Income Tax Digital Checks: इनकम टैक्स विभाग की डिजिटल जांच पर सरकार का बड़ा खुलासा: क्या सच में चेक होंगे आपके फोन और मैसेज?
Income Tax Digital Checks - इनकम टैक्स विभाग की डिजिटल जांच पर सरकार का बड़ा खुलासा: क्या सच में चेक होंगे आपके फोन और मैसेज?
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खबर ने आम करदाताओं के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रही एक पोस्ट में यह दावा किया जा रहा था कि 1 अप्रैल 2026 से इनकम टैक्स विभाग को आपके बैंक अकाउंट, ईमेल और यहां तक कि सोशल मीडिया अकाउंट्स को भी चेक करने का सीधा अधिकार मिल जाएगा। इस खबर ने निजता के अधिकार को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए थे, जिससे लाखों लोग अपनी डिजिटल सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। हालांकि, सरकार ने अब इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और सच्चाई कुछ और ही है, जो इन दावों को पूरी तरह से खारिज करती है।
सोशल मीडिया पर फैलाया गया भ्रम
इंटरनेट पर 'इंडियन टेक गाइड' (@IndianTechGuide) नामक हैंडल से जुड़ी एक पोस्ट का हवाला देते हुए यह दावा किया गया था कि नए इनकम टैक्स एक्ट, 2025 के तहत टैक्स चोरी रोकने के नाम पर विभाग को असीमित अधिकार दिए जा रहे हैं। वायरल मैसेज में यह भी कहा गया था कि विभाग रूटीन जांच के लिए भी आपके पर्सनल मैसेज, सोशल मीडिया एक्टिविटी और ईमेल को खंगाल सकता है। इस तरह के दावों ने स्वाभाविक रूप से आम नागरिकों को घबराहट में डाल दिया था, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनकी व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन प्रतीत होता था। यह जानकारी अधूरी और पूरी तरह से गुमराह करने वाली थी, जिसका उद्देश्य केवल भय और अनिश्चितता फैलाना था।सरकार ने बताई सच्चाई: दावा पूरी तरह फेक
इस वायरल दावे की गंभीरता को देखते हुए, प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने तुरंत इसका फैक्ट चेक किया। पीआईबी ने साफ शब्दों में घोषणा की है कि सोशल मीडिया पर। किया जा रहा यह दावा पूरी तरह से गलत और भ्रामक है। सरकार ने स्पष्ट किया कि इनकम टैक्स विभाग को ऐसा कोई 'ब्लैंकेट राइट' या मनमाना अधिकार नहीं दिया गया है, जिससे वे जब चाहें किसी के भी डिजिटल स्पेस में ताक-झांक कर सकें। यह महज एक अफवाह है जिसे बिना किसी ठोस संदर्भ या प्रमाण के फैलाया जा रहा था, जिससे जनता में अनावश्यक भ्रम पैदा हो रहा था।धारा 247 का वास्तविक अर्थ
अब सवाल उठता है कि अगर यह दावा झूठ है, तो कानून असल में क्या कहता है और यह भ्रम क्यों पैदा हुआ और पीआईबी ने बताया कि यह पूरी कन्फ्यूजन इनकम टैक्स एक्ट 2025 की धारा 247 को लेकर पैदा की गई है। इस धारा के प्रावधानों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था। असलियत यह है कि इस धारा के तहत डिजिटल डेटा तक पहुंच के प्रावधान बेहद सख्त हैं और इनका इस्तेमाल केवल विशिष्ट और असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, न कि सामान्य या रूटीन जांच के लिए।डिजिटल डेटा तक पहुंच की शर्तें
इनकम टैक्स विभाग आपके डिजिटल डेटा, जैसे ईमेल या सोशल मीडिया अकाउंट्स का एक्सेस तभी ले सकता है,। जब किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ 'सर्च और सर्वे' (Search and Survey) का ऑपरेशन चल रहा हो। इसका सीधा मतलब यह है कि जब तक किसी टैक्सपेयर के खिलाफ भारी टैक्स चोरी के पुख्ता सबूत न हों और विभाग आधिकारिक तौर पर छापेमारी या तलाशी की कार्रवाई न कर रहा हो, तब तक किसी के पास आपके निजी डिजिटल जीवन में दखल देने का अधिकार नहीं है और यह प्रावधान केवल गंभीर वित्तीय अपराधों और बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी को रोकने के लिए बनाया गया है, ताकि कानून का दुरुपयोग न हो।आम करदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं
यह स्पष्टीकरण आम करदाताओं के लिए एक बड़ी राहत है। उन्हें अपनी निजता को लेकर चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह नियम उन पर लागू नहीं होता है जो ईमानदारी से टैक्स का भुगतान करते हैं और जिनके खिलाफ कोई गंभीर टैक्स चोरी का मामला नहीं है। विभाग का ध्यान उन बड़े मामलों पर है जहां संगठित तरीके से टैक्स चोरी की जा रही है, न कि आम नागरिकों के रोजमर्रा के डिजिटल संचार पर। यह महत्वपूर्ण है कि लोग ऐसी भ्रामक खबरों पर विश्वास न करें और केवल आधिकारिक स्रोतों से मिली जानकारी पर ही भरोसा करें।