Coronavirus: रूस की कोरोना वैक्सीन Sputnik-V पर क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्यों दुनिया को नहीं हो रहा यकीन

Coronavirus - रूस की कोरोना वैक्सीन Sputnik-V पर क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्यों दुनिया को नहीं हो रहा यकीन
| Updated on: 12-Aug-2020 01:14 PM IST
Coronavirus: कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के करीब 9 महीने बाद दुनियाभर में पहली वैक्सीन आई है। रूस ने दावा किया है कि उसने कोरोना की वैक्सीन बना ली है, जिसका नाम स्पूतनिक-V रखा है और इसके इस्तेमाल को लेकर मंजूरी भी मिल गई है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वैक्सीन को लेकर मंगलवार को ऐलान किया। मगर रूस के इस दावे को दुनिया संदेह भरी निगाहों से देख रही है। क्योंकि इस वैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ है, और अब तक दूसरे फेज के परिणाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। इसलिए भी दुनियाभर में इस पर सवाल उठ रहे हैं। 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार (11 अगस्त) को घोषणा की कि उनके देश ने कोरोना वायरस के खिलाफ पहला टीका विकसित कर लिया है जो कोविड-19 से निपटने में 'बहुत प्रभावी' ढंग से काम करता है और 'एक स्थायी रोग प्रतिरोधक क्षमता' का निर्माण करता है। इसके साथ ही उन्होंने खुलासा किया कि उनकी बेटियों में से एक को यह टीका पहले ही दिया जा चुका है।

डब्लूएचओ से लेकर अमेरिका तक को संदेह

यह वैक्सीन गामालेया शोध संस्थान और रूस के रक्षा मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में तैयार हुई है। वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल पूरा हुए बिना आम नागरिकों पर इस्तेमाल की इसकी मंजूरी दे दी गई है, इस वजह से भी इसकी सुरक्षा और असर को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों का मानना है कि जिस तरह से वैक्सीन के ट्रायल की प्रक्रिया है, रूस उसके पूरी होने के पहले ही वैक्सीन की सटीकता का दावा कर रहा है जो गलत है। पिछले सप्ताह जहां डब्लूएचओ ने रूस की कोरोना वैक्सीन की जल्दबाजी को लेकर आगाह किया था, वहीं अमेरिका के शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञ एंथोनी फॉसी ने वैक्सीन को लेकर रूस और चीन दोनों के ऊपर सही प्रक्रिया का पालन करने पर संदेह जताया है।

कैसे काम करती है यह वैक्सीन

दरअसल, रूस का यह स्पुतनिक-5 टीका एक SARS-CoV-2 प्रकार के एडेनोवायरस जो एक सामान्य कोल्ड वायरस है, उसके डीएनए पर आधारित है। यह कोरोना वैक्सीन एक वायरल को छोटे-छोटे हिस्सों बांट देती है और इसके लिए छोटे वायरस का इस्तेमाल करती है। जिसके बाद यह इम्यूनिटी को बढ़ाता है। स्पुतनिक न्यूज से बात करते हुए गैमलेया नेशनल रिसर्च सेंटर के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने कहा कि वैक्सीन में कोरोना वायरस के कण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सकते क्योंकि इनकी संख्या नहीं बढ़ती है। 

सिर्फ पहले फेज के परिणाम ही सार्वजनिक

रूस ने अभी तक कोरोना वैक्सीन के फेज 1 के ही क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे सार्वजनिक किए हैं, जिसमें उसने दावा किया है कि वैक्सीन के ट्रायल का पहला चरण सफल रहा है। जुलाई के मध्य में रूस की टास न्यूज एजेंसी ने कहा था कि रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि ट्रायल के बाद किसी भी वॉलंटियर को किसी तरह के कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखे हैं। 

76 जवानों पर पहले फेज का ट्रायल

रूस ने वैक्सीन के पहले फेज में सेना के 76 जवानों पर यह टेस्ट किया था। इनमें से आधे लोगों को लीक्विड फॉर्म में वैक्सीन के डोज दिए गए और आधे लोगों को घुलनशील पाउडर के रूप में दिया गया।

इसलिए उठ रहे हैं सवाल

न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, वैक्सीन के सेकेंड फेज का ट्रायल 13 जुलाई को शुरू हुआ और 3 अगस्त को ही रूसी मीडिया ने खबर दी कि गामालेया शोध संस्थान ने वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल पूरा कर  लिया है। हाालंकि, इन रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि क्या केवल दूसरा चरण पूरा हुआ है या तीनों चरण पूरे किए हैं। दूसरे चरण में ही कुछ महीनों का समय लग जाता है। 

इसमें भी खास बात यह भी है कि रूस ने पहले संकेत दिए थे कि नियामक से अनुमति मिलने के बाद ही मानवीय परीक्षण का तीसरा चरण पूरा किया जाएगा। इस चरण में हजारों लोगों पर परीक्षण किया जाता है।

ये कंपनियां थीं रेस में आगे, मगर...

दरअसल, जिस तेजी से रूस ने वैक्सीन बनाया है, उसे लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं। कोरोना वैक्सीन बनाने की रेस में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना और फिजर जैसी कंपनियां आगे थीं, मगर रूस का अचानक से वैक्सीन बनाने का दावा सबको हैरान कर रहा है और संदेह भी पैदा कर रहा है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना वैक्सीन को जल्दी लॉन्च करने के चक्कर में रूसी सरकार लोगों की जिंदगी खतरे में डाल रही है।

 सितंबर से रूस बड़े पैमाने पर वैक्सीन का औद्योगिक उत्पादन शूरू कर देगा और अक्टूबर से यह आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी। अक्टूबर महीने से ही बड़े पैमाने पर टिकाकरण का काम शुरू होगा। 

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