Haryana Election 2024: 90 सीटों का गणित, पॉलिटिकल केमिस्ट्री… हरियाणा का क्या कहता है मिजाज?

Haryana Election 2024 - 90 सीटों का गणित, पॉलिटिकल केमिस्ट्री… हरियाणा का क्या कहता है मिजाज?
| Updated on: 04-Oct-2024 07:30 PM IST
Haryana Election 2024: हरियाणा में विधानसभा चुनाव का प्रचार गुरुवार शाम को थम गया और अब वोटिंग की बारी है. राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में शनिवार को मतदान है, जिसमें 1031 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है. बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में है तो कांग्रेस अपनी वापसी के लिए बेताब नजर आ रही. बसपा-इनेलो से लेकर जेजेपी-आसपा गठबंधन और आम आदमी पार्टी किंगमेकर बनने की कोशिश में है. हरियाणा का सियासी मिजाज पूरी तरह से एक नहीं है, कहीं बीजेपी का पलड़ा भारी है तो कहीं कांग्रेस को बढ़त मिलने की संभावना है.

चुनाव आयोग ने हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर वोटिंग के लिए पूरी तैयारी कर ली है. राज्य में मतदान के लिए कुल 20629 मतदान केंद्र बनाए हैं. हरियाणा की कुल 90 सीटों पर 1031 उम्मीदवार मैदान में है, जिसमें 930 पुरुष और 101 महिला कैंडिडेट हैं. प्रत्याशियों के जीत-हार की किस्मत का फैसला 2.03 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर करेंगे. इसमें 1.07 करोड़ पुरूष, 95.77 लाख महिलाएं और 467 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं.

हरियाणा में किस पार्टी के कितने उम्मीदवार?

हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 89 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और एक सीट पर उसकी सहयोगी सीपीआई (एम) चुनाव लड़ रही है. बीजेपी 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. हिसार सीट से पार्टी के उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया था और गोपाल कांडा को समर्थन दिया था. जेजेपी और आजाद समाज पार्टी का गठबंधन है, जिसके तहत 66 सीट पर जेजेपी के उम्मीदवार हैं तो 12 सीट पर आजाद समाज के कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं. इसी तरह बसपा और इनेलो मिलकर चुनाव लड़ रही है, जिसके तहत 51 सीट पर इनेलो के उम्मीदवार और 35 सीट पर बसपा के प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने 90 में से 88 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं.

2019 के चुनाव का सियासी समीकरण

2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 40, कांग्रेस ने 31, जेजेपी ने 10 और निर्दलीय 7 विधायक चुने गए थे. इसके अलावा हरियाणा जनहित पार्टी और इनेलो के एक-एक विधायक जीतने में कामयाब रहे थे. कांग्रेस ने जीटी बेल्ट और जाटलैंड इलाके में जीत दर्ज की है तो बीजेपी दक्षिण हरियाणा और पश्चिम हरियाणा की बदौलत दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही थी. दुष्यंत चौटाला की जेजपी ने बीजेपी को 10 विधायकों का महत्वपूर्ण समर्थन देकर सरकार बनाने में मदद की थी.

25 सीटों पर चुनावी फाइट हो सकती टाइट

हरियाणा की 90 में से 32 सीटों पर 2019 में मुकाबला काफी टाइट रहा था. इन 32 सीटों पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर दस हजार से कम वोटों का था, जिसमें 25 सीट पर हार जीत का अंतर पांच हजार से भी कम का था. इतना ही नहीं तीन सीटों पर जीत-हार का मार्जिन एक हजार वोटों से भी कम का था तो सात सीटों जीत-हार का फैसला एक हजार से दो हजार वोट के बीच रहा था. इसी तरह से 15 सीटों पर 2 हजार से 5 हजार के बीच का मार्जिन रहा था. क्लोज फाइट वाली 25 सीटों में से 12 सीटें कांग्रेस और 9 सीटें बीजेपी ने जीती थी जबकि 4 सीटें अन्य के खाते में गई थी.

इस बार के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस और बीजेपी के साथ छोटे दल बड़े धमाल करने की उम्मीद के साथ उतरते हैं. इतना ही नहीं कई निर्दलीय भी मैदान में है, जिससे वोटों का बिखराव की संभावना बनी गई है. ऐसे में कई सीटों पर निर्दलीय और छोटे दल बीजेपी और कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं. सिरसा विधानसभा सीट, जहां सबसे कम 602 वोटों का अंतर रहा था. हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा ने जीत हासिल की थी और बीजेपी तीसरे तो कांग्रेस चौथे स्थान पर रही. आम आदमी पार्टी को जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले थे. इस बार आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में काफी मशक्कत की है तो बसपा-इनेलो ने भी पूरी ताकत लगा दी है.

हरियाणा का सियासी मिजाज अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नजर आ रहा है. जाटलैंड और पश्चिमी हरियाणा बेल्ट में कांग्रेस मजबूत मानी जा रही है तो जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा वाले इलाके पर बीजेपी का दारोमदार टिका हुआ है. कांग्रेस अगर बीजेपी के दुर्ग में सेंधमारी करने में कामयाब रहती है तो हरियाणा का सियासी ही नहीं बल्कि सत्ता का समीकरण गड़बड़ा सकता है. लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आ रहा है और वो सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर बनती दिख रही है, लेकिन कुमारी सैलजा की नाराजगी और बीजेपी के दलित सियासत को धार देने से सियासी मिजाज तेजी से बदला है. ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी ने आखिरी समय में जिस तरह ताकत झोंकी है, उससे नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.

