Jagdeep Dhankhar: गिरेगा अविश्वास प्रस्ताव फिर विपक्ष ने धनखड़ के खिलाफ ऐसा क्यों किया?

Jagdeep Dhankhar - गिरेगा अविश्वास प्रस्ताव फिर विपक्ष ने धनखड़ के खिलाफ ऐसा क्यों किया?
| Updated on: 10-Dec-2024 09:00 PM IST
Jagdeep Dhankhar: राज्यसभा में पहली बार विपक्ष ने सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। यह कदम जगदीप धनखड़ के प्रति विपक्षी दलों की असहमति और नाराजगी को उजागर करता है। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम ने देश के राजनीतिक और संवैधानिक विमर्श में एक नई बहस को जन्म दिया है।

अविश्वास प्रस्ताव की संवैधानिक प्रक्रिया

राज्यसभा के सभापति, जो उपराष्ट्रपति भी होते हैं, को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67(a) के तहत संचालित होती है। इस प्रस्ताव को लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। प्रस्ताव को राज्यसभा के महासचिव को सौंपा जाता है, जिसके बाद इसे सदन में बहस और मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

राज्यसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे लोकसभा में भेजा जाता है, जहां समान प्रक्रिया अपनाई जाती है। दोनों सदनों में साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर सभापति को पद छोड़ना पड़ता है।

राज्यसभा और लोकसभा का राजनीतिक गणित

राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार, यह स्पष्ट है कि जगदीप धनखड़ को पद से हटाना विपक्ष के लिए लगभग असंभव है।

  • राज्यसभा में एनडीए का प्रभुत्व: 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा 123 है। एनडीए के पास वर्तमान में 125 सदस्यों का समर्थन है। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस जैसे दल एनडीए के पक्ष में माने जाते हैं।
  • लोकसभा का परिदृश्य: 543 सदस्यीय लोकसभा में एनडीए के पास 293 सांसद हैं, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन 249 पर सिमटता है। बहुमत के लिए आवश्यक 272 सांसदों का समर्थन विपक्ष के लिए दूर की कौड़ी है।

अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य

इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य धनखड़ को पद से हटाना नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रतीकात्मक संदेश देना है।

  1. सदन में बहस का मंच: संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष को बड़े मुद्दों पर चर्चा करने का मौका नहीं मिल पाया है। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान विपक्ष अपनी बात खुलकर रख सकता है। धनखड़ के खिलाफ बहस के दौरान वे अडानी जैसे विवादित मुद्दों को उजागर कर सकते हैं, जो अब तक चर्चा से बाहर थे।

  2. प्रतीकात्मक विरोध: यह प्रस्ताव राज्यसभा के इतिहास में पहला है, जिससे विपक्ष का विरोध रिकॉर्ड में दर्ज होगा। विपक्ष लंबे समय से धनखड़ पर सत्ता पक्ष के पक्षपाती रवैये का आरोप लगाता रहा है। इस कदम से विपक्ष अपनी असहमति को ऐतिहासिक रूप से चिह्नित कर रहा है।

धनखड़ के प्रति विपक्ष का असंतोष

जगदीप धनखड़ ने सभापति का पद संभालने के बाद निष्पक्षता के वादे किए थे। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि उन्होंने विपक्षी नेताओं को पर्याप्त बोलने का मौका नहीं दिया। मल्लिकार्जुन खरगे जैसे वरिष्ठ नेता भी उनके रवैये से असंतुष्ट हैं।

भविष्य की राजनीति पर प्रभाव

हालांकि विपक्ष का यह कदम राजनीतिक गणित में सफल नहीं दिखता, लेकिन यह संसद के दोनों सदनों में सत्ता पक्ष को चुनौती देने का एक अहम प्रयास है।

यह कदम संसद के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और सत्ता की जवाबदेही की मांग को मजबूत करता है। अविश्वास प्रस्ताव भले ही सफल न हो, लेकिन यह विपक्ष की रणनीति और शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक बन सकता है।

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