कहा था कि छत्रपति महाराज के जो विचार थे उसे भारतीय जनता पार्टी, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि देश को अखंड रखने के लिए मोदी जी ने कश्मीर में धारा 370 को हटाने का काम किया है। इसलिए वह भाजपा में शामिल हुए। 
तमाम देश दुनिया की तरह छत्रपति उदयनराजे को भी लगा कि मोदी है तो मुमकिन है। परन्तु वे यह भूल गए कि जिस सीट से वे लड़ रहे हैं वह नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गढ़ है और जबसे पार्टी बनी है तब से सतारा टीम शरद पवार का है। मोदी का जादू यहां 2014 व मई 19 में भी नहीं चला। मई 2019 में ही तो प्रचण्ड मोदी लहर में भी सवा लाख वोटों से एनसीपी की सीट से उदयनराजे जीते थे। परन्तु उनके कमल निशान से सांसद बनने की चाह ने इस सीट पर उप चुनाव का खर्चा और मशक्कत चुनाव आयोग से करवाई। जनता ने उदयनराजे और बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए देश में लोकतांत्रिक शासन होने की याद ताजा की। 

भूलना नहीं चाहिए कि 2014 में भले देश में अबकी बार मोदी सरकार का नारा था, लेकिन उदयनराजे एनसीपी की टिकट पर चुनाव लड़े और तीन लाख 66 हजार वोटों से जीतकर दूसरी बार संसद पहुंचे थे। 2009 में पहली बार उदयनराजे तीन लाख वोटों से जीतकर सांसद बने थे। इस जीत ने महाराष्ट्र में मराठा छत्रप शरद पवार की साख को और मजबूत ही किया है।

चुनावों के इतिहास में झांके सतारा सीट बीजेपी की आंख की सदा ही किरकिरी रही है। वजह यह है कि यहां हर बार उसकी सहयोगी शिवसेना का प्रत्याशी खड़ा होता है और हारता है। हालांकि 1996 में शिवसेना का प्रत्याशी इस सीट से जीता था। यह वह दौर था जब नारा चला था अटल अडवाणी कमल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान! परन्तु उस चुनाव में शिवसेना की जीत की वजह यह नारा नहीं, बल्कि यही छत्रपति उदयनराजे रहे हैं जो उस वक्त निर्दलीय खड़े हुए थे और करीब सवा लाख वोट खींच ले गए और शिवसेना यह सीट 12 हजार वोटों से जीत पाई थी। 

बीजेपी ने सिर्फ पांच माह पूर्व 2019 में सांसद बने उदयनराजे को एनसीपी से इस्तीफा दिलवाकर पार्टी जॉइन करवाई। पहली बार अपने सिंबल पर यहां प्रत्याशी के तौर पर छत्रपति शिवाजी के वंशज को खड़ा किया।

यहां 17 अक्टूबर को उदयनराजे के पक्ष में रैली को सम्बोधित करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मतदाताओं से आग्रह किया था कि वे आज से पहले सभी रिकार्ड तोड़ते हुए बीजेपी को जिताने का आह्वान किया था। एनसीपी और कांग्रेस को अंतरविरोधों में उलझा गठबंधन बताते हुए राष्ट्र रक्षा के नाम पर पीएम ने बीजेपी के लिए वोट मांगे थे। इन सबके बावजूद एनसीपी के छत्रप शरद पवार की रणनीति ने इस सीट को अपने हाथ से निकलने नहीं दिया। यहां उदयनराजे को शिकस्त देने वाले 78 वर्षीय श्रीनिवास पाटिल हैं। वह पूर्व आईएएस और लोकसभा सदस्य हैं। 

13वीं व 14वीं लोकसभा में वे महाराष्ट्र की कराद सीट से सदस्य के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। यही कराद सीट 2009 में सांगली और सतारा में बंट गई। वे सिक्किम के राज्यपाल भी रह चुके हैं। अब देखने वाली बात है कि तीन बार सांसद रहे उदयनराजे की राजनीतिक नैय्या को बीजेपी क्या सहारा देती है?

दलबदलुओं पर पवार का निशाना 

एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा कि जिन लोगों ने पार्टी का साथ दिया वह उन्हें धन्यवाद देते हैं और वह इस जनादेश को स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि वे शिव सेना के साथ नहीं जाएंगे और एनसीपी, कांग्रेस और दूसरे सहयोगी मिलकर आगे की रणनीति तय करेंगे। शरद पवार ने कहा कि सत्ता आती है और जाती है लेकिन प्रतिबद्धता जरूरी होती है। उन्होंने कहा कि एक और जरूरी बात कि जो हमें छोड़कर गए, उन्हें स्वीकार नहीं किया गया है। दलबदलुओं पर निशाना साधते हुए शरद पवार ने कहा,  जिन लोगों ने हमें छोड़ा जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। दल बदलना उनके पक्ष में नहीं रहा जिन्होंने हमें छोड़ा। एनसीपी चीफ ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस-एनसीपी ने साथ मिलकर काम किया। उन्होंने आगे कहा, 'यह जो माहौल पैदा किया गया था कि 220 से आगे जाएंगे, उसे जनता ने खारिज किया है।
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