विशेष / जिसने 14 साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो वही मेघनाद वध कर सकता था

NavBharat Times : Oct 05, 2019, 07:52 AM
Ramayana | पौराणिक प्रसंगों में मर्यादापुरुषोत्‍तम भगवान राम की वीरता की गाथा और उनके परमभक्‍त हनुमान की रामभक्ति के रोच‍क किस्‍से तो कई जगह सुनने और पढ़ने को मिल जाते हैं, लेकिन प्रभु श्रीराम के भाई लक्ष्‍मण की वीरता के किस्‍से कम ही सुनने को मिलते हैं। न सिर्फ वीरता बल्कि प्रभुश्रीराम के प्रति लक्ष्‍मण की भक्ति भी अद्भुत थी। आगे के प्रसंग में लक्ष्‍मणजी की वीरता और उनकी भ्रातभक्ति के बारे में जानेंगे…

जब अगस्‍त्‍य मुनि पहुंचे अयोध्‍या

जब प्रभु श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्‍या आ चुके थे तो उनसे मिलने एक दिन अगस्‍त्‍य मुनि अयोध्‍या पहुंचे। बातचीत के वक्‍त लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया। भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचण्ड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

अगस्‍त्‍य मुनि ने प्रभु श्रीराम से कही यह बात

अगस्त्य मुनि बोले, ‘श्रीराम, बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने स्‍वर्ग में देवराज इंद्र से युद्ध किया और उन्‍हें बांधकर लंका ले आया था। ब्रह्माजी ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने सर्वाधिक शक्तिशाली व्‍यक्ति का वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए।

श्रीराम के मन में उठी यह जिज्ञासा

अगस्‍त्‍य मुनि के मुख से भाई की वीरता की प्रशंसा सुनकर प्रभु श्रीराम खुश तो बहुत थे, लेकिन उनके मन में एक जिज्ञासा उठ रही थी कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से अधिक मुश्किल था।

मेघनाद को मिले थे 3 वरदान

प्रभु श्रीराम की जिज्ञासा को शांत करने के लिए अगस्त्य मुनि ने बताया, इंद्रजीत को यह वरदान प्राप्‍त था कि उसका वध वही कर सकता था जो 14 वर्षों तक न सोया हो, जिसने 14 साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और 14 साल तक भोजन न किया हो।

श्रीराम लगे यह सोचने कि…अगस्‍त्‍य मुनि की बातें सुनकर श्रीरामजी बोले, मैं वनवास काल में 14 वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उन्‍हें देता था। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और 14 वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है।

अब लक्ष्‍मण ने बताई सारी बात

लक्ष्मणजी ने बताया-भैय्या जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा। तो आपको स्मरण होगा कि मैं तो सिवाय उनके पैरों के नूपुर के अलावा कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं। जब आप और माता एक कुटिया में सोते थे तो मैं रात में बाहर पहरा देता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था।

ऐसे रहे 14 वर्ष तक भूखे

लक्ष्‍मणजी ने 14 वर्षों तक भूखे रहने के बारे में बताया, मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके 3 भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? लक्ष्‍मणजी की यह बातें सुनकर प्रभु श्रीराम ने उन्‍हें गले से लगा लिया। यही वजह थी कि इन कठोर प्रतिज्ञाओं के कारण वह मेघनाद को मारने का साहसपूर्ण कार्य कर सके और वीर योद्धा कहलाए।

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