मुंबई: न सीएम, न 50-50: बीजेपी से अलग खेलकर जीरो पर पवेलियन लौटी शिवसेना

मुंबई - न सीएम, न 50-50: बीजेपी से अलग खेलकर जीरो पर पवेलियन लौटी शिवसेना
| Updated on: 23-Nov-2019 11:07 AM IST
मुंबई | राजनीति में सब कुछ मुमकिन है। कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। कौन कब किसके साथ आ जाए, कहा नहीं जा सकता। शनिवार सुबह कुछ ऐसा ही देखने को मिला। 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए गए। बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीट मिलीं। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की जरूरत होती है। बीजेपी और शिवसेना के पास फिर से सरकार बनाने लायक आंकड़े थे।

लेकिन शिवसेना ने बीजेपी के सामने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद बांटने की शर्त रख दी। बीजेपी तैयार नहीं हुई और शिवसेना दूसरी पार्टियों के साथ सरकार बनाने के विकल्प तलाशने में जुट गई। हालांकि, शुरुआत में एनसीपी और कांग्रेस की ओर से यही कहा गया कि शिवसेना और बीजेपी ही मिलकर सरकार बनाएं क्योंकि उनके पास आंकड़े हैं। मगर दोनों पार्टियां जिद पर अड़ी रहीं।

दिन बीतते गए। शिवसेना के बीजेपी पर प्रहार तेज होते गए। सामना में संपादकीय में शिवसेना ने 30 साल सहयोगी रही बीजेपी पर जमकर हमला बोला। फिर कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच सरकार गठन पर बातचीत शुरू हुई। कई दौर की बैठकें चलीं। कभी शरद पवार सोनिया गांधी से मिले। कभी उद्धव से। कभी तीनों पार्टियों के नेताओं ने समीकरणों पर बात की। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर किसी पार्टी ने सरकार गठन पर बयान नहीं दिया। लेकिन गठबंधन का फॉर्मूला, मंत्रियों की संख्या और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चर्चा होती रही।

इस बीच शुक्रवार को वर्ली में नेहरू सेंटर में राज्य में सरकार बनाने की कवायद तेज हुई। एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के बीच बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नाम की सहमति बनी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने खुद इसकी घोषणा की। लेकिन शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस ने फिर एक बार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। वहीं एनसीपी नेता अजित पवार डिप्टी सीएम बने।

जिसने यह खबर सुनी, उसे शुरुआत में यकीन नहीं हुआ और फिर हैरान होने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लेकिन सबसे बड़ा झटका शिवसेना को लगा। शिवसेना मुख्यमंत्री पद के ख्वाब देखकर राजनीति में अपना कद बढ़ाने पर विचार कर रही थी। लिहाजा पार्टी ने बीजेपी से अलग होने का फैसला किया और अपने हिंदुत्व के एजेंडे को भी दरकिनार कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने पर विचार किया। लेकिन अचानक बाजी पलट गई और शिवसेना खाली हाथ रह गई। ऐसे में न तो शिवसेना को मुख्यमंत्री पद मिला, न 50-50 फॉर्मूला काम आया और बीजेपी से अलग होकर वह जीरो पर आउट होकर पवेलियन लौट गई। 

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।