देश / भारत की विदेश नीति का दुनिया में बज रहा डंका, रूस-यूक्रेन संकट पर अमेरिका को भी करारा जवाब

Zoom News : Apr 15, 2022, 07:06 AM
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते तेजी से बदलती भू राजनीतिक परिस्थितियों में भारत की स्वतंत्र विदेश नीति सफल साबित हो रही है। भारत न सिर्फ अमेरिका और यूरोप के साथ अपने संबंधों को मजबूती से कायम रखे हुए है, बल्कि रूस-यूक्रेन को भारत का तटस्थ रुख स्वीकार्य है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार विभिन्न देशों के साथ कूटनीतिक वार्ता के दौरान किसी भी देश के पक्ष को मजबूती से रख रहे हैं। ताजा मामला अमेरिका में टू प्लस टू वार्ता के दौरान का है, जब उन्होंने अमेरिका को आईना दिखाते हुए दो टूक कहा कि वे अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों के मानवाधिकार हनन हो लेकर चिंतित हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोप की तरफ से भारत पर रूस से तेल नहीं खरीदने का दबाव है। लेकिन जयशंकर अमेरिका के अलावा ब्रिटेन के साथ भी कूटनीतिक वार्ताओं में स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। जबकि भारत की रूस से तेल खरीद सीमित है। जबकि यूरोपीय देश कई गुना ज्यादा तेल रूस से खरीद रहे हैं। इसलिए भारत के समक्ष यह अभियान न चलाया जाए। इन वार्ताओं में जयशंकर ने यह भी स्पष्ट जताया कि भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर सारे फैसले लेगा। स्पष्ट संकेत दिया कि वह पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आएगा।

अमेरिका को भी करारा जवाब दिया

विगत दिवस अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को भी भारत को मानवाधिकारों की सीख देनी महंगी पड़ गई। उन्होंने कहा था कि भारत में मानवाधिकारों के हनन के मामलों पर हमारी नजर है। इसके कुछ ही घंटों बाद जयशंकर ने भी पलटवार करने में देरी नहीं की। उन्होंने कहा कि किसी भी देश को हमारे बारे में अपनी राय जाहिर करने का हक है। लेकिन भारत को भी यह राय जाहिर करने का पूरा अधिकार है। भारत भी अमेरिका में मानवाधिकारों को लेकर चिंतित है। खासकर भारतीय समुदाय के लोगों पर हो रहे हमलों को लेकर। बता दें कि वहां दो सिखों पर हमले हुए हैं।

जयशंकर के इस रुख की प्रशंसा भी हो रही है। जयशंकर ने सूझबूझ से यह भी स्पष्ट किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख से किसी भी प्रकार से उसके अमेरिका से संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा।

यूक्रेन-रूस पर भारत का तटस्थ रुख

भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ आए प्रस्तावों पर वोटिंग से करीब दस बार अनुपस्थित रहा है। ऐसा करके उसने रूस का समर्थन किया। लेकिन भारत साथ में यह भी कहता रहा है कि युद्ध रुकना चाहिए। कूटनीतिक बातचीत के जरिये समाधान निकालना चाहिए। ऐसा कहकर वह परोक्ष रूस से युद्ध के खिलाफ भी रुख अपनाए हुए है, जिसमें यूक्रेन के साथ पश्चिमी देशों के लिए भी संकेत हैं।

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