Russian Gita: पीएम मोदी ने पुतिन को भेंट की रूसी गीता, 2019 में रखी गई थी अनुवाद की नींव
Russian Gita - पीएम मोदी ने पुतिन को भेंट की रूसी गीता, 2019 में रखी गई थी अनुवाद की नींव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भारत के दौरे पर आए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को रूसी भाषा में अनुवादित भगवद् गीता की एक प्रति भेंट कर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक कूटनीति का एक और उदाहरण प्रस्तुत किया। गुरुवार को अपने दो दिवसीय दौरे पर भारत पहुंचे पुतिन का प्रधानमंत्री मोदी ने हवाई अड्डे पर भव्य स्वागत किया और इसके बाद प्रधानमंत्री आवास पर एक शानदार रात्रिभोज का आयोजन किया गया, जहां इस विशेष उपहार का आदान-प्रदान हुआ। यह भेंट केवल एक पुस्तक का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि दो महान सभ्यताओं के बीच गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों का प्रतीक है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं पोषित किया है।
कूटनीति में आध्यात्मिक उपहार का महत्व
भगवद् गीता, हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ, जीवन, कर्तव्य और आध्यात्मिकता पर गहन दार्शनिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इसे रूसी भाषा में अनुवादित कर पुतिन को भेंट करना, भारत की ओर से एक प्रतीकात्मक इशारा है जो दर्शाता है कि भारत अपने आध्यात्मिक ज्ञान को वैश्विक मंच पर साझा करने के लिए कितना उत्सुक है। यह उपहार भारत-रूस संबंधों में एक सांस्कृतिक सेतु का काम करता है, जो केवल राजनीतिक और आर्थिक। सहयोग से परे जाकर, दोनों देशों के लोगों के बीच समझ और सम्मान को बढ़ावा देता है। यह दर्शाता है कि कूटनीति केवल समझौतों और वार्ताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान और साझा मूल्यों की पहचान भी शामिल है। यह पहल भारत की 'सॉफ्ट पावर' को मजबूत करती है, जिससे वैश्विक स्तर पर उसकी सांस्कृतिक पहचान और प्रभाव बढ़ता है।2019 में पीएम मोदी का दूरदर्शी विचार
साहित्य अकादमी के पूर्व सेक्रेटरी डॉ. के. श्रीनिवास राव ने इस पूरी योजना के पीछे की कहानी का खुलासा किया और उन्होंने बताया कि इस पहल की जड़ें 2019 में किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में आयोजित एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन में निहित हैं। इसी सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दूरदर्शी विचार प्रस्तुत किया था: 10 आधुनिक भारतीय साहित्यिक कृतियों का एससीओ सदस्य देशों की भाषाओं में अनुवाद किया जाए। इस विचार का मुख्य उद्देश्य इन देशों के पाठकों को सीधे भारतीय लेखन तक पहुंच। प्रदान करना था, जिससे वे भारत की विविध साहित्यिक परंपराओं और विचारों से परिचित हो सकें। यह एक ऐसा कदम था जो सांस्कृतिक दूरियों को पाटने और आपसी समझ को गहरा करने की। क्षमता रखता था, जिससे विभिन्न राष्ट्रों के बीच एक मजबूत बौद्धिक और भावनात्मक संबंध स्थापित हो सके।अनुवाद परियोजना का क्रियान्वयन और समन्वय
प्रधानमंत्री के इस विचार को साकार करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की गई और विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय दूतावासों ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भाषाई और संपादकीय विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुवाद न केवल सटीक हों, बल्कि मूल पाठ की आत्मा और बारीकियों को भी बनाए रखें और विशेष रूप से रूसी, चीनी और अंग्रेजी जैसी प्रमुख एससीओ भाषाओं में अनुवादों का समन्वय किया गया। यह एक जटिल और बहु-स्तरीय प्रक्रिया थी जिसमें विभिन्न देशों के विशेषज्ञों के बीच गहन सहयोग और सांस्कृतिक संवेदनशीलता की आवश्यकता थी। इस प्रयास ने दिखाया कि भारत अपनी साहित्यिक विरासत को दुनिया के साथ साझा करने के लिए कितना प्रतिबद्ध है, और इसके लिए वह कितने संसाधनों और विशेषज्ञता का उपयोग करने को तैयार है।कोविड काल में औपचारिक विमोचन और प्रतिबद्धता की पूर्ति
इस महत्वाकांक्षी अनुवाद परियोजना ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार किया। जब भारत ने एससीओ की अध्यक्षता संभाली, तो अनुवादित कृतियों को औपचारिक रूप से जारी किया गया। यह विमोचन केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि 2019 में की गई प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता की पूर्ति का प्रतीक था और यह दर्शाता है कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत अपनी सांस्कृतिक और कूटनीतिक पहलों को जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्पित था। इन अनुवादित पुस्तकों के माध्यम से, भारत ने एससीओ देशों के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया और उन्हें अपनी साहित्यिक और बौद्धिक संपदा तक पहुंच प्रदान की, जिससे आपसी सम्मान और समझ का एक नया अध्याय खुला।वैश्विक संवाद में भारतीय साहित्य और संस्कृति
डॉ. के. श्रीनिवास राव ने इस बात पर जोर दिया कि एससीओ देशों के लिए अनुवादित पुस्तकें और राष्ट्रपति पुतिन को भेंट की गई भगवद् गीता का रूसी अनुवाद,। दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस व्यापक दृष्टिकोण को उजागर करते हैं जिसके तहत वे भारतीय साहित्य और संस्कृति को वैश्विक संवाद में लाना चाहते हैं। चाहे यह आधुनिक रचनाओं के माध्यम से हो या शाश्वत आध्यात्मिक ग्रंथों के माध्यम से, प्रधानमंत्री यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत की समृद्ध विरासत को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जाए। यह पहल केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के विचारों, दर्शन और जीवन शैली को वैश्विक मंच पर एक सम्मानजनक स्थान दिलाती है। यह भारत की पहचान को केवल एक आर्थिक या राजनीतिक शक्ति के रूप में। नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी स्थापित करती है।सीमाओं से परे भारत का ज्ञान और राष्ट्रों को जोड़ना
प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रयास यह सुनिश्चित करता है कि भारत की कहानियाँ, विचार और ज्ञान भौगोलिक सीमाओं से परे पहुँचें और भगवद् गीता जैसे ग्रंथ, जो सार्वभौमिक सत्य और नैतिकता के सिद्धांतों को समाहित करते हैं, विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमि के लोगों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं। शब्दों की शक्ति का उपयोग करके, ये अनुवादित कृतियाँ राष्ट्रों को जोड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम बनती हैं और वे लोगों को एक-दूसरे की संस्कृतियों को समझने, सम्मान करने और उनसे सीखने का अवसर प्रदान करती हैं। यह सांस्कृतिक कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो न केवल द्विपक्षीय संबंधों। को मजबूत करता है बल्कि वैश्विक शांति और समझ में भी योगदान देता है। यह दर्शाता है कि साहित्य और आध्यात्मिक ग्रंथ किस प्रकार कूटनीतिक जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण और प्रभावी हिस्सा हो सकते हैं, जो साझा मानवता के धागों से राष्ट्रों को एक साथ बुनते हैं।