Lifestyle: गर्भावस्था में शुगर बढ़ना कितना खतरनाक? जानें कंट्रोल करने के आसान उपाय
Lifestyle - गर्भावस्था में शुगर बढ़ना कितना खतरनाक? जानें कंट्रोल करने के आसान उपाय
गर्भावस्था का समय हर महिला के लिए एक अनूठा और चुनौतीपूर्ण अनुभव होता है और इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्तर पर कई बदलाव आते हैं, जिनमें हार्मोनल असंतुलन और शुगर लेवल का बढ़ना प्रमुख है। हाल ही में, जानी-मानी कॉमेडियन भारती सिंह ने अपने व्लॉग के माध्यम से इस विषय पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि उनकी प्रेग्नेंसी के दौरान शुगर का स्तर बढ़ने लगा था, जिससे उन्हें अपने होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंता सताने लगी थी। भारती ने यह भी उल्लेख किया कि वह मीठा नहीं खा रही थीं, केवल सुबह एक कप चाय पीती थीं, फिर भी उनका फास्टिंग शुगर बढ़ा हुआ था। उनका यह अनुभव कई गर्भवती महिलाओं की स्थिति को दर्शाता। है और इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या पर ध्यान आकर्षित करता है।
**गर्भावस्था में क्यों बढ़ता है शुगर लेवल?
गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाओं को 'गेस्टेशनल डायबिटीज' नामक स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह एक प्रकार की डायबिटीज है जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होती है और आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो जाती है और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जो शरीर में इंसुलिन के उपयोग को प्रभावित करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक हार्मोनल बदलाव है। प्लेसेंटा, जो बढ़ते भ्रूण को पोषण प्रदान करता है, कई हार्मोन जारी करता है और ये हार्मोन कभी-कभी शरीर की कोशिकाओं को इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील बना देते हैं, जिससे इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।
जोखिम कारक और प्रभाव
गेस्टेशनल डायबिटीज के अन्य जोखिम कारकों में परिवार में डायबिटीज का इतिहास शामिल है, जो जेनेटिक कारकों की भूमिका को दर्शाता है और यदि किसी महिला के परिवार में डायबिटीज का इतिहास रहा है, तो उसे गेस्टेशनल डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा, गर्भावस्था से पहले या गर्भावस्था के दौरान अधिक वजन या मोटापा भी इस स्थिति के जोखिम को बढ़ाता है। शरीर में अतिरिक्त वसा कोशिकाएं इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकती हैं। उम्र भी एक महत्वपूर्ण कारक है; 30 वर्ष से अधिक उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में गेस्टेशनल डायबिटीज का जोखिम बढ़ जाता है। इन कारकों को समझना गर्भवती महिलाओं और उनके डॉक्टरों के। लिए महत्वपूर्ण है ताकि वे समय पर उचित कदम उठा सकें।शुगर कंट्रोल करने के आसान उपाय
गर्भावस्था में शुगर को नियंत्रित रखना मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए कुछ प्रभावी उपाय अपनाए जा सकते हैं। सबसे पहले, संतुलित डाइट का पालन करना जरूरी है। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जैसे ओट्स, साबुत अनाज, और दालें और ये खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं। मीठे और प्रोसेस्ड फूड्स से पूरी तरह परहेज करना चाहिए, क्योंकि ये रक्त शर्करा में तेजी से वृद्धि करते हैं। दूसरा उपाय नियमित व्यायाम है और डॉक्टर की सलाह से हल्की वॉक या योग जैसी गतिविधियां शरीर को सक्रिय रखने और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करने में मदद कर सकती हैं।नियमित निगरानी और चिकित्सा सलाह
शुगर मॉनिटरिंग भी एक महत्वपूर्ण कदम है और फास्टिंग और पोस्ट मील शुगर लेवल की नियमित जांच से रक्त शर्करा के स्तर पर नजर रखी जा सकती है और किसी भी असामान्य वृद्धि का पता लगाया जा सकता है। यह डॉक्टरों को उपचार योजना को समायोजित करने में मदद करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समय-समय पर डॉक्टर से चेकअप कराएं और उनकी सलाह का पालन करें। यदि आवश्यक हो, तो डॉक्टर इंसुलिन या अन्य दवाएं लिख सकते हैं जो गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित हों। इन उपायों का पालन करके, गर्भवती महिलाएं अपने शुगर लेवल को प्रभावी। ढंग से प्रबंधित कर सकती हैं और स्वस्थ गर्भावस्था सुनिश्चित कर सकती हैं।
यदि गर्भावस्था के दौरान शुगर लेवल को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो इसका बच्चे के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। एक प्रमुख जोखिम यह है कि बच्चे का जन्म के समय वजन सामान्य से अधिक हो सकता है, जिसे मैक्रोसोमिया कहा जाता है। ऐसे बच्चे को जन्म के दौरान जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा भी बढ़ जाता है, जिससे बच्चे के फेफड़े और अन्य अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं। जन्म के बाद, बच्चे को शुगर ड्रॉप होने यानी हाइपोग्लाइसीमिया का अनुभव हो सकता है, क्योंकि वह मां के उच्च शर्करा स्तर के आदी हो जाते हैं और जन्म के बाद अचानक शर्करा की आपूर्ति कम हो जाती है और लंबे समय में, ऐसे बच्चों को भविष्य में डायबिटीज और मोटापे का जोखिम भी अधिक होता है। भारती सिंह की हिम्मत और जागरूकता
भारती सिंह ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करके कई गर्भवती महिलाओं को जागरूक किया है। उनका यह कदम सराहनीय है क्योंकि यह प्रेग्नेंसी में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर खुलकर बात करने के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाता है। अक्सर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को साझा करने में झिझकती हैं, लेकिन भारती जैसे सार्वजनिक व्यक्तित्वों का अनुभव साझा करना दूसरों को भी अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और चिकित्सा सहायता लेने के लिए प्रेरित करता है। गर्भावस्था के वक्त महिलाओं को अपनी सेहत का खास ख्याल रखने की जरूरत है, ताकि उन्हें और उनके होने वाले बच्चे को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे और वे एक स्वस्थ और सुरक्षित गर्भावस्था का अनुभव कर सकें। जागरूकता और समय पर हस्तक्षेप से गेस्टेशनल डायबिटीज के जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।