राजस्थान की जीवनरेखा मानी जाने वाली अरावली पर्वतमाला को खनन माफियाओं से बचाने के लिए NSUI ने राजधानी जयपुर में एक विशाल आंदोलन का आयोजन किया. इस आंदोलन का नेतृत्व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट और NSUI प्रदेश अध्यक्ष. विनोद जाखड़ ने किया, जिसमें हजारों की संख्या में छात्र और कार्यकर्ता शामिल हुए. जालूपुरा से कलेक्ट्रेट तक निकाले गए इस पैदल मार्च ने राज्य सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, विशेषकर अरावली के संरक्षण को लेकर.
अरावली: राजस्थान की जीवनरेखा खतरे में
अरावली पर्वतमाला राजस्थान के लिए सिर्फ पहाड़ों की एक श्रृंखला नहीं, बल्कि इसकी पारिस्थितिकी, जल सुरक्षा और जलवायु संतुलन का आधार है और हजारों साल पुरानी यह पर्वतमाला राज्य को रेगिस्तानीकरण से बचाती है और भूजल स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, सचिन पायलट ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि सरकार की वर्तमान नीतियां इस अमूल्य धरोहर को बचाने के बजाय उसे खतरे की ओर धकेल रही हैं और उन्होंने कहा कि अरावली को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की बजाय, सरकार खनन माफियाओं को परोक्ष रूप से बढ़ावा दे रही है, जिससे इसकी प्राकृतिक संरचना को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच रही है.
अवैध खनन पर सरकार को घेरा
कलेक्ट्रेट पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सचिन पायलट ने राज्य सरकार की खनन नीतियों पर कड़ा प्रहार किया. उन्होंने सवाल उठाया कि आज भी अरावली में सैकड़ों जगहों पर अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है. पायलट ने सरकार से पूछा कि यह खनन किसके दबाव से चल रहा है और कौन इसके पीछे है? उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले को इतनी चतुराई से कोर्ट से मनवाया गया है कि केवल बैन लगाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि अरावली का वास्तविक संरक्षण करना होगा और इसके लिए पेड़ों को लगाना और अवैध खनन को पूरी तरह से रोकना आवश्यक है. यह केवल कागजी कार्रवाई नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर प्रभावी कार्रवाई की मांग करता है.
केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी की मांग
पायलट ने सरकार की 'चतुराई' को उजागर करते हुए अरावली की परिभाषा में किए गए बदलाव पर गंभीर चिंता व्यक्त की और उन्होंने बताया कि एक विदेशी महिला (मर्फी) की रिपोर्ट के आधार पर अरावली की परिभाषा बदली जा रही है, जिसमें सरकार का तर्क है कि 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी ही अरावली है. पायलट ने आंकड़ों के साथ इस तर्क को खारिज किया, यह स्पष्ट करते हुए कि मात्र 1,048 पहाड़ ही 100 मीटर से ऊपर हैं, जबकि 1,18,000 पर्वत पहाड़ियां 100 मीटर से कम हैं और यदि इस नई परिभाषा को स्वीकार कर लिया जाता है, तो लाखों छोटी पहाड़ियों को खनन माफिया आसानी से खोदकर साफ कर देंगे, जिससे अरावली का एक बड़ा हिस्सा कानूनी रूप से असुरक्षित हो जाएगा और पर्यावरण को भारी नुकसान होगा.
सचिन पायलट ने केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की. उन्होंने गुज़ारिश की कि सुप्रीम कोर्ट में एक नई अर्ज़ी दाखिल की जाए, ताकि अरावली की परिभाषा में बदलाव किया जा सके और इसे व्यापक रूप से संरक्षित किया जा सके. पायलट ने जोर देकर कहा कि माइनिंग माफिया अरावली पहाड़ों की खुदाई करने के लिए तैयार बैठे हैं, और जो लोग केवल मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ लोग पत्थर खोदकर भले ही 2,500 रुपये या कुछ लाख रुपये कमा लें, लेकिन इसके परिणामस्वरूप करोड़ों लोगों को नुकसान उठाना पड़ेगा. यह एक ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई संभव नहीं होगी, और आने वाली पीढ़ियों के लिए हम क्या छोड़कर जाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है.
सरकार को जन दबाव की चेतावनी
पायलट ने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि सरकार झूठे आंकड़े. पेश कर उन्हें दबाना चाहती है, लेकिन वे झुकने वाले नहीं हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि जनता का दबाव इतना मजबूत होता है कि उसके आगे सरकारों को झुकना पड़ता है. यह आंदोलन केवल अरावली के संरक्षण के लिए नहीं, बल्कि जनता की आवाज को बुलंद करने और सरकार को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराने के लिए है. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया और अवैध खनन को नहीं रोका, तो जन आंदोलन और तेज होगा, और सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे और यह अरावली के भविष्य और राजस्थान के पर्यावरण के लिए एक निर्णायक लड़ाई है, जिसमें जनता की शक्ति ही अंतिम निर्णय लेगी.