Science: WMO की चेतावनी- अगले 5 साल में धरती 40% और गर्म हो सकती है... क्या इसे तबाही कहेंगे?
Science - WMO की चेतावनी- अगले 5 साल में धरती 40% और गर्म हो सकती है... क्या इसे तबाही कहेंगे?
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Updated on: 30-May-2021 06:47 AM IST
USA: वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगले पांच साल में धरती का तापमान 40 फीसदी बढ़ सकता है। इससे गर्मी के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट जाएंगे। साथ ही पेरिस पर्यावरण समझौते के तहत किए जा रहे कामों की धज्जियां उड़ जाएंगी। ये चेतावनी जारी की है विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने। इस संगठन के एक्सपर्ट्स की चेतावनी से भरी भविष्यवाणी ये भी कहती है कि 2025 सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड तोड़ देगा। इसके लिए यह संगठन 90 प्रतिशत का पुख्ता होने का दावा कर रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization - WMO) ने अगले पांच सालों में दुनियाभर में होने वाले मौसमी परिवर्तन की भविष्यवाणी की है। इसमें उन्होंने दावा किया है कि साल 2025 फिर से सबसे गर्म साल का रिकॉर्ड तोड़ सकता है। क्योंकि अगले पांच साल में धरती का तापमान 40 फीसदी तक बढ़ सकता है। इसके अलावा अटलांटिक महासागर में भयावह स्तर के हरिकेन (Hurricanes) आने की आंशका है। इस साल के लिए WMO की भविष्यवाणी ये है कि धरती के उत्तरी गोलार्ध पर मौजूद देशों का तापमान 0।8 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा। ये तापमान पिछले कुछ दशकों से ज्यादा है। अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम में चल रहा सूखा अभी लगातार इसी स्थिति में रहेगा। यानी धरती के उत्तरी गोलार्ध के देश जिसमें अधिकतर महाद्वीप आ जाते हैं, वो इस साल औसत से ज्यादा तापमान बर्दाश्त करेंगे।WMO ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अगले पांच सालों में से किसी एक साल का तापमान औद्योगिक काल की तुलना में 1।5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहेगा। इस मामले में पेरिस पर्यावरण समझोते के तह ग्लोबल वार्मिंग कम करने के सारे प्रयासों की धज्जियां उड़ सकती हैं। इस समय दुनिया औद्योगिक काल की तुलना में 1।2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म है। पिछले साल इसी संगठन ने 40 फीसदी के बजाय 20 फीसदी ज्यादा गर्म होने की भविष्यवाणी की थी। यूनाइटेड किंगडम के मौसम विज्ञानी लियो हर्मेन्सन ने कहा कि तापमान में दोगुनी वृद्धि का मतलब है टेक्नोलॉजी का बदलना। यानी ऐसी तकनीकी जो बदल तो रही है लेकिन उससे गर्मी भी बढ़ी रही है। हमने कभी ध्रुवीय इलाकों पर ध्यान ही नहीं दिया है। वहां की हालत दिन-प्रति-दिन खराब होती जा रही है। WMD की चेतावनी का मतलब है कि सभी देशों और उनकी सरकारों को पर्यावरण और धरती को बचाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के पर्यावरण वैज्ञानिक माइकल मान ने कहा कि ये बात तो सच है कि दुनिया पेरिस में हुए समझौते को पूरा नहीं कर पाएगी। समझौते में जो समय तय किया गया है ग्लोबल वार्मिंग को कम करने का, उससे पहले धरती और गर्म हो जाएगी। ये बात तो पक्का है कि अगले पांच साल में से कोई एक या दो साल ऐसा होगा जो औसत तापमान से 1।5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म होगा। बस हमें ये नहीं पता कि वो कौन सा साल होगा। माइकल मान ने कहा कि इसे रोका जा सकता है लेकिन तत्काल कई सख्त फैसले लेने होंगे।WMO के सेक्रेटरी जरनल प्रोफेसर पेटेरी टालस ने कहा कि ये सिर्फ आंकड़ें नहीं है। ये उससे कहीं ज्यादा है। लगातार बढ़ रहे तापमान की वजह से बर्फ पिघल रही है, समुद्री जलस्तर में इजाफा हो रहा है। ज्यादा हीटवेव्स देखने को मिल रही है। बेहद खराब मौसम दिख रहे हैं। इसकी वजह से दुनिया भर की आबादी खाने के लिए तरसेगी। खाना, सेहत, पर्यावरण और सतत विकास इन चारों पर इसका असर पड़ेगा। प्रो। पेटेरी टालस ने बताया कि WMO में शामिल 193 देशों में से सिर्फ आधे के पास ही आपदाओं की जानकारी देने वाली प्रणाली है। यानी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम। देशों के पर्यावरण संबंधी सेक्टर्स में भारी बदलाव लाना होगा। जैसे- सेहत, पानी, कृषि और सतत ऊर्जा। इसके साथ ही अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को बढ़ाना होगा ताकि लोग अत्यधिक खराब मौसम में खुद को और अपनी संपत्ति को बचा सकें। खास तौर से अफ्रीका और तटीय देशों को।ऐसा माना जा रहा है कि यूके में 11 से 13 जून को होने वाले G-7 लीडर्स समिट में पर्यावरण को लेकर गंभीर चर्चा होने वाली है। क्योंकि दुनिया के कुछ बड़े देशों की भविष्यवाणी भी WMO के बराबर ही है। ये देश हैं स्पेन, जर्मनी, कनाडा, चीन, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, नॉर्वे और डेनमार्क। लेकिन सिर्फ इन देशों के एकसाथ आकर कोई कदम उठाने भर से काम नहीं चलेगा। इसके लिए दुनिया के सारे देशों को एकसाथ आना होगा।WMO के प्रो। पेटेरी टालस ने कहा कि यह बेहद साइंटिफिक और तथ्य आधारित स्टडी है। यह सिर्फ भविष्यवाणी नहीं है कि खराब मौसम आएगा और चला जाएगा। यह पूरी धरती पर असर डालेगा। जिसका असर धरती के हर रहने लायक इलाके में रह रहे लोगों और जीवों पर होगा। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया और कैलिफोर्निया के जंगलों की आग, हिमखंडों का टूटना, ग्लेशियरों का गायब हो जाना ये बढ़ते तापमान का ही नतीजा है। इस तरह से धरती की जैव-विविधता खत्म हो जाएगी।
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