Bangladesh Violence: बांग्लादेश में हिंदुओं पर जुल्म: RSS प्रमुख मोहन भागवत का बयान, एकजुटता और भारत सरकार से मदद की अपील

Bangladesh Violence - बांग्लादेश में हिंदुओं पर जुल्म: RSS प्रमुख मोहन भागवत का बयान, एकजुटता और भारत सरकार से मदद की अपील
| Updated on: 21-Dec-2025 05:36 PM IST
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे लगातार जुल्म और हिंसा पर अपना पहला बयान जारी किया है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने बांग्लादेश में जारी गंभीर स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की और यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में बीते कई दिनों से भीषण हिंसा जारी है, जिसमें हिंदू समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है। हाल ही में एक दर्दनाक घटना में एक हिंदू युवक को बीच सड़क पर जिंदा जला दिया गया था, जिसने इस मुद्दे की गंभीरता को और बढ़ा दिया है।

कठिन परिस्थितियों की स्वीकारोक्ति

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में बांग्लादेश में हिंदुओं के सामने मौजूद कठिन परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि "वे (हिंदू) वहां अल्पसंख्यक हैं और स्थिति काफी कठिन है। " यह स्वीकारोक्ति बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की भेद्यता और उनके खिलाफ हो रही हिंसा की भयावहता को रेखांकित करती है। संघ प्रमुख के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा और अस्तित्व पर मंडरा। रहे खतरे को गंभीरता से ले रहे हैं, और इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं।

बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए एकजुटता का आह्वान

संघ प्रमुख ने बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं को अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा, "हालांकि यह मुश्किल है, लेकिन अधिकतम सुरक्षा के लिए वहां के हिंदुओं को एकजुट रहना होगा और " यह आह्वान आंतरिक शक्ति और सामूहिक प्रतिरोध की भावना को दर्शाता है। भागवत का मानना है कि विपरीत परिस्थितियों में भी, यदि समुदाय एकजुट रहता है, तो वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने में अधिक सक्षम होंगे। यह एकजुटता ही उन्हें वर्तमान संकट से निपटने में मदद कर सकती है।

वैश्विक हिंदू समुदाय और भारत से मदद की अपील

मोहन भागवत ने केवल बांग्लादेशी हिंदुओं को ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के हिंदुओं से भी उनकी मदद करने का आग्रह किया और उन्होंने कहा, "और दुनिया भर के हिंदुओं को उनकी मदद करनी चाहिए। " इसके साथ ही, उन्होंने भारत की विशेष भूमिका पर भी जोर दिया और उन्होंने कहा, "हमें अपनी सीमा के भीतर, जितना हो सके उनकी मदद करनी चाहिए। हमें वह सब कुछ करना होगा जो हम कर सकते हैं, और हम कर रहे हैं। " यह बयान वैश्विक हिंदू समुदाय से एकजुटता और भारत से सक्रिय समर्थन की अपेक्षा। को दर्शाता है, जिसमें कुछ प्रयास सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं भी हो सकते हैं।

भारत सरकार से कार्रवाई की अपेक्षा

संघ प्रमुख ने भारत सरकार से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि "हिंदुओं के लिए एकमात्र देश भारत है। " इस कथन के साथ, उन्होंने भारत सरकार पर एक नैतिक और सुरक्षात्मक जिम्मेदारी डाली। उन्होंने कहा, "भारत सरकार को इस पर संज्ञान लेना होगा। उन्हें कुछ करना होगा। " भागवत ने यह भी स्वीकार किया कि सरकार "हो सकता है कि वे पहले से ही कुछ कर रहे हों। कुछ चीज़ों का खुलासा हो चुका है, कुछ का नहीं और लेकिन कुछ तो करना ही होगा। " यह बयान भारत सरकार से इस गंभीर स्थिति पर तत्काल और प्रभावी कार्रवाई की मांग को दर्शाता है।

बंगाल में हिंदू समाज की एकजुटता का प्रभाव

अपने संबोधन के दौरान, मोहन भागवत ने बंगाल में हिंदू समाज की एकजुटता के संभावित प्रभाव पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "अगर हिंदू समाज एकजुट हो जाए तो बंगाल में हालात बदलने में देर नहीं लगेगी और " कोलकाता में दिए गए इस बयान का महत्व यह है कि यह न केवल बांग्लादेश में बल्कि व्यापक बंगाली भाषी क्षेत्र में हिंदू समुदाय की सामूहिक शक्ति और एकता की क्षमता को दर्शाता है। यह एक संकेत है कि एकजुटता से सामाजिक और क्षेत्रीय स्तर पर बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।

सामाजिक परिवर्तन पर संघ का ध्यान

अंत में, मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक उद्देश्य को स्पष्ट किया। जब उनसे राजनीतिक परिवर्तन पर उनके विचारों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "अब जहां तक ​​राजनीतिक परिवर्तन पर। मेरे विचार की बात है तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि राजनीतिक परिवर्तन के बारे में सोचना मेरा काम नहीं है। हम संघ के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं। " यह स्पष्टीकरण संघ के सामाजिक सुधार और सामुदायिक सशक्तिकरण पर केंद्रित होने को दर्शाता है, बजाय इसके कि वह सीधे राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न हो, भले ही वह संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त कर रहा हो।

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