राजधानी में बड़ा बदलाव: दिल्ली में अब तीनों नगर निगम एक होंगे, मोदी मंत्रिमंडल का फैसला
राजधानी में बड़ा बदलाव - दिल्ली में अब तीनों नगर निगम एक होंगे, मोदी मंत्रिमंडल का फैसला
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Updated on: 22-Mar-2022 03:15 PM IST
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की तीनों नगर निगमों को एक करने का फैसला किया है। यह राज्य में सत्तारूढ़ आप सरकार के लिए बड़ा झटका है। मंगलवार को मोदी मंत्रिमंडल ने दिल्ली के तीनों निगमों को एक करने के फैसले पर मुहर लगा दी है। अब दिल्ली में तीन की जगह सिर्फ एक मेयर होगा। इसके अलावा नॉर्थ, साउथ और ईस्ट नगर निगम के स्थान पर सिर्फ एक नगर निगम होगा। डीएमसी एक्ट की धारा में बदलाव होगातीनों नगर निगमों के विलय के बाद अस्तित्व में आने वाले नगर निगम से दिल्ली की आप सरकार को पूरी तरह दूर रखने की संभावना जताई जा रही है। नगर निगम अधिनियम (डीएमसी एक्ट) की 17 धाराओं का अधिकार दिल्ली सरकार से छीनकर केंद्र सरकार अपने अधीन ले सकती है। इन धाराओं के तहत कार्रवाई करने का पहले केंद्र सरकार के पास ही अधिकार था, मगर अक्तूबर 2009 में केंद्र ने इन धाराओं के तहत कार्रवाई करने का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया था। इसके बाद से नगर निगम के कामकाज में दिल्ली सरकार का हस्तक्षेप बढ़ा है।भाजपा नेताओं ने केंद्र से आग्रह किया थासूत्रों के अनुसार दिल्ली प्रदेश भाजपा के नेताओं ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह नगर निगम को पूरी तरह दिल्ली सरकार से मुक्त कर दे। बशर्ते, वह तीनों नगर निगम रखे या फिर तीनों निगमों का विलय करके एक निगम बनाए, क्योंकि दिल्ली सरकार को डीएमसी एक्ट की कुछ धाराओं के तहत कार्रवाई करने का अधिकार मिला हुआ है। इस कारण वह निरंतर एकीकृत नगर निगम की तरह तीनों नगर निगमों को परेशान कर रही है। आप सरकार लटकाकर रखती है फाइलेंभाजपा नेताओं का कहना है कि उक्त धाराओं से जुड़े कार्यों की फाइल दिल्ली सरकार लटकाकर रखती है, जिससे निगम का कामकाज प्रभावित होता है। भाजपा नेताओं ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह पहले की तरह नगर निगम को पूरी तरह अपने अधीन ले ले। शीला दीक्षित सरकार ने भेजा था केंद्र को प्रस्तावदिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने वर्ष 2009 में नगर निगम को पूरी तरह अपने कब्जे में लेने के प्रयास के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय से डीएमसी एक्ट की 23 धाराओं का अधिकार लेने के संबंध में केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजा था, मगर केंद्र ने उसे 17 धाराओं का ही अधिकार दिया था और उनमें से 12 धाराओं का अधिकार उसे पूरी तरह दिया गया, जबकि उसे पांच धाराओं के तहत केंद्र सरकार को सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था।
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