- भारत,
- 24-Jan-2025 09:12 PM IST
90 के दशक की जानी-मानी बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने अचानक फिल्म इंडस्ट्री से अलविदा ली और अब उन्होंने आम जीवन का त्याग कर वैराग्य की ओर रुख कर लिया है। पिछले कुछ वर्षों में ममता कुलकर्णी की फिल्मी दुनिया से दूरी रही, लेकिन अब वह एक नए अध्याय की शुरुआत करने जा रही हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ममता कुलकर्णी ने किन्नर अखाड़े में शामिल होकर संन्यासी बनने का निर्णय लिया है। अब वह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने जा रही हैं।
दीक्षा के बाद नया नाम
ममता कुलकर्णी ने अपना पिंडदान भी कर दिया है और अब वह अपना जीवन पूरी तरह से वैरागी बनकर बिताने का संकल्प ले चुकी हैं। किन्नर अखाड़े की अध्यक्ष और जूना अखाड़े की आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उन्हें दीक्षा दी है, और अब ममता कुलकर्णी का नया नाम श्री यामाई ममता नंद गिरि रखा गया है। बताया जा रहा है कि शाम को ममता का पट्टाभिषेक समारोह आयोजित होगा, जिसके बाद वह पूरी तरह से महामंडलेश्वर बन जाएंगी।महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और समय-साध्य होती है। इस मार्ग पर चलने के लिए एक व्यक्ति को पहले किसी गुरु से जुड़कर अध्यात्म की गहरी शिक्षा प्राप्त करनी होती है। गुरु के मार्गदर्शन में व्यक्ति का आचरण, परिवार और मोह का त्याग करना होता है। इसके बाद वह साधना के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है। धीरे-धीरे, वर्षों की तपस्या और त्याग के बाद जब गुरु को लगता है कि शिष्य इस जिम्मेदारी के लिए तैयार हो गया है, तो उसे महामंडलेश्वर की दीक्षा दी जाती है।दीक्षा से पहले होने वाली जाँच
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण कदम है आवेदन और जाँच की प्रक्रिया। पहले तो आवेदक के गुरु पर विश्वास किया जाता है, लेकिन इसके बाद अगर कोई संदेह होता है, तो अखाड़ा परिषद उस व्यक्ति के परिवार, गांव, तहसील, थाना तक की पूरी जानकारी इकट्ठा करता है। इसमें अपराध की पृष्ठभूमि, परिवार का इतिहास, और अन्य कई पहलुओं की जाँच की जाती है। केवल सही जानकारी मिलने पर ही दीक्षा दी जाती है।महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया
- आवेदन: सबसे पहले व्यक्ति को अखाड़े में आवेदन करना होता है।
- दीक्षा और संत बनना: फिर दीक्षा लेकर व्यक्ति को संत का दर्जा दिया जाता है।
- पिंडदान और तर्पण: संन्यास के दौरान व्यक्ति को अपना धन जनहित में देना होता है। इसके बाद नदी किनारे मुंडन और स्नान होता है, फिर परिवार का पिंडदान किया जाता है।
- गुरु दीक्षा: गुरु द्वारा दीक्षा लेने के बाद शिष्य की चोटी काटी जाती है और पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है।
- आखिरी कदम: अंत में व्यक्ति को अपनी पहचान छोड़कर पूरी तरह से अध्यात्म में समाहित हो जाना होता है।