- भारत,
- 25-Dec-2025 10:50 PM IST
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का पाकिस्तान को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान 24 साल बाद सामने आया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सुरक्षा पर नई बहस छेड़ दी है। यह बयान 16 जून 2001 को स्लोवेनिया में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ उनकी मुलाकात के दौरान दिया गया था। इस गुप्त बातचीत का ट्रांसक्रिप्ट अब सार्वजनिक किया गया है, जिसमें पुतिन ने पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति और उसके परमाणु शस्त्रागार को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की थीं।
यह बयान एक ऐसे समय में आया था जब परमाणु अप्रसार और क्षेत्रीय स्थिरता वैश्विक एजेंडे में शीर्ष पर थे। पुतिन की चिंता इस बात को लेकर थी कि एक अस्थिर और सैन्य-शासित देश के हाथों में परमाणु हथियार वैश्विक सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पश्चिमी देश अक्सर पाकिस्तान की इस स्थिति की आलोचना करने से बचते हैं, जो एक तरह के दोहरे मापदंड को दर्शाता है। यह टिप्पणी पश्चिमी देशों की पाकिस्तान के प्रति नीति पर सवाल उठाती है, खासकर जब वे अन्य देशों के परमाणु कार्यक्रमों पर कड़ा रुख अपनाते हैं।
पाकिस्तान में लोकतंत्र का अभाव
पुतिन ने अपनी बातचीत में स्पष्ट रूप से कहा था कि पाकिस्तान में कोई लोकतंत्र नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह एक ऐसा देश है जहां सैन्य अधिकारी शासन करते हैं, न कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार। यह टिप्पणी उस समय पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य हस्तक्षेप के इतिहास को दर्शाती है, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए हमेशा से चिंता का विषय रहा है। एक परमाणु शक्ति संपन्न देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की अनुपस्थिति को पुतिन ने एक गंभीर मुद्दा माना, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। रूसी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बताया था।
यह बयान एक ऐसे समय में आया था जब परमाणु अप्रसार और क्षेत्रीय स्थिरता वैश्विक एजेंडे में शीर्ष पर थे। पुतिन की चिंता इस बात को लेकर थी कि एक अस्थिर और सैन्य-शासित देश के हाथों में परमाणु हथियार वैश्विक सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पश्चिमी देश अक्सर पाकिस्तान की इस स्थिति की आलोचना करने से बचते हैं, जो एक तरह के दोहरे मापदंड को दर्शाता है। यह टिप्पणी पश्चिमी देशों की पाकिस्तान के प्रति नीति पर सवाल उठाती है, खासकर जब वे अन्य देशों के परमाणु कार्यक्रमों पर कड़ा रुख अपनाते हैं।
