Bangladesh Violence: बांग्लादेश में गहराया राजनीतिक संकट: यूनुस सरकार पर सत्ता से बेदखल होने का खतरा
Bangladesh Violence - बांग्लादेश में गहराया राजनीतिक संकट: यूनुस सरकार पर सत्ता से बेदखल होने का खतरा
बांग्लादेश इस समय गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट से जूझ रहा है और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर सत्ता से बेदखल होने का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि देश भर में अशांति और हिंसा का माहौल व्याप्त है। छात्र नेता उस्मान हादी की निर्मम हत्या ने इस संकट को और गहरा दिया है, जिससे इंकलाब संगठन ने सरकार को सीधा अल्टीमेटम दे दिया है और देश में अराजकता की स्थिति है, और कट्टरपंथी तत्वों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर बनी हुई है। यह स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि मोहम्मद यूनुस के राजनीतिक अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं, और यह बहस छिड़ गई है कि क्या वह भी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की तरह सत्ता से बेदखल होने वाले हैं।
उस्मान हादी की हत्या और बढ़ता बवाल
बांग्लादेश में हिंसा की आग तब भड़की जब इंकलाब संगठन। के छात्र नेता उस्मान हादी की निर्मम हत्या कर दी गई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और इसके। बाद से ही बांग्लादेश में लगातार विरोध प्रदर्शन और बवाल जारी है। हादी की हत्या के बाद से स्थिति इतनी खराब हो गई है कि मोहम्मद यूनुस के राजनीतिक अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। देश के कई हिस्सों में अराजकता का माहौल है, जहां कट्टरपंथी समूह खुलेआम हिंसा और गुंडागर्दी कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्हें किसी ने इन कृत्यों के लिए खुली छूट दे दी हो, जिससे आम जनता में भय और असुरक्षा का माहौल व्याप्त है। मोहम्मद यूनुस भले ही दुनिया को दिखाने के लिए शांति की अपील कर रहे हों और उस्मान हादी की मौत पर शोक व्यक्त कर रहे हों, लेकिन आक्रोश की आग लगातार धधक रही है और स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है।इंकलाब संगठन का यूनुस सरकार को अल्टीमेटम
उस्मान हादी की हत्या के बाद इंकलाब संगठन ने मोहम्मद। यूनुस की सरकार के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। संगठन के सचिव अब्दुल्ला अल जाबेर ने स्पष्ट शब्दों में यूनुस सरकार को चेतावनी दी है और उन्होंने मांग की है कि उस्मान हादी की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जाए और उन पर कड़ी कार्रवाई हो। अल जाबेर ने सवाल उठाया है कि हादी के हत्यारों पर कब कार्रवाई होगी और उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि कार्रवाई के लिए दी गई समय सीमा अब समाप्त हो चुकी है, और संगठन अब और इंतजार नहीं करेगा और उन्होंने जोर देकर कहा है कि मोहम्मद यूनुस को उस्मान हादी के हत्यारों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी तय करनी होगी, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
अब्दुल्ला अल जाबेर ने अपनी चेतावनी में सत्ता पलट के स्पष्ट संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा है कि अगर उस्मान हादी को इंसाफ नहीं मिला, तो मोहम्मद यूनुस को सरकार में रहने का कोई हक नहीं है। जाबेर ने गृह मंत्रालय के सलाहकार के कथित इस्तीफे पर भी कटाक्ष किया। और कहा कि इन लोगों को इतनी आसानी से भागने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जिम्मेदारी नहीं निभाई गई, तो खून बहेगा और एक बार खून बहना शुरू हो गया, तो उसे रोकना मुश्किल होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि एकमात्र रास्ता उस्मान हादी के हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार करना है, और मोहम्मद यूनुस का बयानों वाला ड्रामा अब और नहीं चलेगा; सरकार को आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। यह चेतावनी यूनुस सरकार के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर रही है, क्योंकि इंकलाब संगठन के तेवर बेहद आक्रामक नजर आ रहे हैं।बदलते सत्ता समीकरण और यूनुस की महत्वाकांक्षाएं
