Dharmendra Died / धर्मेंद्र का निधन: फगवाड़ा में शोक की लहर, बचपन के दोस्तों ने साझा किए अनमोल किस्से

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनके निधन से फगवाड़ा में शोक की लहर है, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया था। उनके दोस्तों ने उनकी विनम्रता और शहर से उनके गहरे जुड़ाव को याद किया, जिसमें रामलीला में भूमिका न मिलने का एक मजेदार किस्सा भी शामिल है।

बॉलीवुड के हीमैन कहे जाने वाले दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। बीते कुछ दिनों से वे उम्र संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे और सोमवार को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है, लेकिन विशेष रूप से फगवाड़ा शहर में गहरा दुख व्याप्त है, क्योंकि यह वही स्थान है जहां धर्मेंद्र ने अपना बचपन बिताया था और जिससे उनका आजीवन गहरा जुड़ाव रहा।

फगवाड़ा से अटूट रिश्ता

धर्मेंद्र ने कभी भी फगवाड़ा में बिताए अपने बचपन को नहीं भुलाया। अपनी पंजाब यात्राओं के दौरान, वे हमेशा फगवाड़ा में रुकते थे और अपने बचपन के दोस्तों से मिलने के लिए समय निकालते थे। यह उनके शहर के प्रति प्रेम और अपने पुराने संबंधों को संजोने की उनकी इच्छा को दर्शाता है। जब 10 नवंबर को अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब फगवाड़ा के मंदिरों और गुरुद्वारों में उनके बचपन के दोस्त और प्रशंसक उनके शीघ्र स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे। इस दौरान उनके निधन की अफवाहें भी उड़ी थीं, लेकिन बाद में डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल से घर भेज दिया था, जहां उनकी देखरेख की जा रही थी।

निधन की पुष्टि और शोक

सोमवार को उनके निधन की खबर आने से एक बार फिर शोक की लहर दौड़ गई। फिल्म निर्माता करण जौहर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए उनके निधन की पुष्टि की, जिससे यह दुखद समाचार आधिकारिक हो गया। इससे पहले, आईएएनएस ने भी उनके निधन की खबर चलाई। थी, जिसने प्रशंसकों और फिल्म उद्योग को स्तब्ध कर दिया। धर्मेंद्र के निधन से एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनकी यादें और उनका फगवाड़ा से जुड़ाव हमेशा जीवित रहेगा।

बचपन के साथी और प्रारंभिक जीवन

फगवाड़ा में धर्मेंद्र के बचपन के सबसे करीबी साथी समाजसेवक कुलदीप सरदाना, हरजीत सिंह परमार और एडवोकेट शिव चोपड़ा थे और ये सभी तब से उनके साथ थे जब उन्हें सिर्फ 'धरम' के नाम से जाना जाता था, प्रसिद्धि मिलने से पहले। धर्मेंद्र के पिता, मास्टर केवल कृष्ण चौधरी, आर्य हाई स्कूल में गणित और सामाजिक अध्ययन के शिक्षक थे। धर्मेंद्र ने स्वयं 1950 में इसी आर्य हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण। की थी और 1952 तक रामगढ़िया कॉलेज में अपनी आगे की पढ़ाई की थी। यह उनके प्रारंभिक जीवन का वह दौर था जिसने उनके व्यक्तित्व की नींव रखी।

स्टारडम के बावजूद विनम्रता

आर्य हाई स्कूल में उनके सहपाठी और वरिष्ठ एडवोकेट एस. एन और चोपड़ा अक्सर कहते थे कि धर्मेंद्र में एक खास चमक थी, जो उन्हें भीड़ से अलग करती थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि प्रसिद्धि ने उनकी विनम्रता को कभी नहीं बदला और हरजीत सिंह परमार के अनुसार, जब भी धर्मेंद्र फगवाड़ा आते थे, वे एक स्टार की तरह नहीं, बल्कि एक दोस्त की तरह आते थे। वे अपने दोस्तों के साथ बैठना, पुरानी बातें करना, मजाक करना और पुरानी यादें ताजा करना पसंद करते थे और यह उनकी सहजता और अपने जड़ों से जुड़े रहने की भावना को दर्शाता है।

रामलीला में नहीं मिली थी भूमिका

प्रसिद्धि के बावजूद, धर्मेंद्र का फगवाड़ा से नाता कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने स्कूल के दिनों, शिक्षकों, पुराने पैराडाइज थिएटर और शहर के बदलते स्वरूप के बारे में किस्से साझा करते हुए कई अविस्मरणीय शामें फगवाड़ा में बिताईं और एक दिलचस्प किस्से में, धर्मेंद्र ने एक बार बताया था कि अभिनय के दिनों से पहले, उन्हें कौमी सेवक रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित एक रामलीला में भूमिका के लिए अस्वीकार कर दिया गया था। कई साल बाद, उन्होंने अपने दोस्तों को चिढ़ाते हुए कहा था कि क्या अब उन्हें रामलीला में कोई भूमिका मिल सकती है, जो उनकी हास्य भावना और अतीत को हल्के-फुल्के ढंग से याद करने की क्षमता को दर्शाता है। **फगवाड़ा जिंदाबाद! फगवाड़ा शहर से उनका गहरा जुड़ाव 2006 में तब उजागर हुआ जब वे पुराने पैराडाइज थिएटर की जगह बने गुरबचन सिंह परमार कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन करने आए थे। हजारों लोगों के सामने, धर्मेंद्र ने पूरे जोश के साथ 'फगवाड़ा जिंदाबाद! ' का नारा लगाया था, जिसने वहां मौजूद सभी लोगों को भावुक कर दिया था और हरजीत सिंह परमार ने एक बार बताया था कि धर्मेंद्र और उनकी पत्नी प्रकाश कौर उनके घर आए थे और उनकी मां से आशीर्वाद लिया था। उन्होंने उनके साथ परिवार जैसा व्यवहार किया, क्योंकि उनके लिए वे सिर्फ दोस्त नहीं, बल्कि परिवार ही थे। यह धर्मेंद्र के मानवीय पक्ष और अपने रिश्तों को महत्व देने की उनकी प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसने उन्हें न केवल एक महान अभिनेता बल्कि एक सच्चे इंसान के रूप में भी स्थापित किया।