दुनिया / अब खगोलविदों के लिए मृत तारों के पास जीवन ढूंढना होगा मुमकिन

News18 : May 01, 2020, 02:47 PM
नई दिल्ली: सुदूर अंतरिक्ष (Space) में जीवन के संकेतों को पढ़ पाना वैज्ञानिकों के लिए एक कठिन चुनौती है। उनके पास अंतरिक्ष से आने वाली तारों की रोशनी के अलावा कोई ऐसा संकेत नहीं होता जिससे वे करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर अंतरिक्ष के उस हिस्से के बारे में जान सकें। लेकिन अब वैज्ञानिकों को ऐसे टेलीस्कोप (Telescope) मिलने वाले हैं जिनसे वे इतनी दूर छिपे जीवन के संभावित संकतों को पहचान सकेंगे।


तैयार हो रहे हैं बड़े टेलीस्कोप

वैज्ञानिकों ने अगली पीढ़ी के शक्तिशाली टेलिस्कोप बनाने की तैयारी कर ली है जो पृथ्वी और अंतरिक्ष में स्थित होकर सुदूर सौरमंडल, पृथ्वी जैसे बाह्यग्रह, यहां तक कि व्हाइट ड्वार्फ में भी जीवन के संकेतों को  पकड़ सकेंगे। इन जगहों की रासायनिक विशेषताएं बता सकती हैं कि वहां क्या जीवन है या नहीं।


एक खास गाइड की गई है तैयार

कर्नल यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने इसके लिए भविष्य में वैज्ञानिकों के लिए एक गाइडलाइन तैयार की है से जिसे  स्पेक्टरल फील्ड गाइड कहा गया है। एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल लेटर्स में “हाइ रिजोल्यूशन स्पेक्ट्रा एंड बायोसिग्नेचर्स ऑफ अर्थ लाइक प्लैनेट्स ट्रांजिटिंग व्हाइट ड्वार्फ्स” नाम का लेख प्रकाशित हुआ है।

बहुत सी नई जानकारियां हासिल की जा सकती है

इस लेख के प्रमुख लेखिका थिया कोजाकिस का कहना है, “हमने बताने की कोशिश की है कि स्पेक्ट्रल फिंगरप्रिंट क्या कर सकते हैं और आने वाले अंतरिक्ष और धरती पर स्थित टेलीस्कोप क्या देख सकते हैं।” कुछ सालों में खगोलविद इस तरह के टेलीस्कोप का उपयोग कर सकेंगे।

दो टेलीस्कोप तो तैयार होने जा रहे हैं

इस तरह का एक बहुत विशाल टेसीस्कोप चिली के आटाकामा रेगिस्तान में बन रहा है और ऐसा ही एक और बड़ा जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप 2021 में अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा। ये दोनों टेलीस्कोप ही बाह्यग्रहों में जीवन की खोज में मदद करेंगें।


सफेस बौने तारों के पास वाले ग्रहों पर होंगी निगाहें

कार्ल सेगन इंस्टीट्यूट के निदेशक और एसोसिएट प्रोफेस लीसा काल्टेनकर ने बताया, “सफेद बौने तारे (White Dwarfs) के पास के पथरीले ग्रह ज्यादा आकर्षण पैदा करते हैं क्योंकि वे पृथ्वी से बहुत ज्यादा बड़े नहीं होते हैं।”कोशिश ये होगी कि सफेद बौने तारे के सामने से गुजरने वाले बाह्यग्रह उस समय देखा जाए। सफेद बौने तारे एक तरह से खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके तारे होते हैं क्योंकि उनकी ऊर्जा पूरी तरह से खत्म हो चुकी होती है।


इस तरह की घटना से मिलेगी खास जानकारी

कोजाकिस ने कहा, “हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम इस तरह की घटनाओं का पकड़ सकेंगे। इस तरह के ग्रह पर कैसा वायुमंडल होता है, इसके बाद इस शोध के स्पेक्रल फिंगरप्रिंट से तुलना कर पता कर सकते हैं कि उस ग्रह पर जीवन की क्या संभावना है। इस तरह की गाइड से वैज्ञानिकों को अपनी खोज में काफी मदद मिल सकती है।


जीवन संकेतों के आंकड़े किए हैं जमा

शोधकर्ताओं ने अलग अलग अलग तापमान वाले वायुमंडल के लिए स्पैक्ट्रल मॉडल जमा किए और संभावित बायोसिग्नेचर टेम्पलेट्स बनाए।  अब सफेद बौने तारे के जीवन की संभावनाओं वाले क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न ग्रहों का अध्ययन करना चुनौतीपूर्ण काम है। शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि इस तारे से आने वाला प्रकाश हमें उस ग्रह पर जीवन के बारे में जानकारी दे सकता है या नहीं।

इस गाइड से पता चलेगा कि संकेत जीवन की संभावनाओं के हैं या नहीं

शोध के मुताबिक खगोलविदों को स्पैक्ट्रल बायोसिग्नेचर देखना चाहिए यानि कि जीवन की संभावनाओं के संकेत जैसे ओजोन या नाइट्रस ऑक्साइड के साथ मीथेन की उपस्थिति आदि। इसके बाद वैज्ञानिकों के लिए शोध का अगला कदम यही होगा कि क्या उस ग्रह पर जीवन तारे के मरने के बाद भी बना रहा या फिर जीव फिर से शुरू हुआ।

अब तक के हुए अवलोकन में सुदूर बाह्यग्रहों पर जीवन के बहुत ही धुंधले संकेत मिले हैं। और जो मिले हैं वे प्रमाणित करना भी बहुत मुश्किल हैं। ऐसे में यह गाइड खगोलविदों का काम आसान कर सकती है।

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