मध्य प्रदेश / कोविड-19 से माता-पिता की मौत के बाद 8 माह-7 साल की उम्र के 5 भाई-बहन भीख मांगने को मजबूर

Zoom News : Aug 28, 2021, 08:56 AM
भिंड: भिंड जिले के दबोह कस्बे के नजदीक अमाहा गांव में एक परिवार पर कोरोना का कहर इस तरह टूटा कि पूरा परिवार बिखर गया। कोरोना से पहले पिता की मौत हुई फिर मां भी चल बसी। अब परिवार में 4 बच्चियां और दो बच्चे हैं। सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 7 साल है। सबसे छोटा बच्चा 8 महीने का है। बच्ची अपने पांच भाई बहनों के साथ गांव वालों की उदारता पर भरण-पोषण कर रहे हैं। गांव में घर-घर पहुंचकर भोजन मांगते हैं, तब जाकर पेट की भूख मिटती है। वजह- कागज के टुकड़े का न होना, जिससे वे साबित कर सकें कि वे मध्यप्रदेश के हैं और कोरोना से उनके माता-पिता की मौत हुई है और उन्हें सरकारी मदद चाहिए।

कोरोना के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसे परिवारों के भरण-पोषण और पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाने की घोषणा की थी, जिन परिवारों में बच्चे बचे हैं। माता-पिता की मौत हो गई। अब तक प्रशासन की नजर इन बच्चों पर नहीं पड़ी। बताया जा रहा है, गांव के राघवेंद्र पुत्र मानपाल वाल्मीकि रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण किया करता था।

फरवरी के अंतिम सप्ताह में कोरोना से राघवेंद्र की मौत हो गई। इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए राघेंद्र की पत्नी गिरिजा 6 बच्चों के साथ गांव आई। इसके बाद वो भी फिर से उरई चली गई। मई महीने में कोरोना से गिरिजा की भी मौत हो गई। उसके बाद रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए बच्चों के साथ गांव लेकर आए।

अब रिश्तेदारों ने भी इन्हें छोड़ दिया है। परिवार की सबसे बड़ी बेटी 7 साल की निश है। उससे छोटा बाबू राजा (5) फिर मनीषा (3) अनीता (2) और सबसे छोटा बालक गोलू (8 माह) का है।

पूर्व मंत्री ने दी सहायता राशि

शनिवार को पूर्व मंत्री डॉ गोविंद सिंह अमाहा गांव में शोक संतृप्त परिवार के पास पहुंचे। गांव के कुछ लोगों ने इन बच्चों के बारे में बताया। तत्काल डॉ गोविंद सिंह ने बच्चों की मदद करने का फैसला लिया। स्वयं की जेब से दो हजार रुपए दिए। सरपंच बैकुंठी देवी के पुत्र शैलेंद्र पचौरी व गांव के सचिव अशोक पाराशर से 10-10 हजार रुपए दिलाई। यही नहीं, विधायक निधि से 20 हजार रुपए दिए जाने की बात कही। 8 महीने के बच्चे के लिए गांव के एक युवक से दूध दिए जाने की बात कही।

रहने के लिए मकान तक नहीं

बच्चों के पास रहने के लिए मकान नहीं है। इन बच्चों का परिवार चाचा और दादा गांव से बाहर रहते हैं। गांव में बच्चे टीन शेड के नीचे रहने को मजबूर हैं। पूर्व मंत्री ने बच्चों के रहने के लिए आवास व्यवस्था कराए जाने की जिम्मेदारी ली है।

बच्चों पर दस्तावेज नहीं

गांव के सचिव अशोक पारासर का कहना है कि इन बच्चों के माता-पिता उरई रहते थे। मध्य प्रदेश का कोई भी दस्तावेज इन पर नहीं। ना ही इन बच्चों का आधार कार्ड है। इन बच्चों के कागजी दस्तावेजों को तैयार कराया जा रहा है। आधार कार्ड भी बनवाया जा रहा है। वहीं, सरपंच बैकुंठी देवी के पुत्र शैलेंद्र का कहना है कि गांव में लोगों के सहयोग से इन बच्चों का ख्याल रखा जा रहा है। कागजी दस्तावेज तैयार होने पर शासन से मदद के लिए आवेदन कराया जाएगा।

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