नई दिल्ली / कश्मीर मुद्दे पर भारत ने फिर से कहा तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं

Live Hindustan : Oct 01, 2019, 11:51 AM
नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर मसले पर भले ही अमेरिका बार-बार मध्यस्थता की बात करता हो, मगर भारत को यह कतई मंजूर नहीं है। कश्मीर मसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता की बात पर एक बार फिर से भारत ने कहा कि हम तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेंगे। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की हर गुंजाइश को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा है कि भारत का रुख दशकों से स्पष्ट रहा है और इस मामले पर कोई भी बातचीत द्विपक्षीय ही होगी। जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक महासभा सत्र में भाग लेने के बाद रविवार रात न्यूयार्क से यहां पहुंचे।

संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के इतर प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने विश्व के दर्जनों नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। कश्मीर में मध्यस्थता के संबंध में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने बुधवार को भारतीय संवाददाताओं से कहा, '' भारत का रूख करीब 40 साल से इस बात को लेकर स्पष्ट है कि हम मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेंगे... और जो कुछ भी बातचीत होनी है, वह द्विपक्षीय होगी।

ट्रंप ने कश्मीर मामले पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की हाल में पेशकश की थी। जयशंकर ने कहा, ''जहां तक मेरा सवाल है, मेरे दिमाग में बात एकदम स्पष्ट है। मेरा तर्क बहुत सरल है। (यह) किसका मामला है? मेरा। किसे फैसला करना है? मुझे। यदि यह मेरा मामला है और मुझे फैसला करना है, तो मैं तय करूंगा कि मुझे किसी की मध्यस्थता चाहिए या नहीं। आप अपनी पसंद से कोई भी प्रस्ताव रख सकते हैं लेकिन यदि मैं फैसला करता हूं कि यह मेरे लिए प्रासंगिक नहीं है तो ऐसा नहीं होगा।

विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के इतर उनकी आधी बैठकों में जम्मू-कश्मीर में हालिया घटनाक्रम का मामला उठा। उन्होंने कहा, ''अनुच्छेद 370 के संदर्भ में, मेरे लिए संख्या बताना मुश्किल होगा, लेकिन मैं कहूंगा कि मेरी करीब आधी बैठकों में इस मामले पर बात हुई और शायद मेरी आधी बैठकों में इस पर बात नहीं हुई। ऐसा नहीं था कि मुझसे बात करने वाले हर व्यक्ति ने इसी ज्वलंत प्रश्न पर बात की।

उन्होंने कहा कि सच कहूं, तो इनमें से अधिकतर बैठकों में द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह मामला जिन लोगों ने उठाया, उनके लिए यह प्राथमिक रुचि का विषय नहीं था।

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