बीजेपी का दारोमदार दो क्षेत्रों पर टिका हुआ

हरियाणा में बीजेपी के सत्ता की हैट्रिक लगाने का पूरा दारोमदार जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा के इलाके की सीटों पर टिका हुआ है. बीजेपी 2014 और 2019 में इन्हीं दोनों इलाकों के बदौलत सत्ता अपने नाम करने में कामयाब रही है. जीटी बेल्ट इलाके में पंचकूला, अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, पानीपत और कैथल जिले आते हैं. इस इलाके में कुल 27 विधानसभा सीटें आती हैं. 2019 में इस इलाके 27 में से बीजेपी ने 14, कांग्रेस ने 9, जेजेपी ने 2 और निर्दलीय ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इससे पहले 2014 में यहां की 27 में से बीजेपी ने 22 सीटें जीती था, कांग्रेस-इनेलो को एक-एक सीट और तीन निर्दलीय सीट जीते थे.

वहीं, दक्षिण हरियाणा में गुड़गांव, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, नूंह, पलवल और फरीदाबाद जिले आते हैं. इस इलाके में 23 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 2019 में बीजेपी ने 15, कांग्रेस ने 6 और दो सीटें अन्य को मिली है. 2014 के चुनाव में 14 सीटें बीजेपी को मिली थी तो कांग्रेस को 4 सीटें आई थीं. 4 सीटें इनेलो और एक सीट निर्दलीय ने जीती थी. इसके अलावा बीजेपी को जाटलैंड में सात और पश्चिम हरियाणा में सिर्फ चार सीटें मिली थी. बीजेपी को जाटलैंड और पश्चिमी हरियाणा की सियासी जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है और अब उसका दारोमदार जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा के इलाके पर टिका है.

कांग्रेस के सामने गढ़ बचाए रखने की चुनौती

कांग्रेस ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जाटलैंड के सहारे मुख्य विपक्षी दल बनने में कामयाब रही है. कांग्रेस को सत्ता का रास्ता तय करने में अपने गढ़ को बचाए रखने के साथ-साथ बीजेपी के दुर्ग में सेंधमारी करनी होगी. जाटलैंड इलाके में रोहतक, सोनीपत, झज्जर, जींद, भिवानी और चरखी दादरी जिले आते हैं. इस इलाके में कुल 25 विधानसभा सीटें हैं. 2019 में इनमें बीजेपी ने 7, कांग्रेस ने 12, जेजेपी ने 4 और निर्दलीय ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2014 में इस इलाके में बीजेपी ने 8, कांग्रेस ने 11, इनेलो ने 5 और एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी.

पश्चिम हरियाणा में हिसार, सिरसा, फतेहाबाद जिले की सीटें आते हैं. इस इलाके में कुल 15 विधानसभा सीटें हैं, 2019 में इनमें बीजेपी ने 4, कांग्रेस ने 3 और जेजेपी ने पांच सीटें जीती थी. इसके अलावा इनेलो को एक सीट मिली है और एक सीट पर गोपाल कांडा ने जीत दर्ज की है. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 3, इनेलो ने 8 सीटें और कांग्रेस इस इलाके में खाता भी नहीं खोल सकी थी. इस बार जेजेपी की स्थिति पिछले चुनाव की तरह नहीं है जबकि इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन करके अपनी खोई हुई सियासी जमीन को पाने की कोशिश की है. कांग्रेस इस इलाके में अपनी सियासी जड़े जमाने में काफी हद तक लोकसभा चुनाव में कामयाब रही है, जिसके चलते चुनावी नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.

कांग्रेस-बीजेपी कैसे करेगी सत्ता का रास्ता तय?

बीजेपी सत्ता की हैट्रिक तभी लगा सकती है, जब जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा पर अपनी पकड़ बनाए रखती है. कांग्रेस अपने 10 साल के सियासी वनवास खत्म करने में तभी कामयाब होगी, जब बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल रहती है. कांग्रेस की स्थिति जाटलैंड और पश्चिम हरियाणा इलाके की सीटों पर मजबूत दिख रहा है, क्योंकि जाट और दलित दोनों ही वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ है. जेजेपी और इनेलो पहले की तरह मजबूत न होने से जाट समुदाय का झुकाव कांग्रेस की तरफ दिख रहा है, लेकिन सिर्फ इतने से सत्ता नहीं मिलने वाली है. इसलिए राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक ने सबसे ज्यादा फोकस जीटी रोड बेल्ट में किया है तो बीजेपी ने भी अपने गढ़ को बचाए रखने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.

कांग्रेस की कोशिश दक्षिण हरियाणा के मेवात इलाके की सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखते हुए अहीरवाल बेल्ट और गुर्जर बहुल इलाके में सेंधमारी करके सत्ता की सिंहासन अपने नाम करना चाहती है. बीजेपी भी अपने दक्षिण के दुर्ग को बचाए रखने की कवायद में है, जिसके लिए केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत को पूरी तरह से फ्री हैंड दे रखा है. ऐसे में कांग्रेस जाट-दलित वोट बैंक के साथ यादव और मुस्लिम समीकरण को साधकर सत्ता पर काबिज होना चाहती है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए चुनौतियों की बात करें भितरघात और बागी मुश्किल पैदा कर सकते है. ऐसे में देखना है कि शह-मात के खेल में कौन भारी पड़ता है?

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