बांग्लादेश में सत्ता के समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। वही ताकतें, जिनकी बदौलत पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता गंवानी पड़ी थी और मोहम्मद यूनुस को कुर्सी मिली थी, अब यूनुस की सत्ता को उखाड़ फेंकने की कसम खा चुकी हैं और इनसाइड स्टोरी के अनुसार, मोहम्मद यूनुस कथित तौर पर लोकतंत्र को 'लॉक' कर हमेशा के लिए सत्ता में बने रहना चाहते हैं और अगले साल होने वाले चुनावों को किसी भी तरह टालने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, उनकी इन महत्वाकांक्षाओं पर देश में बढ़ते कट्टरपंथी विचार और विरोध प्रदर्शन भारी पड़ रहे हैं, जिससे उनकी स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। देश में अगले साल चुनाव होने हैं, और यूनुस की कथित इच्छा है कि इन चुनावों को टाला जाए, लेकिन इंकलाब संगठन जैसे समूह उनकी इस मंशा के खिलाफ खड़े हैं।अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और दीपू चंद्र की हत्या
इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। उनके साथ बेहद बुरा बर्ताव हो रहा है, जिसमें सरेआम पीट-पीटकर हत्या करना और जिंदा जलाना जैसी भयावह घटनाएं शामिल हैं। 18 दिसंबर को हिंदू युवक दीपू चंद्र की हत्या इसका एक और दर्दनाक उदाहरण है और शुरुआत में यह दावा किया गया था कि दीपू ने फेसबुक पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी की थी, लेकिन शुरुआती जांच में इसके कोई सबूत नहीं मिले, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कट्टरपंथी अपनी नफरती मानसिकता के कारण हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं। यह पहली बार नहीं है; सत्ता परिवर्तन के बाद से हिंदुओं पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं, और सबसे चिंताजनक बात यह है कि सत्ताधीश इस पर आंखें मूंदे हुए हैं, ऐसा लग रहा है जैसे उन्होंने कट्टरपंथियों को खुली छूट दे दी हो।भारत में विरोध प्रदर्शन और बहिष्कार की मांग
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का विरोध भारत में भी जोर पकड़ रहा है। देश के कई राज्यों में बांग्लादेश के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे हैं। दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बांग्लादेश हाई कमीशन के बाहर जोरदार नारेबाजी की और कोलकाता में भी बैनर और पोस्टर के साथ प्रदर्शन हुए, जहां पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प भी हुई। भोपाल में नाराज लोगों ने मोहम्मद यूनुस का पुतला फूंका, जबकि जम्मू-कश्मीर में भी हिंदुओं ने अपने तरीके से मोहम्मद यूनुस की कथित कट्टर सत्ता का विरोध किया। इन प्रदर्शनों के माध्यम से भारत में बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है ताकि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और मानवाधिकारों का उल्लंघन रोका जा सके।आईपीएल 2026 और बहिष्कार की बहस
बांग्लादेश में बिगड़ते हालात और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के बीच, भारत में बांग्लादेश के बहिष्कार की मांग भी उठ रही है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि जब पाकिस्तान के साथ क्रिकेट और कूटनीति एक साथ नहीं चल सकती, तो बांग्लादेश के साथ ऐसा क्यों हो रहा है। हाल ही में आईपीएल 2026 के लिए बांग्लादेश के गेंदबाज मुस्तफिजुर रहमान को कोलकाता नाइट राइडर्स ने 9 करोड़ 20 लाख रुपये में खरीदा है, जबकि नीलामी में आए 7 बांग्लादेशी खिलाड़ियों में से 6 को किसी ने नहीं खरीदा और इस खरीद का भी विरोध हो रहा है, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि ऐसे समय में जब बांग्लादेश में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, उसके खिलाड़ियों को भारतीय मंचों पर बढ़ावा नहीं देना चाहिए। यह मुद्दा अब खेल और राजनीति के बीच की बहस का हिस्सा बन गया है, जहां बांग्लादेश के खिलाफ हर मंच पर बहिष्कार की मांग की जा रही है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दबाव बढ़ रहा है।