Mahakumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज इन दिनों महाकुंभ के पावन उत्सव में डूबी हुई है। दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं से यह नगरी गुलजार हो रही है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर डुबकी लगाने के लिए लाखों तीर्थयात्री रोजाना पहुंच रहे हैं। हिंदू धर्म में महाकुंभ को आत्मा की शुद्धि और जीवन के पापों को मिटाने का अवसर माना गया है। हर 12 वर्षों में आयोजित इस धार्मिक महोत्सव में स्नान करने से व्यक्ति को पुण्यकारी फल प्राप्त होते हैं, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है।
आस्था और देशभक्ति का अनूठा संगम
इस बार महाकुंभ में साधु-संतों के अद्भुत रंगों के साथ देशभक्ति का अनोखा नजारा भी देखने को मिला। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर, संत समुदाय ने अपने अनोखे अंदाज में तिरंगे को सलामी दी। प्रसिद्ध संत मौनी बाबा ने अन्य साधुओं के साथ त्रिवेणी तट पर भव्य तिरंगा यात्रा निकाली। उनके नेतृत्व में भारत माता की जय के नारों से कुंभ मेला गूंज उठा।जहां हर दिन संगम के घाटों पर भक्तिमय माहौल रहता है, वहीं गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति के गीत और झंडारोहण ने इस पवित्र स्थल को और भी खास बना दिया। यह आयोजन श्रद्धा और देशभक्ति का प्रतीक बन गया, जो महाकुंभ के इस संस्करण को खास बनाता है।
कौन हैं मौनी बाबा?
महाकुंभ में सबसे अधिक चर्चा में रहे मौनी बाबा, जिन्हें
रुद्राक्ष वाले बाबा के नाम से जाना जाता है। उनकी अनूठी वेशभूषा और साधना के कारण वे सोशल मीडिया पर भी खासे लोकप्रिय हैं। मौनी बाबा ने 11,000 से अधिक रुद्राक्ष की मालाएं धारण की हुई हैं। खास बात यह है कि ये रुद्राक्ष उन्होंने खरीदे नहीं हैं, बल्कि उन्हें ये मालाएं संतों और महापुरुषों से भेंटस्वरूप मिली हैं।उनकी मालाओं में सबसे खास है सोलह मुखी रुद्राक्ष और चांद के आकार का मुकुट, जिसे नेपाल नरेश ने उन्हें भेंट किया था। मौनी बाबा इन रुद्राक्षों की पूजा नियमित रूप से करते हैं और इन्हें मंत्रों से अभिसिंचित करते हैं। उनका जीवन सादगी और तपस्या का अनुपम उदाहरण है।
44 वर्षों से त्याग और तपस्या का जीवन
मौनी बाबा ने पिछले 44 वर्षों से अन्न, नमक और मीठे का त्याग किया हुआ है। वे केवल शाम को कुछ फल और अन्य प्राकृतिक भोजन ग्रहण करते हैं। पानी भी वे सिर्फ एक समय पीते हैं। उनकी तपस्या और अनुशासन ने उन्हें महाकुंभ में विशेष पहचान दिलाई है।
महाकुंभ 2025: आस्था और अध्यात्म का केंद्र
महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह अध्यात्म और संस्कृति का प्रतीक भी है। साधु-संतों के शिविर, धर्म-चर्चाएं और आध्यात्मिक कार्यक्रम श्रद्धालुओं को नई ऊर्जा से भर देते हैं। इस बार का महाकुंभ आस्था और देशभक्ति के संगम का उदाहरण बन गया है।
महाकुंभ का संदेश
महाकुंभ सिर्फ स्नान का पर्व नहीं, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जहां आस्था, अध्यात्म और मानवता का संगम होता है। मौनी बाबा जैसे संतों का जीवन तपस्या और त्याग का संदेश देता है। वहीं, तिरंगा यात्रा जैसी पहल यह दिखाती है कि धर्म और राष्ट्रभक्ति का जुड़ाव कितना गहरा है।इस महाकुंभ ने यह साबित कर दिया कि प्रयागराज सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का केंद्र है।