Nobel Peace Prize: ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने से ह्वाइट हाउस 'लाल', फैसले को बताया राजनीति से प्रेरित

Nobel Peace Prize - ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने से ह्वाइट हाउस 'लाल', फैसले को बताया राजनीति से प्रेरित
| Updated on: 10-Oct-2025 06:03 PM IST
Nobel Peace Prize: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2025 के लिए नोबेल शांति। पुरस्कार नहीं मिलने से ह्वाइट हाउस ने कड़ी आपत्ति जताई है। राष्ट्रपति भवन ने शुक्रवार को इस फैसले को "पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित" बताया और नोबेल समिति की आलोचना की। ह्वाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने कहा, "एक बार फिर, नोबेल समिति ने। यह साबित कर दिया कि वे शांति से ज्यादा राजनीति को महत्व देती है। " इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस छेड़ दी है।

मारिया कोरिना मशादो को मिला सम्मान

ह्वाइट हाउस ने ट्रंप को नोबेल दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर काफी माहौल बनाने का प्रयास किया था, लेकिन। समिति ने वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मशादो को उनके लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए यह पुरस्कार देने का ऐलान किया। यह फैसला ट्रंप और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ा झटका है और मशादो को यह पुरस्कार ऐसे समय में मिला है, जब कई देशों में तानाशाही का बढ़ता प्रभाव देखा जा रहा है। यह पुरस्कार लोकतंत्र समर्थकों को उत्साहित करने वाला है।

नॉर्वे समिति का बयान

नॉर्वे के ओस्लो स्थित नोबेल समिति ने अपने बयान में कहा, "वेनेजुएला के लोगों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण व्यवस्था को बढ़ावा देने उनके निरंतर संघर्ष के लिए" मशादो को यह पुरस्कार दिया गया है। इस पुरस्कार के तहत उन्हें 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (लगभग 1 और 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर) प्रदान किए गए हैं। यह सम्मान वेनेजुएला में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने और तानाशाही के खिलाफ उनके अथक प्रयासों को मान्यता देता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद

इस बार का शांति नोबेल पुरस्कार मशादो को मिलने और ट्रंप के सपने टूटने के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना और विवाद दोनों का कारण बन गया है। जहां कई लोग मशादो के संघर्ष की सराहना कर रहे हैं, वहीं ह्वाइट हाउस समिति की। आलोचना कर रहा है कि नोबेल शांति पुरस्कार चयन प्रक्रिया राजनीतिक रूप से प्रेरित हो गई है। ह्वाइट हाउस के इस बयान को वैश्विक शक्तियों के खिलाफ एक संदेश के रूप में देखा जा सकता है, जो नोबेल समिति की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है।

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