अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव करते हुए रूस के खिलाफ नए प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों का निशाना रूस की दो बड़ी तेल कंपनियां लुकोइल (Lukoil) और रोज़नेफ्ट (Rosneft) हैं. यह कदम ट्रंप की पिछली नीति से बिल्कुल उल्टा है, जिसमें वे रूस पर सीधे प्रतिबंध लगाने की बजाय ट्रेड और टैरिफ का इस्तेमाल करते थे. अब ट्रंप ने ऊर्जा की राजनीति में गहराई से दांव खेला है, ताकि रूस की आमदनी घटाई जा सके और साथ ही भारत पर भी दबाव बनाया जा सके, जो इस समय अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.
टैरिफ से प्रतिबंध तक का सफर
अमेरिकी वित्त मंत्रालय के मुताबिक, ये नए प्रतिबंध रूस की तेल आमदनी घटाने के लिए लगाए गए हैं, लेकिन तेल की सप्लाई पूरी तरह रोकने के लिए नहीं. G7 देशों ने पहले 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत तय की थी, पर अब इस नए कदम से तेल सप्लाई चेन टाइट हो सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे गैर-प्रतिबंधित तेल की मांग बढ़ेगी, दाम भी बढ़ेंगे.
भारत पर दोतरफा दबाव
भारत के लिए यह स्थिति मुश्किल भरी है. 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत. सस्ते रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया था. अब जब ट्रंप ने रोज़नेफ्ट और लुकोइल पर निशाना साधा है, तो भारतीय कंपनियों को अपनी खरीद नीति फिर से सोचनी पड़ रही है और रिलायंस इंडस्ट्रीज, जो दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी चलाती है, अब रूसी तेल की खरीद घटाने या रोकने की तैयारी में है. उसके पास रोज़नेफ्ट से रोजाना 5 लाख बैरल खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट है, पर अब ये सौदे मुश्किल हो गए हैं. नयारा एनर्जी, जिसमें रोज़नेफ्ट की हिस्सेदारी है, भी असमंजस में है और सरकारी तेल कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल अब हर डिलीवरी की जांच कर रही हैं.
ट्रेड डील और 50% टैरिफ की पेंच
ट्रंप ने भारत के ऊपर पहले ही 50% का टैरिफ लगाया है और इसका कारण बताया भारत अब भी रूस से तेल खरीद रहा है. उन्होंने दावा किया कि पीएम मोदी ने उनसे वादा किया है कि भारत धीरे-धीरे रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा, जबकि भारत सरकार ने ऐसा कोई वादा नहीं किया. भारत और अमेरिका के बीच एक नया व्यापार समझौता बनाने की कोशिश चल रही है, ताकि टैरिफ घटाकर 15-16% तक लाया जा सके, पर ऊर्जा से जुड़े मतभेद इसकी राह में अड़चन बने हुए हैं.
भारत की मुश्किल दोनों तरफ की डोर थामे रहना
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है: सस्ती ऊर्जा की व्यवस्था बनाए रखना और साथ ही अमेरिका से रिश्ते भी न बिगाड़ना. भारत अब अमेरिका से LPG और क्रूड ऑयल की खरीद बढ़ाने पर विचार कर रहा है, जिसकी कीमत करीब 15 अरब डॉलर तक जा सकती है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत रूस से रिश्ता तोड़ देगा; बल्कि यह रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश है.
कूटनीतिक चालें और संकेत
प्रधानमंत्री मोदी ने मलेशिया में होने वाले आसियान सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने का फैसला किया, ताकि ट्रंप से आमने-सामने मुलाकात टाली जा सके. यह एक संकेत है कि भारत तनाव नहीं बढ़ाना चाहता, पर अपनी स्वतंत्र नीति भी नहीं छोड़ेगा और भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और ऊर्जा की मांग भी. ऐसे में रूसी तेल छोड़ना आसान नहीं होगा. ट्रंप का यह तेल वाला खेल सिर्फ रूस पर दबाव नहीं डाल रहा, बल्कि भारत की कूटनीतिक परीक्षा भी ले रहा है. एक तरफ अमेरिका से समझौता जरूरी है, दूसरी तरफ ऊर्जा सुरक्षा भी. अब देखना यह है कि भारत इस तेल की शतरंज में अपना संतुलन कैसे बनाए रखता है.