Rajendra Rathore: राजस्थान में पंचायत परिसीमन पर बवाल: राजेंद्र राठौड़ पर लगे गंभीर आरोप, ग्रामीणों का भारी रोष

Rajendra Rathore - राजस्थान में पंचायत परिसीमन पर बवाल: राजेंद्र राठौड़ पर लगे गंभीर आरोप, ग्रामीणों का भारी रोष
| Updated on: 23-Nov-2025 07:49 PM IST
पिछली दिनों राजस्थान सरकार द्वारा किए गए पंचायतों के परिसीमन ने राज्य के ग्रामीण अंचलों में एक नई बहस और व्यापक असंतोष को जन्म दिया है और इस प्रक्रिया को लेकर कई स्थानों पर लोगों में भारी रोष देखने को मिल रहा है, जो सरकार के इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं। ग्रामीण समुदाय का मानना है कि यह प्रक्रिया उनकी भागीदारी और स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में। रखे बिना की गई है, जिससे उन्हें कई व्यवहारिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

परिसीमन से उपजा व्यापक असंतोष

राजस्थान में पंचायतों के पुनर्गठन का यह निर्णय, जो स्थानीय प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लिया गया था, अब जनता के बीच गहरे असंतोष का कारण बन गया है और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग महसूस कर रहे हैं कि उनके जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले इस महत्वपूर्ण फैसले में उनकी आवाज को अनसुना कर दिया गया है। यह असंतोष केवल एक या दो गांवों तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में। इसकी गूंज सुनाई दे रही है, जहां ग्रामीण अपनी समस्याओं को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं।

चूरू में ग्रामीणों का बड़ा विरोध प्रदर्शन

इसी कड़ी में, रविवार को चूरू जिले में पंचायत परिसीमन को लेकर मचे विवाद के बीच मेहरासर चाचेरा गांव के ग्रामीणों ने एक बड़ा और संगठित विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए, जिन्होंने सरकार के फैसले के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। ग्रामीणों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि इस अचानक हुए पुनर्गठन से उनके दैनिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह प्रदर्शन इस बात का स्पष्ट संकेत था कि ग्रामीण समुदाय इस निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और वे चाहते हैं कि सरकार उनके विचारों को गंभीरता से ले।

बिना राय लिए पुनर्गठन का आरोप

ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि सरकार द्वारा बिना उनकी राय लिए, बिना। किसी पूर्व सूचना या परामर्श के अचानक पंचायत का पुनर्गठन कर दिया गया है। यह आरोप स्थानीय स्वशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है, जहां जनता की भागीदारी को महत्वपूर्ण माना जाता है और ग्रामीणों का मानना है कि इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय स्थानीय लोगों की भावनाओं और जरूरतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी, जो इस मामले में नहीं हुआ। इस तरह की एकतरफा कार्रवाई से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता का विश्वास कमजोर होता है और उन्हें लगता है कि उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।

बढ़ी दूरी और संसाधनों की बर्बादी

प्रदर्शनकारी ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि नए परिसीमन के कारण कई गांवों की पंचायत मुख्यालय से दूरी काफी बढ़ गई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि लोगों को अब छोटे-छोटे प्रशासनिक कार्यों, जैसे प्रमाण पत्र बनवाने, शिकायत दर्ज कराने या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी। इससे न केवल उनका कीमती समय बर्बाद होगा, बल्कि यात्रा में लगने वाले संसाधनों (जैसे ईंधन और परिवहन लागत) की भी बर्बादी होगी, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ डालेगा। बुजुर्गों, महिलाओं और दैनिक मजदूरों के लिए यह बढ़ी हुई दूरी और। भी अधिक चुनौतीपूर्ण साबित होगी, जिससे उनकी पहुंच और भागीदारी प्रभावित होगी।

राजेंद्र राठौड़ पर लगे गंभीर आरोप

इस पूरे विवाद में पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ पर भी गंभीर आरोप लगे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि राठौड़ ने अपने निजी हितों को साधने के लिए, विशेषकर अपने पैतृक गांव हरपालसर को पंचायत बनाने के लिए, कई अन्य गांवों की पंचायतों में तोड़-मरोड़ की है और यह आरोप राजनीतिक हस्तक्षेप और सत्ता के दुरुपयोग की ओर इशारा करता है, जहां जनहित की बजाय व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी गई। इन आरोपों ने इस पूरे परिसीमन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

राजनीतिक हस्तक्षेप और जनविश्वास का हनन

राजेंद्र राठौड़ पर लगे ये आरोप इस बात को दर्शाते हैं कि। कैसे राजनीतिक हस्तियां परिसीमन जैसी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल लोकतांत्रिक। प्रक्रिया का उल्लंघन होगा, बल्कि स्थानीय जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाएगा। ग्रामीणों का मानना है कि इस तरह की तोड़-मरोड़ से पंचायतों की मूल भावना और उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा, जो स्थानीय स्तर पर सुशासन सुनिश्चित करना है। इस प्रकार का हस्तक्षेप स्थानीय निकायों की स्वायत्तता और प्रभावशीलता को कमजोर करता है।

आगे की राह और ग्रामीणों की मांग

मेहरासर चाचेरा और आसपास के गांवों के ग्रामीण अब सरकार से इस परिसीमन पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाए और एक ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाए जिसमें स्थानीय लोगों की राय और सुविधा को सर्वोपरि रखा जाए। यह विरोध प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि यदि सरकार ने इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में यह असंतोष और भी व्यापक रूप ले सकता है। ग्रामीण समुदाय अपनी मांगों को लेकर एकजुट है और न्याय की उम्मीद कर रहा है।

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